किसान ट्रैक्टर रैली : पब्लिक का रिपब्लिक डे
पब्लिक का रिपब्लिक डे...
भारत के इतिहास में पहली बार दिल्ली में गणतंत्र दिवस के मौके पर सेना और पुलिस बलों के अलावा हमारे देश के मज़दूर किसान ट्रैक्टर रैली या परेड कर रहे हैं . एक अनोखी किसान ट्रैक्टर रैली है जिस पर सबकी निगाहें होंगी , पुरे विश्व की मीडिया इस रैली को कवर करने के लिए बहुत दूर दूर से आई हैं … किसानों की रैली केवल दिल्ली में ही नहीं है, बल्कि दिल्ली के बाहर भी है जैसे की मुंबई जहाँ पर किसान नासिक से मुंबई के लिए पैदल निकलेंगे और, आजाद मैदान में रैली करेंगे. जो किसान दिल्ली किसान रैली का हिस्सा नहीं बन पाए हैं वो लोग वहीं स्थानीय स्तर पर रैली कर रहे हैं.
श्री सुशील त्रिपाठी उत्तर प्रदेश काडर के पूर्व आई ए एस अफ़सर हैं उसकी उनका कहना है कि-
” मैं इस रैली को दो तरीके से देखता हूँ, पहले तो किसान रैली और दूसरा किसान कानून को लेकर प्रोटेस्ट.”
पब्लिक का रिपब्लिक डे…
रिपब्लिक डे एक पब्लिक का डे है . जनता का राज है, इसलिए आज के दिन कोई भी रैली निकाल सकता है.इसमें किसी को नाराज नहीं होना चाहिए. एक अद्भुत दृश्य होगा जब एक लाख ट्रेक्टर पर हमारे देश का ध्वज लहरता हुआ दिखेगा, मैं इस रैली निकलने के पक्ष में हूँ. जो तीन रास्ते दिए गए है उसका वो पालन करें और साथ ही उस जगह पर न जाए जहाँ पर सरकारी परेड हो रहा हो.
मीडिया को इसको कवर करना चाहिए और लोगों तक पहुचना चाहिए ताकि लोग भी देखें की कैसे हमारे देश के किसान रिपब्लिक डे मना रहे हैं.
किसानो की रैली में प्रोटेस्ट …
उनका मानना है कि- ” किसानों , ग्रामीण छेत्र या फिर कृषि से सम्बंधित कानून, राज्यों के ऊपर छोड़ देना चाहिए. “ भारत एक बहुत बड़ा देश है और यहाँ बहुत तरीके के किसान रहते हैं .कई जगह किसान सरप्लस उगा देते हैं, कई जगह किसान अपने लिए ही उत्पादन नहीं कर पाते क्योकि वो इतने छोटे हैं …लोकल एडमिनिस्ट्रेशन इसको बहुत अच्छे से जानते हैं.. किसानों का भी उनसे ज्यादा सम्बन्ध अच्छा होता है.…कोई भी समस्या होती है तो वे उन्ही के पास जाते हैं …
मैं समझता हूँ कि हमको केंद्र सरकार को ये सलाह देनी चाहिए थी कि-” आप एक मॉडल लॉ बनाके राज्यों को भेज दें. अगर आपको यह सूट करता है तो आप इसको लागू करें और अगर आप परिवर्तन करना चाहते है तो आप करें. मेरा मानना है कि खेती और जमीन जैसे विषयों पर कानून बनाने का काम राज्य सरकारों पर छोड़ देना चाहिए. केंद्र सरकार अगर खुद ही लॉ बनाना चाहती थी तो वो बना देती लेकिन केंद्र सरकार को भी यह कहना चाहिए था कि हम यह कानून बना रहे हैं और अगर कोई राज्य इसमें परिवर्तन चाहता है तो हमारे संविधान में इसकी व्यवस्था है कि वो परिवर्तन करके वहां के विधान मंडल से भेजे.. गवर्नर साहब आगे अनुमति नहीं देंगे तब राष्ट्रपति से अनुमति दिला दी जाएगी …”
बने बैठें हैं ज़िम्मेदार सब अनजान दिल्ली में(Opens in a new browser tab)
बहुत सारे लोगो को मालूम नहीं है कि इस कानून से फायदा होगा कि नुक़सान होगा ,एक भय सा माहोल हो गया है कि- हमारी जमीन चली जाएगी…या कब्ज़ा कर लेंगे यह माहोल जो बना है इसको सिर्फ वहां के मुखिया किसान ही बातचीत करके दूर कर सकते हैं.
गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में होने वाली दिल्ली में किसान ट्रेक्टर रैली पर पूरी बातचीत के लिए हमारा विडियो देखें … बीबीसी के पूर्व संवाददाता राम दत्त त्रिपाठी के साथ श्री सुशील त्रिपाठी पूर्व आई ए एस अफ़सर…