यूपी की राजनीति के ​’रामविलास पासवान’ हैं स्वामी प्रसाद मौर्य, हवा का रुख पहचान…

स्वामी प्रसाद मौर्य राजनीति के नौसिखिए नहीं हैं

कहते हैं कि राजनीति सांप-सीढ़ी का खेल होती है लेकिन वो शतरंज की ऐसी बिसात भी होती है, जहां एक अदना-सा प्यादा ही पूरी बाज़ी पलटने की ताकत रखता है लेकिन ये तय आपको करना होता है कि उसका इस्तेमाल किस सही वक़्त पर करना है। कहना ग़लत नहीं होगा कि (Uttar Pradesh) उत्तर प्रदेश बीजेपी की सियासी शतरंज के महारथी उस प्यादे की ताकत को समझने की ऐसी भूल कर बैठे कि अब (Swami Prasad Maurya) स्वामी प्रसाद मौर्य को मनाने की कवायद सिवाय अपना तमाशा बनाने से ज्यादा कुछ नहीं है।

जाहिर है कि स्वामी प्रसाद मौर्य ने मंत्रीपद से इस्तीफा दिया है लेकिन पार्टी से नहीं। इसे सियासी भाषा में ‘ब्लैकमेलिंग’ की राजनीति ही कहा जाता है कि बताइये, अगली सरकार बनने पर मुझे क्या महत्वपूर्ण मंत्रालय दोगे, तब तो मैं यहां रुकूँ, वरना दूसरा दरवाजा खुला पड़ा है। अब इस डैमेज कंट्रोल करने में जुटी बीजेपी नेताओं की टीम के आगे बड़ा धर्म संकट ये खड़ा हो गया है कि वे स्वामी प्रसाद मौर्य को आखिर कौन-सी ऐसी मुगली घुट्टी पिलाएं कि वे यहीं पर मस्त रहें। वे न तो उन्हें अगला डिप्टी सीएम बनाने का वादा कर सकते हैं क्योंकि उसके दावेदार पहले से ही केशव प्रसाद मौर्य हैं और न ही वे गृह जैसा अहम विभाग देने का वादा कर सकते हैं क्योंकि तब योगी अपना वीटो पावर इस्तेमाल करते हुए इसे नामंजूर कर देंगे।

सच तो ये है कि न तो स्वामी प्रसाद मौर्य राजनीति के नौसिखिए हैं और न ही बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व इससे अनजान हैं कि उनके चले जाने से पार्टी को कितनी सीटों पर नुकसान झेलना पड़ सकता है। पिछड़े वर्ग का 40 फीसदी से भी ज्यादा वोट पाने की खातिर ही तो उन्हें यूपी के पिछले चुनाव से पहले मायावती के हाथी से उतारने के लिए बीजेपी नेताओं ने अपनी पूरी ताकत लगा दी थी, जिसमें वे कामयाब भी हुए। लेकिन पांच साल तक सत्ता की मलाई का स्वाद चखने के बाद भी अगर उनकी भूख शांत नहीं हो पाई, तो उसकी एक बड़ी वजह ये भी है कि उन्हें कोई मलाईदार मंत्रालय नहीं मिल पाया या जानबूझकर नहीं दिया गया।

स्वामी प्रसाद मौर्य ये तो पहले दिन से ही समझ चुके थे कि केशव प्रसाद मौर्य के डिप्टी सीएम बन जाने के बाद इस पार्टी में उनकी तरक्की का रास्ता लगभग बंद हो चुका है। लिहाज़ा, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व पार्टी नेतृत्व से उनकी नाराजगी के सुर तो काफी पहले ही सुनाई देने लगे थे लेकिन उन्हें बीजेपी में ही बने रहने के लिए पार्टी के दिग्गज नेता जो मिन्नतें आज कर रहे हैं, उस पर साल भर पहले अगर गौर किया गया होता, तो शायद ऐसा नहीं होता।

एक जमाने में जनता दल से अपने सियासी सफर की शुरुआत करने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य ने जब बीएसपी का दामन थामा था, तो मायावती को भी ये अहसास हो गया था कि वे गैर यादव ओबीसी में जनाधार रखने वाला एक बड़ा चेहरा है और 2007 में उन्हें सत्ता दिलाने में इस वर्ग के वोटरों की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। उसके बाद मायावती ने उनका कद इतना ऊंचा कर दिया था कि मीडिया से सिर्फ दो ही लोग बात करते थे, या तो खुद मायावती या फिर स्वामी प्रसाद मौर्य।

स्वामी प्रसाद मौर्य ने जब बीएसपी का दामन थामा था, तो मायावती को भी ये अहसास हो गया था कि वे गैर यादव ओबीसी में जनाधार रखने वाला एक बड़ा चेहरा है। मायावती ने उनका कद इतना ऊंचा कर दिया था कि मीडिया से सिर्फ दो ही लोग बात करते थे, या तो खुद मायावती या फिर स्वामी प्रसाद मौर्य।

हालांकि, स्वामी प्रसाद मौर्य की अवसरवादी राजनीति और सवर्ण समाज के बारे में उनकी सोच को लेकर आलोचना पहले भी होती रही है और अब भी होना लाजिमी है। लेकिन यूपी की राजनीति के जानकार कहते हैं कि इस सच को झुठलाया नहीं जा सकता कि वे आज भी गैर यादव ओबीसी समुदाय का बड़ा चेहरा माने जाते हैं। फिलहाल वह कुशीनगर की पडरौना विधानसभा सीट से विधायक हैं, लेकिन उनका प्रभाव रायबरेली, ऊंचाहार, शाहजहांपुर और बदायूं तक माना जाता है।

