सम्पूर्ण दुनिया को निरामिष होना होगा : विनोबा
आचार्य विनोबा भावे ने कहा कि “मांस खाने वाले प्रति व्यक्ति को 4 एकड़ जमीन की आवश्यकता है। दूध पीने वाले को 2 एकड़ और अनाज खाने वाले को एक एकड़ जमीन की आवश्यकता है। प्रति दिन जनसंख्या बढ़ रही है। प्रति व्यक्ति के हिस्से में जमीन कम होती जा रही है। इसलिए सम्पूर्ण दुनिया को निरामिष होना होगा।
आचार्य ने हा कि जब तक मान्साहार – मुक्ति का प्रचार नहीं होता है, तब तक जाति भेद नहीं जाएगा । जाति भेद जिन्दा रहने का कारण है – मान्साहार। क्रिस्चियन मित्रों को मैंने सुझाया था – सामूहिक मौन प्रार्थना हो, और स्व -इच्छा से मान्साहार त्याग करना चाहिए। सेन्ट पाल ने कहा है, यदि मेरे मांस खाने से मेरा भाई दुखी होता है, तो मैं आजीवन निरामिष रहूँगा। अन्न के बारे में संपूर्ण दुनिया को लेकर सोचना चाहिए।