जंगलों में नहीं है रोटी
हैरान-परेशान, बदहवास सब हैं,
ऐसे में कहां जाकर रहा जाए…?
हवा खामोश है, जहरीली है,
माहौल गमगीन और बेचैन,
ऐसे में क्या किया जाए…?
रोटी और रहने की व्यवस्था अहम है।
संगीन दौर है, क्या कहा जाए…?
सरकार, सत्ता, शासन, सरकारी योजनाओं से भरे पड़े अखबार हैंl
लोग कह रहे हैं,
यह सब विधि के विधान हैं।
रूस में पुतिन का सदा राज है,
चुनाव रैलियां हैं अमेरिका में,
और भारत में सरकारों का निर्माण है,
मंत्री मंडलों के गठन और विस्तार हैं,
लद्दाख और लेह में संभाषण हैं,
मीडिया चैनलों की भरमार है,
सभ्यता बहुत आगे बढ़ी,
अब न रिवर्स-गियर की गुंजाइश हैंl
हिरासत में मौत, सड़कों पर पिटाई,
और जंगलराज हैंl
कहां जाएगी मानव सभ्यता,
बहुत बढ़ गई रफ्तार हैI
संविधान सत्ता के खेल हुए,
और बढ़ रहे व्यापार हैंI
नहीं है रोटी जंगलों में,
शहरों में जंगलराज हैl
कहां जा कर रहा जाए…?
सब तरफ हाहाकार हैl