UP में गैंगस्टर एक्ट का असली अपराधियों पर कोई असर नहीं? इलाहाबाद हाईकोर्ट में कमिश्नरेट सिस्टम पर भी सवाल
क्या कमिश्नरेट व्यवस्था से अपराध घटे हैं?
उत्तर प्रदेश में अपराध नियंत्रण के लिए लागू किए गए गैंगस्टर एंड एंटी सोशल एक्टिविटीज़ (प्रिवेंशन) एक्ट यानी गैंगस्टर एक्ट को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गंभीर टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि यह सख्त कानून अक्सर ऐसे लोगों पर लागू कर दिया जाता है, जो वास्तविक ‘गैंगस्टर’ या संगठित अपराधी नहीं हैं। दूसरी तरफ, भय पैदा करने वाले असली अपराधी और प्रभावशाली गैंग इस कानून से लगभग अछूते ही नजर आते हैं।
यह टिप्पणी जस्टिस विनोद दिवाकर ने उस याचिका पर सुनवाई करते हुए की जिसमें कई आरोपियों ने अपने ऊपर लगे गैंगस्टर एक्ट के प्रावधानों को चुनौती दी थी।
कोर्ट ने मांगा 10 वर्षों का जिलावार डेटा
हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार, गृह विभाग और पुलिस से एक बड़ा सवाल पूछा है—
क्या गैंगस्टर एक्ट वाकई अपराधियों को रोकने में कारगर साबित हुआ है?
इसके लिए अदालत ने पिछले 10 सालों का पूरा डेटा मांगा है, जिसमें शामिल होगा:
• गैंगस्टर एक्ट में कितने मुकदमे दर्ज हुए
• किन मामलों में चार्जशीट दाखिल हुई
• कितने आरोपियों को दोषी ठहराया गया
• कितने मामले कोर्ट में टिक नहीं पाए और आरोपी बरी हो गए
• किन जिलों में यह कानून सबसे ज्यादा इस्तेमाल हुआ और किन जिलों में कम
कहने का मतलब—हाईकोर्ट गैंगस्टर एक्ट की “ग्राउंड रिपोर्ट” चाहता है।
छोटी-मोटी घटनाओं में भी गैंगस्टर एक्ट?
अदालत ने साफ कहा कि कई बार पुलिस छोटे विवाद, आपसी झगड़े, या एक-दो व्यक्तियों से जुड़े मामलों में भी गैंगस्टर एक्ट लगा देती है, जबकि यह कानून मूल रूप से संगठित अपराध और गैंग गतिविधियों को खत्म करने के लिए बनाया गया था।
कोर्ट के अनुसार, इस तरह के प्रयोग से:
• कानून की साख कमजोर होती है,
• निर्दोष लोग परेशान हो सकते हैं,
• और वास्तविक गैंग नेटवर्क्स पर कोई खास असर नहीं पड़ता।
कमिश्नरेट सिस्टम पर भी उठे सवाल
लखनऊ, गौतम बुद्ध नगर (नोएडा) और वाराणसी जैसे शहरों में लागू पुलिस कमिश्नरेट सिस्टम को लेकर भी हाईकोर्ट ने प्रभावशीलता का आकलन मांगा है।अदालत ने सवाल उठाया:
• क्या कमिश्नरेट व्यवस्था से अपराध घटे हैं?
• क्या पुलिसिंग बेहतर हुई है?
• क्या संगठित अपराध पर काबू पाया गया है?
राज्य सरकार को यह भी बताना होगा कि कमिश्नरेट सिस्टम लागू होने के बाद अपराध नियंत्रण में वास्तविक सुधार दिखा या नहीं।
अदालत की चिंता: “असली गैंग तो बच निकलते हैं”
हाईकोर्ट की टिप्पणी बेहद महत्वपूर्ण है। अदालत ने कहा:
“तीन-दो लोगों की एक सामान्य घटना को पुलिस गैंगस्टर एक्ट का मामला बना देती है। लेकिन जिन लोगों के असली गैंग हैं, जिनकी समाज में दहशत है, वे इस कानून से अप्रभावित रहते हैं।”
यह टिप्पणी सीधे तौर पर यूपी पुलिस के तरीके पर सवाल उठाती है।
क्यों महत्वपूर्ण है यह फैसला?
यह आदेश यूपी में कानून व्यवस्था की गुणवत्ता, पुलिस की जवाबदेही और कठोर कानूनों के दुरुपयोग बनाम वास्तविक प्रभाव — इन सभी पर बहस को नया मोड़ देता है।
• प्रदेश में हर साल हजारों गैंगस्टर एक्ट के मुकदमे दर्ज होते हैं।
• लेकिन वास्तविक दोष सिद्ध दर (conviction rate) बेहद कम बताई जाती है।
• इससे सवाल उठता है कि क्या गैंगस्टर एक्ट अपराध रोकने वाला उपकरण बना है या कानूनी डर दिखाने वाला प्रशासनिक औजार?
अदालत का यह रुख संकेत देता है कि अब यूपी सरकार को न सिर्फ आंकड़े बल्कि वास्तविक उपलब्धियाँ और कमियाँ सामने रखनी होंगी।
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