बीजेपी को कैराना आखिर क्यों इतना है भाता?

अमित शाह ने पार्टी के लिये वोट मांगने की शुरुआत आखिर कैराना से ही क्यों की

भारतीय जनता पार्टी को रह रहकर आखिर कैराना की याद क्यों आ जाती है? 2013 के बाद 2017, 2019 और अब फिर एक बार बीजेपी ने अपने डोर टू डोर कैंपेन की शुरुआत कैराना से की है। शनिवार को देश के गृहमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष अमित शाह ने पार्टी के लिये वोट मांगने की शुरुआत आखिर कैराना से ही क्यों की है? उत्तर प्रदेश चुनाव में बीजेपी के लिये कैराना आखिर इतना महत्वपूर्ण क्यों है? इस सवाल पर जनज्वार ने वरिष्ठ पत्रकारों से इस मुद्दे पर चर्चा की।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार आरपी तोमर कहते हैं कि 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद कई हिंदुओं ने अपना घर बार पश्चिमी उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार आरपी तोमर कहते हैं कि 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद कई हिंदुओं ने अपना घर बार छोड़कर वहां से पलायन कर लिया था. तब बीजेपी ने वहां जाकर अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने का काम किया. इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को इसका फायदा भी हुआ और हुकुमसिंह वहां से विजयी हुये. लेकिन उसके फौरन बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद कैराना से समाजवादी पार्टी के मुस्लिम उम्मीदवार नाहिद हसन को जीत मिली थी. हालांकि, मुजफ्फरनगर की अन्य सीटें बीजेपी ने जीती थीं. चूंकि कैराना ​मुस्लिम बहुसंख्यक इलाका है इसलिये हिंदुओं के पलायन का मुद्दा लेकर भाजपा कैराना में जा रही है. हुकुमसिंह जी की मौत के बाद अब उनकी बेटी राजनीति में आ गयी है, हालांकि वह वहां निवास नहीं करतीं. पिछले लगभग ढाई दशक से कैराना में हुकुमसिंह बनाम अख्तर हसन परिवार के बीच कैराना का चुनाव होता रहा है लेकिन उसमें अख्तर हसन परिवार हुकुमसिंह की डेथ के बाद ज्यादा हावी है. भाजपा कैराना सीट जीतने के लिये ही और कैराना के जरिये हिंदुओं को संदेश देने के लिये ही वहां जा रही है. प्रधानमंत्री जी सलावा में विश्वविद्यालय का शिलान्यास करने गये, तब कैराना के एक गांव में भी गये, इसके बावजूद ज​बकि वहां उनका कार्यक्रम नहीं था. इसके बाद अब अमित शाह वहां घर घर जाकर पम्पलेट बांट रहे हैं.

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