राहुल-प्रियंका की यह राजनीतिक अंडरस्टैंडिंग है

मोदी पर राहुल तो योगी पर प्रियंका का हमला

यशोदा श्रीवास्तव
लखनऊ. राहुल और प्रियंका दोनों ही मौजूदा राजनीति और जनता की तड़प को लेकर अपने अपने तरीके से सरकार पर आक्रामक हैं. देश की जनता प्रियंका और राहुल को कितना सुन रही है,यह कहना मुश्किल है लेकिन जब रेटिंग की बात आती है तो प्रियंका राहुल से बहुत आगे होती हैं. राहुल की केंद्र सरकार पर जो आक्रमण रुख देखा गया वह मुख्यतः कोरोना,चीन और नेपाल को लेकर है. चीन और नेपाल पर राहुल का सरकार पर हमला अंतरराष्ट्रीय महत्व का हो सकता है,  यह मुद्दा शहरी पढ़े लिखे लोगों को अपनी ओर खींचता है,मीडिया को चटकदार खबर बनाने का मौका देता है,  गरीबी,विपन्नता, बेरोजगारी, बीमारी और भुखमरी पर आर्कषक शैली में मन को द्रवित करने वाले रचनाकारों में चर्चा का विषय बनती है लेकिन जनता इस मुद्दे से स्वयं को जुड़ा हुआ नहीं महसूस कर पाती.
दूसरी ओर प्रियंका का यूपी या केंद्र सरकार को घेरने का जो मुद्दा होता है, वह निहायत स्थानीय लेकिन सीधे जनता से जुड़े होते हैं. यही वह पैमाना है जब  प्रियंका राहुल से अलग दिखती हैं, लोगों को  उनमें दादी इंदरा गांधी की छवि दिखता है.राहुल से प्रियंका की तरह अपेक्षा की जाने लगती है की वे भी  जनसरोकार से जुड़े मुद्दों पर ही केंद्रित होकर आक्रमक बनें.
 फिर यह सवाल भी है कि आखिर चीन,नेपाल या अन्य पड़ोसी देशों की मगरूरता पर कौन बोले? विपक्ष में और नेता हो सकते हैं लेकिन बोलते हुए नहीं देखे गए. बोले तो सरकार की ही भाषा. दूर नहीं जाना चाहता,बस 2014 के बाद भारत और चीन की दोस्ती के कई अध्याय देखने से यह कल्पना करना मुश्किल हो रहा था कि इसके पीछे,दोकलाम है जहां सीमा को लेकर चीन अड़ा हुआ है तो गलवान भी है जहां  हमारे 20 सैनिक शहीद हो गए.शी जिनपिंग का तो सुना नहीं लेकिन अपने प्रधानमंत्री जी का दावा था कि बदलते माहौल में दो राष्ट्राध्यक्षों (चीन और भारत) के दोस्ती की मिशाल दुनिया देखेगी.प्रधानमंत्री मोदी जी के इस दावे का सच दुनिया देख रही है कि सीमा विवाद को लेकर दो राष्ट्राध्यक्ष एक दूसरे को कैसे ललकार रहे हैं?
अब अपने नन्हे पड़ोसी राष्ट्र नेपाल पर भी नजर दौड़ा लें.इस राष्ट्र के उद्भव काल से ही भारत और नेपाल के बीच रोटी बेटी का रिश्ता रहा है. बेरोक टोक आवाजाही तो है ही,भौगोलिक परिस्थितियों के नाते तमाम समानताएं ऐसी है जिससे दोनों देशों के बीच घनिष्ट व मित्रवत संबंध है.पिछले छह सालों पर नजर डालें तो सामरिक दृष्टि से अतिमहत्वपूर्ण इस पड़ोसी राष्ट्र से भी भारत के संबंध तनाव पूर्ण हैं. वह भी ऐसे वक्त जब भारत ने इसी छह वर्षों में नेपाल के साथ बड़े भाई जैसा ही सलूक किया है. बावजूद इसके कुछ तो ऐसा है जिससे हमारे संबंध नेपाल से भी तनाव पूर्ण हो रहे हैं. कालापानी समेत उत्तराखंड व बिहार बार्डर पर सीमा विवाद के मामले सामने आ रहे हैं. आखिर हम कहां फेल हो रहे हैं कि नेपाल हमारे अयोध्या को नकली और अपने देश के अयोध्या पुरी को असली अयोध्या बता डाला.नेपाल हो या चीन दोनों देशों के मामले में हम कूटनीतिक रूप से बिफल हो रहे हैं और राहुल गांधी भारत के इसी बिफलता को मुद्दा बनाकर सरकार पर हर रोज निशाना साध रहे हैं, उसे घेर रहे हैं. राहुल केंद्र सरकार को घेरने के अपने मक्शद में तब कामयाब होते हुए दिखते हैं जब जवाब में सरकार राहुल के बयान को सेना और देश के खिलाफ साबित करने के लिए अपने एक दर्जन मंत्रियों को मैदान में उतार देती है.और वे झौं झौं करने लगते हैं.
