आज का वेद चिंतन विचार
*प्र पर्वतानामुशती उपस्थादश्वे इव विषिते हासमाने*
*गावेव शुभे मातरा रिहाणे विपाट्कुतुद्री पयसा जवेते (3.3.9)*
ये मेरी दो माताएं पर्वतों की गोद में से निकलकर बहुत प्यार से दौड़ रही हैं।
वैसे पर्वत तो यहां से काफी दूर हैं, लेकिन उसे भान हो रहा है कि ये नदियां पर्वत की गोद में से निकली है।
आज यह भान नहीं होता है इसका मतलब यह है कि उस जमाने में नदी जोरों से बहती होगी।
वैसे इस जमाने में 1. नहरों के कारण नदी का वह रूप नहीं रहा मुमकिन है कि बारिश के कारण उस वक्त नदी में जहरीला पानी आया हो ! और इसीलिए उसे पर्वत का स्मरण हुआ है!
उसके बाद कहा है कि जैसे दो वत्सल माताएं या दो उम्दा घोड़ियां चिल्लाती हुई, उछलती, कूदती हुई।
प्यार से अपने बछड़े से मिलने जा रही हों, ऐसे ही ये दो नदियां जा रही है।
इसमें दौड़ने की रफ्तार बताने के लिए घोड़ी को याद किया और वात्सल्यभाव बताने के लिए गोमाता को याद किया।
नदी को हमेशा गाय की उपमा दी जाती है।
इस तरह नदी की स्तुति करके विश्वामित्र प्रार्थना करते हैं, जो अद्भुत है।
रमध्वं मे वचसे सोम्याय ऋतावरीरुप मुहूर्तमेवैः (3.3.10)
मेरी सौम्य, मधुर, नम्र वाणी सुनकर तुम जरा रुक जाओ या शांत हो जाओ। तुम सत्य की तरफ दौड़ी जा रही हो, सत्यगामिनी हो, सत्य की खोज कर रही हो।
वह तुम्हारी सत्य की खोज जारी रहेगी। लेकिन मेरी नम्र वाणी सुनकर एक मुहूर्त के शांत हो जाओ। मुहूर्त के मानी हैं ४८ मिनट।
इस पर नदी कहती है,। हम तो भगवान की आज्ञा से बहती हैं जब तक भगवान दूसरी आज्ञा न दे हमें बहते ही जाना है निसर्ग में हमें जो प्रेरणा दी है वह कभी नहीं रुक सकती फिर इच्छा से या फिर हमसे बात कर रहा है।