यूपी के विधानसभा चुनाव में ब्राह्मण की ‘बल्ले-बल्ले’

यूपी चुनाव में ब्राह्मण समुदाय की बल्ले

यूपी के विधानसभा चुनाव में ब्राह्मण समुदाय की बल्ले बल्ले हो गई है। प्रदेश की तीनों मुख्य मानी जाने वाली पार्टियां सपा, बसपा और भाजपा ने उन्हें लुभाने की पुरजोर कोशिशें शुरू कर दी हैं। अखिलेश प्रदेश में परशुराम मंदिर बनवाकर ब्राह्मणों को अपने साथ लेने की कोशिश में जुट गये हैं जबकि मायावती ब्राह्मणों की सभायें करके। वहीं, भाजपा अपने नाराज ब्राह्मण वोटर्स को दूर न जाने देने के लिये तरह तरह के प्रयास कर रही है।

सुषमाश्री

यूपी चुनाव में ब्राह्मण समुदाय की बल्ले : यूपी में ब्राह्मणों की आबादी करीब 14 फीसदी है। प्रदेश में कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है, जहां ब्राह्मण नहीं हैं। लगभग हर जगह हैं ब्राह्मण। इसके अलावा ब्यूरोक्रेशी में भी ब्राह्मण बहुतायत में हैं। ये न केवल अपना वोट देते हैं बल्कि पब्लिक ओपिनियन भी बनाते हैं।

इसके अलावा गांव में एक ब्राह्मण ही ऐसा समुदाय होता है जिसका सभी जातियों के साथ अच्छा संपर्क होता है पूजा पाठ के बहाने। वे सभी के यहां पूजा पाठ कराने या शादी कराने जाते हैं इसलिये ब्राह्मणों के जरिये ओपिनियन मेकिंग करना अच्छा रहता है। प्रशासनिक सेवा में भी हैं। गांव में ब्राह्मणों का लगभग हर घर से संपर्क रहता है। वे न केवल वोट देते हैं बल्कि लोगों से वोट दिलवाते भी हैं।

ऐसे में यूपी के विधानसभा चुनाव में इस बार ब्राह्मण की बल्ले बल्ले हो गई है। यूपी की तीनों ही मुख्य पार्टियों ने ब्राह्मणों को लुभाने के लिये पूरी जोरआजमाइश शुरू कर दी है। ब्राह्मणों को भारतीय जनता पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और भारतीय जनता पार्टी, तीनों ही जगह से कुछ न कुछ मिल रहा है।

भाजपा की ब्राह्मणों को लेकर चिंता

भाजपा ने दिल्ली में एक मीटिंग बुलाई थी। साथ ही उन्होंने अपने मंत्रियों और सीनियर लीडर्स की एक कमिटी भी बनाई है, जिन्हें ब्राह्मणों को लुभाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है क्योंकि भाजपा को लगता है कि ब्राह्मण उनसे नाराज हैं। यूपी के नये चीफ सेक्रेटरी भी आनन फानन में त्वरित प्रतिक्रियास्वरूप इसी वजह से दुर्गा शंकर मिश्र को बनाया गया है ताकि ब्राह्मणों को खुश किया जा सके।

मायावती की बसपा का ब्राह्मण कार्ड

दूसरी ओर, मायावती की बहुजन समाज पार्टी को देखें तो पहले से ही सतीश मिश्रा हर जगह घूम रहे हैं। पहले भी 2007 में उन्होंने ब्राह्मणों को लुभाने के लिये उनकी सभायें की थीं। अब भी सतीश मिश्रा, जो उनकी पार्टी के महासचिव हैं, वे ब्राह्मणों का वोट मायावती को दिलाने के लिये लगातार यूपी के ब्राह्मणों के बीच घूम रहे हैं। यानि ​बीएसपी भी ब्राह्मणों को अपने साथ लेने के लिये काम कर रही है। यानि उत्तर प्रदेश की सियासत में करीब 14 साल बाद ब्राह्मण समाज को एक बार फिर से जोड़कर बसपा प्रमुख मायावती सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूले को जमीन पर उतारने की कवायद में जुट गई हैं। ब्राह्मणों को बसपा से जोड़ने की जिम्मेदारी पार्टी के महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा के कंधों पर है।