राहुल केंद्र सरकार पर यदि पड़ोसी देशों से संबंधों को लेकर हमलावर हैं तो प्रियंका की आवाज गोरखपुर के डाक्टर कफील को बेमतलब जेल में डाले जाने के खिलाफ है. वेशक इसे तुष्टिकरण की राजनीति बताकर हवा में उड़ा देने का असफल प्रयास किया जाय लेकिन डाक्टर कफील को जिस झूठे अपराध में जेल में डाला गया था,विभागीय जांच में वह झूठ साबित हुआ.उसके बाद एक से एक कमजोर मामले में उन्हें बड़े अपराध जैसी सजा दी जा रही है. यह हाल तब है जब बलात्कारी कुलदीप सेंगर को जमानत मिल जा रही है, चिन्मयानंद जेल से छूट जा रहे हैं और आतंकवादियों को प्रश्रय देने वाले डीएसपी दवेंद्र सिंह को इसलिए जमानत मिल जा रही क्योंकि पुलिस उसके खिलाफ चार्जशीट ही नहीं दाखिल कर पाती.प्रियंका गांधी ने डाक्टर कफील की रिहाई को लेकर आठ अगस्त तक चलने वाले विरोध अभियान का जो रूटर्चाट तैयार किया है, उसकी गूंज पूर्वांचल में सुनाई पड़ने लगी है. इसके पहले प्रवासी मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचाने के लिए बसें उपलब्ध कराने को लेकर प्रियंका गांधी सुर्खियों में रहीं.यूपी सरकार ने यद्यपि कि तमाम हथकंडे अपनाकर बसों के मामले में प्रियंका को नीचा दिखाने की कोशिश की लेकिन यूपी सरकार का यह दांव उलटा पड़ गया.सरकार की ही किरकिरी हुई. प्रियंका गांधी इधर कोरोना को लेकर यूपी सरकार पर हमलावर हैं तो इसके पहले कानपूर में आठ पुलिस वालों के मारे जाने और फिर विकास दूबे इनकाउंटर के मामले को लेकर कानून व्यवस्था पर सवाल करते हुए उन्होंने यूपी सरकार को घेरा.प्रदेश में हर रोज हो रही हत्यायें प्रियंका गाधी की यूपी सरकार के खिलाफ मुद्दा बन रही है.अब आम जनमानस में प्रियंका और राहुल के राजनीतिक शैली की चाहे जो छाप हो,इसे दोनों के बीच राजनीतिक अंडरस्टैंडिंग भी कहा जा सकता है. राहुल और प्रियंका अच्छी तरह समझ चुके हैं कि दिल्ली का रास्ता बिना यूपी से नहीं तय किया जा सकता.यूपी के लिए जरूरी मुद्दों का चयन प्रियंका स्वयं करती हैं. उन्हें पता है कि इसी पांच अगस्त को अयोध्या में राममंदिर के शिलान्यास के पीछे क्या है? मंदिर मस्जिद धर्म कर्म के लिए जरूरी है लेकिन इससे भूख,गरीबी,बेरोजगारी, बिपन्नता,बीमारी आदि समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता.ऐसी समस्याओं के समाधान में सरकार की बिफलता का हर मुद्दा प्रियंका का यूपी की योगी सरकार को घेरने का मुद्दा बन रहा है.इस तरह देखा जाय तो राहुल केंद्र की मोदी सरकार को तो प्रियंका यूपी में योगी सरकार को घेरने के किसी मौके को गंवाना नहीं चाहते.

Leave a Reply

Your email address will not be published.

14 − thirteen =

Related Articles

Back to top button