हालांकि, दावा तो ये भी किया जा रहा है कि मौर्य के सपा में जाने से बीजेपी को इन क्षेत्रों में आने वाली करीब सौ विधानसभा सीटों पर मुश्किलें झेलनी पड़ सकती हैं और उसका पूरा सियासी खेल बिगड़ सकता है। इसकी वजह ये बताई जा रही है कि 2017 के विधानसभा चुनाव और उसके बाद 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मिली इतनी बड़ी कामयाबी में में गैर यादव ओबीसी वोटरों का काफी ज्यादा योगदान था। हालांकि मौर्य की बेटी संघमित्रा बदायूं से सांसद हैं लेकिन उन्होंने अपने पिता के इस्तीफे को लेकर बयान दिया है कि उनके पिता ने केवल मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिया है, लेकिन वे अभी भी बीजेपी में हैं।

जानकार मानते हैं कि स्वामी प्रसाद मौर्य का साथ अखिलेश यादव की साइकिल की रेस में तेजी ला सकता है इसलिये कि सूबे में यादव और कुर्मी के बाद मौर्य ओबीसी समुदाय को तीसरी सबसे बड़ी जाति माना जाता है और स्वामी प्रसाद मौर्य इससे ही ताल्लुक रखते हैं। काछी, मौर्य, कुशवाहा, शाक्य और सैनी जैसे उपनाम का भी इसी समुदाय से नाता है। वैसे आबादी के लिहाज से देखें तो प्रदेश में इनकी संख्या तकरीबन आठ फीसदी है लेकिन वोट बैंक के आंकड़ों के हिसाब से नजर डाली जाए तो राज्य में सबसे बड़ा वोट बैंक पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को ही माना जाता है। एक अनुमान के मुताबिक करीब 52 फीसदी पिछड़े वोट बैंक में 43 फीसदी वोट बैंक गैर यादव समुदाय से ताल्लुक रखता है। इसे ही मौर्य अपनी ताकत मानकर चल रहे हैं और इस बार अखिलेश यादव की नज़र भी इसी पर है।

इसे भी पढ़ें:

Swami Prasad Maurya: स्वामी प्रसाद मौर्य के जाने से पडरौना भाजपा खेमा खुश

कहते हैं कि राजनीति में कोई दूध का धुला नही होता, वही कहावत मौर्य पर भी लागू होती है। स्वमी प्रसा द मौर्य को समझने के लिये आप कभी देश की सियासत में राजनीति का सबसे बड़ा मौसम विज्ञानी माने जाने वाले राम विलास पासवान को याद किया जा सकता है।ऐसा माना जाता था कि पासवान हवा के रुख से ही भांप लिया करते थे कि अगली सरकार किसकी बनने वाली है। यही वजह थी कि पिछले चार दशकों में केंद्र में शायद ही कोई ऐसी सरकार बनी हो, जिसमें पासवान मंत्री न रहे हों। हालांकि आज वे इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन यूपी की राजनीति में उनके नक्शे-कदम पर चलने वाला कोई नेता उभरकर सामने आया है, तो उसमें स्वामी प्रसाद मौर्य का नाम अव्वल नंबर पर ही होगा। लेकिन सवाल उठता है कि अगर यूपी के पिछड़े वर्ग में मौर्य इतना बड़ा चेहरा नहीं हैं, तो फिर उन्हें मनाने और समाजवादी पार्टी में जाने से रोकने के लिए बीजेपी में इतनी खलबली भला क्यों मची हुई है?

“स्वामी प्रसाद मौर्य, ओमप्रकाश राजभर से बड़े उस्ताद हैं। पूरी मलाई काट कर अब योगी सरकार में खामियां बताने लगे, तब जब कि बेटी को भाजपा सांसद बनवा चुके हैं। सचाई यह है कि मायावती की पीठ में छुरा मार कर भाजपा में एक भी दिन वह मन से नहीं रहे। कारण यह है कि उन की विचारधारा राम के विरोध की है। सवर्ण विरोध की है। भाजपा की विचारधारा उन्हें कभी रास नहीं आई। “मिले मुलायम, कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम” जैसा नारा लगाने में स्वामी प्रसाद मौर्य आगे रहे हैं। “तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार” जैसे नारे को तन-मन से जीने के आज भी हामीदार हैं, स्वामी प्रसाद मौर्य। ऐसे विषयों पर बोलते हुए स्वामी प्रसाद मौर्य शब्द नहीं, तेज़ाब उगलते रहे हैं। समझ नहीं आता कि अमित शाह और योगी ने जाने कौन सा केंचुआ, अपनी कंटिया में लगा कर, स्वामी प्रसाद मौर्य को अभी तक मछली बना कर भाजपा में फंसाए रखा। समग्र हिंदू की अवधारणा में उन्हें समायोजित कर के रखा। भाजपा यहीं गच्चा खा गई।”

अब सवाल ये उठता है कि मौर्य के पार्टी छोड़ जाने से क्या सचमुच बीजेपी को इतना नुकसान होने का खतरा है और अगर नहीं, तो फिर उनकी मान-मुन्नवल करने की इतनी जरूरत ही भला क्यों?

इसे भी पढ़ें:

स्वामी प्रसाद मौर्य ने मंत्रिमंडल से इस्तीफ़ा दिया, अखिलेश यादव से मुलाक़ात , कुछ और मंत्री विधायक छोड़ सकते हैं भाजपा

Leave a Reply

Your email address will not be published.

eighteen + 13 =

Related Articles

Back to top button