परशुराम मंदिर बनवाकर सपा भी ब्राह्मणों को लुभाने में जुटी

वहीं, अब समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव भी परशुराम मंदिर बनवाकर और वहां पूजा अर्चना करके ब्राह्मणों को अपने साथ जोड़ने की जुगत कर रहे हैं। रविवार को सपा ने राजधानी लखनऊ में पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे के किनारे भगवान परशुराम का मंदिर तैयार कराया और मंदिर के ठीक सामने 73 फीट ऊंचा भगवान परशुराम का फरसा लगा दिया। अखिलेश यादव ने भगवान परशुराम मंदिर में दर्शन पूजन करने के बाद आम जनता के लिए यह मंदिर खोल दिया।

यानि कहना होगा कि यूपी चुनाव में इस बार ब्राह्मणों की बल्ले बल्ले हो रही है। उन्हें हर पार्टी की ओर से लुभाने की कोशिश हो रही है, जिसका अर्थ हुआ कि हर किसी से इस बार उन्हें कुछ न कुछ लाभ मिलने वाला है।

बसपा के लिये आसान नहीं 2007 दोहराना

बसपा महासचिव सतीष चंद्र मिश्रा ने 23 जुलाई को अयोध्या में ब्राह्मण सम्मेलन शुरुआत की, जिसके बाद अंबेडकरनगर, प्रयागराज में भी इस तरह से सम्मेलन किए गए। राज्य के सभी 18 मंडलों और उसके बाद सभी जिलों में ब्राह्मण सम्मेलन आयोजित किए जाने का उनका ब्लूप्रिंट भी तभी तैयार कर लिया गया था। इसके बावजूद इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि इस नये साल 2022 में बसपा के लिये 2007 को दोहराना आसान नहीं है। आज हालात बहुत अलग हो चुके हैं। बसपा के तमाम ब्राह्मण नेता 14 सालों में मायावती का साथ छोड़कर बीजेपी या दूसरे दलों का दामन थाम चुके हैं।

सतीश चंद्र मिश्रा हर ब्राह्मण सम्मलेन यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि बीएसपी के साथ अगर 13 फीसदी ब्राह्मण जुड़ता है तो 23 फीसदी दलित समाज के साथ मिलकर जीत सुनिश्चित है। ऐसा ही नारा 2007 में भी बसपा ने दिया था और पार्टी से 41 ब्राह्मण विधायक जीतकर आए थे, लेकिन समय के साथ एक-एक कर वे सभी पार्टी छोड़ते गए। मौजूदा समय में बसपा के पास ब्राह्मण चेहरे के तौर पर कुछ ही चेहरे रह गये हैं।

2007 में BSP से जीते थे 41 ब्राह्मण विधायक

विशेषज्ञों का कहना है कि उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण समाज मायावती को विकल्प के तौर पर देख चुका है। सरकार बनने के बावजूद उसे कोई बहुत फायदा नहीं मिला। साल 2007 में वोट तो बीएसपी ने लिया, लेकिन लाभ और सुविधाएं ब्राह्मण समाज को नहीं मिला। यही नहीं, उस दौर के तमाम ब्राह्मण भी आज पार्टी से बाहर भी किये जा चुके हैं या खुद छोड़कर चले गए हैं। ऐसे में अब वे बीएसपी से दोबारा कितना जुड़ पाते हैं, ये देखने वाली बात होगी।

ब्राह्मणों को लुभाने के लिये अखिलेश के क्या हैं दांव

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने प्रदेश के ब्राह्मण समुदाय में बीजेपी से नाराजगी और बसपा से मोहभंग का फायदा उठाने की कोशिश करते हुये रविवार को प्रदेश में परशुराम मंदिर में पूजन अर्चन के बाद रैली के दौरान ब्राह्मणों को संबोधित करते हुये कहा कि भाजपा सरकार ने प्रदेश को पीछे धकेल दिया है। भाजपा राज में हर वर्ग अपमानित और प्रताड़ित किया जा रहा है। अब नये वर्ष में उत्तर प्रदेश में बदलाव होगा। सभी लोग बदलाव चाहते हैं।

हालांकि, चुनाव से ठीक पहले यह पूछे जाने पर कि क्या केवल चुनाव से पहले ब्राह्मण वोट लेने के लिए यह मंदिर बनवाया गया है? पार्टी के नेता संतोष पाण्डेय ने जवाब दिया कि भगवान परशुराम जी हमारे आराध्य देव हैं। मुलायम और अखिलेश की सरकारों में परशुराम जयंती पर छुट्टी भी हुआ करती थी। इसके बाद धर्म की ठेकेदार बनने वाली भाजपा ने भगवान परशुराम को महापुरुष बताकर जयंती की छुट्टी खत्म कर दी। अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री रहते हुए पार्टी कार्यालय में भी परशुराम जयंती मनाई जाती थी। उनकी पार्टी हर धर्म, हर भगवान को मानती है। यह धर्म और समाज का काम है। हमने इसे चुनाव को ध्यान में रखकर नहीं बनवाया।

