आज का वेद चिंतन – तुंजेतुंजे य उत्तरे स्तोमा इंद्रस्य वज्र:
विनोबा जी का आज का वेदन चिंतन विचार
* तुंजेतुंजे य उत्तरे स्तोमा इंद्रस्य वज्र:*
*न विंधे अस्य सुष्टुतिम्। (1.2.5)*
– अरे भगवान! एक-एक चरण हम तेरी तरफ आते हैं, तो तू दो-दो चरण पीछे हटता जाता है।
तेरे और हमारे बीच अंतर कायम रहता है।
चिंतन और आचरण में जो तफावत है, वह अनादि काल से आजतक सतत चला आया है।
वह अंतर कम हो सकता है, लेकिन मिट नहीं सकता।
बड़ा ही सुंदर वाक्य है। हम कदम-ब-कदम बढ़ते हैं, और तुम दूर हटते हो तो अंतर बढ़ता जाता है।
हमारी तीव्रता बढ़ती है। बीच-बीच में निराशा होती है। लेकिन निराश होकर बैठ जायेंगे, तो अंतर कम होनेवाला नहीं है।
एक कदम बढ़ेंगे, तो उतना अंतर तो कम होता ही है। आखिर हमारा उद्धार हम नहीं करनेवाले हैं।
वह देखेगा, अंतर बहुत बढ़ रहा है, लड़का थक गया है,
तो वह अपनी शक्ति से एकदम उठा लेगा।