भाजपा भी कर रही जोर आजमाइश

बीते दिनों भाजपा की चार सदस्यीय केंद्रीय समिति ने यूपी के ब्राह्मण मतदाताओं का भरोसा एक बार फिर से जीतने के लिये पूर्व केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री व राज्यसभा सांसद शिव प्रताप शुक्ला को समिति का प्रमुख बनाया और ब्राह्मणों को अपने साथ जोड़े रखने की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी। इस समिति में गोरखपुर के शिव प्रताप शुक्ला को अध्यक्ष और नोएडा से भाजपा सांसद डॉ. महेश शर्मा, गुजरात से राज्यसभा सांसद राम भाई और भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो) के पूर्व राष्ट्रीय महामंत्री अभिजीत मिश्रा को सदस्य बनाया गया है। इसकी पहली बैठक 30 दिसंबर को लखनऊ में हुई थी। उसके बाद से समिति के सदस्य जिलों, अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों में जाकर राज्य में सरकार की ब्राह्मणों के हित वाली उपलब्धियां गिना रहे हैं।

बीजेपी के हैं 67 ब्राह्मण विधायक

शिव प्रताप शुक्ला ने गोरखपुर में कहा कि अब विपक्ष के हर झूठ का करारा जवाब दिया जाएगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली भाजपा सरकार लगातार जनकल्याण का काम कर रही है। निशुल्क राशन वितरित किया जा रहा है। इससे किसी भी जाति-धर्म के लोगों को वंचित नहीं किया जा रहा है। ब्राह्मणों को भी हर लाभ मिल रहा है। सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण, भाजपा सरकार ने दिया है। किसान सम्मान निधि का लाभ सबको मिल रही है।

भाजपा ही सबसे ज्यादा ब्राह्मणों को टिकट देती है। यूपी में ही 67 ब्राह्मण विधायक हैं। भाजपा के टिकट पर जीतकर 67 ब्राह्मण विधायक विधानसभा लखनऊ पहुंचे हैं। राज्यसभा में ही यूपी कोटे के 5 ब्राह्मण सांसद हैं। ऐसे में समिति के सदस्य लोगों के बीच जाकर बता रहे हैं कि सबसे ज्यादा ब्राह्मण विधायक बीजेपी में ही हैं। विपक्ष के हर झूठ का तथ्यों के साथ जवाब देने का समय आ गया है। आगामी विधानसभा चुनाव नजदीक आया तो सपा, बसपा और कांग्रेस को ब्राह्मण याद आ रहे हैं। भाजपा में ही ब्राह्मणों का असली हित सुरक्षित है। लिहाजा, विपक्ष के किसी बहकावे में न आएं।

ब्राह्मणों का भरोसा जीतने में कामयाब है भाजपा

समिति के प्रमुख शिव प्रताप शुक्ला ने कहा कि 2014, 2019 के लोकसभा, 2017 के विधानसभा चुनाव में ब्राह्मणों का आशीर्वाद भाजपा को मिला था। यही आगे भी होगा। ब्राह्मणों का भरोसा जीतने में भाजपा कामयाब रही है। गोरक्षपीठाधीश्वर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ संत हैं। राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए विपक्ष गलत बयानबाजी कर रहा है, लेकिन जनता को सब पता है।

नये मुख्य सचिव का चुनाव विपक्ष को बीजेपी का जवाब

गौरतलब है कि यूपी भाजपा के ब्राह्मण सांसद व मंत्रियों ने कुछ दिन पहले नई दिल्ली में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी, फिर राष्ट्रीय अध्यक्ष से मिलकर आगामी विधानसभा चुनाव में जीत की रणनीति बनाई थी। उसके बाद ही भाजपा की राष्ट्रीय इकाई ने चार सदस्यीय समिति बनाकर विपक्ष को करारा जवाब देने का फैसला किया। नए मुख्य सचिव के तौर पर दुर्गा शंकर मिश्र का चुनाव भी विपक्ष को उनका करारा जवाब है।

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