अजर-अमर, अनाहत आत्मा पर शासकों का भरोसा
महेश चंद्र द्विवेदी। हमारा अटूट विश्वास है कि आत्मा अजर-अमर होती है और उसे न तो कोई आहत कर सकता है और न क्लेश पहुंचा सकता है।
इस आस्था से आश्वस्त हम दूसरों की आत्माओं का निश्शंक और निर्द्वंद्व रहकर दलन करने लगते हैं, बशर्ते वह उलटा हमारी आत्मा का हनन करने में सक्षम न हो।
यह सूत्र सबसे अधिक हमारे देश के शासकों पर लागू होता है।
शासन किसी भी दल का हो, हमारे देश का अधिकांश शासक वर्ग विरोधी की आत्मा के दलन (यदा-कदा हनन भी) में कोताही नहीं करता है।
और इस काम में प्रशासक वर्ग भी पूर्ण निष्ठा से शासकों के पद-चिन्हों पर चलता है।
शासक वर्ग द्वारा अजर-अमर आत्मा का दलन 21वीं सदी की कोई नवीन विशेषता नहीं है, वरन स्वतंत्रता युग की स्थापित परम्परा है।
20वीं सदी के अंतिम दशक में एक सत्ताधारी दल का खुलेआम नारा था, “तिलक, तराजू और तलवार; इनको मारो जूते चार”।
उस दल की बड़ी कृपा थी कि वह ‘तिलक, तराजू और तलवार’ वालों को केवल चार जूते पर ही छोड़ देता था।
अन्यथा देश का कानून तो यह था (अब भी है) कि आईपीसी के अंतर्गत हड्डी टूटने जैसा संज्ञेय (कौग्निज़ेबुल) अपराध न बनने तक वे ‘तिलक, तराजू, तलवार’ को चाहे कितने भी जूते मारें, पुलिस को उन्हें बंदी बनाने का अधिकार पैदा नहीं होता था (है)।
दूसरी ओर उनके द्वारा उनकी जाति के नाम से पुकार देने का आरोप लगा देने मात्र पर ‘तिलक, तराजू, तलवार’ को पुलिस अजमानती अपराध में जेल भेज देती थी (है)।
उपर्युक्त दल की एक और बड़ी कृपा थी कि वह केवल गाली ही देता था।
दल जिसका विश्वास गाली देने की बजाय गोली मारने में
21वीं सदी आने पर एक ऐसा दल शासन में आया था, जो गाली के बजाय गोली में अधिक विश्वास करता था।
उसका अलिखित परंतु सर्वव्यापी आदेश था कि उसके अपनो को खुलेआम माफ़ियागीरी करने दो, नहीं तो गोली खाओ।
इसका ज्वलंत प्रमाण है कि सत्ताधारियों के षड़यंत्र पर उनके अपनो ने मथुरा नगर के जवाहरबाग पार्क (सरकारी) पर कब्ज़ा कर लिया था।
ढाई वर्ष बाद जब मुकुल द्विवेदी, अपर पुलिस अधीक्षक ने कब्ज़ा हटवाने का प्रयत्न किया, तो उसकी निर्ममता से हत्या कर दी गई।
फिर पैसा, पद और प्रपंच का प्रयोग कर षड़यंत्र में शामिल लोगों की गिरफ़्तारी तो दूर की बात है, उनसे भलीभांति पूछताछ भी नहीं होने दी गई।
जनतंत्र उपर्युक्त शासन को अधिक समय तक सह न सका और शासन बदल गया।
वर्तमान शासन ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्र की आत्मा को गौरवपूर्ण स्थल पर स्थापित किया।
परंतु पता नहीं किस मजबूरी में सबल कोटि के माननीयों द्वारा निर्बल नागरिकों की आत्मा के दलन पर नियंत्रण लगाने का साहस कोई न कर सका।
चाहे चप्पलमार सांसद हो, बैटमार विधायक हो, थप्पड़मार (पुलिस आफ़िसर को) नेता हो, किसी के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं हुई।
माननीयों पर कार्यवाही नहीं तो प्रशासक भी हुए बेलगाम
नीलगातार अनेक प्रकरणों में कोई कार्यवाही न होने पर माननीयों का किसी की आत्मा (इज़्ज़त) और शरीर का दलन करने का नेतोचित अधिकार सिद्ध हो गया, तो शासन की नाक के बाल प्रशासक क्यों चुप बैठते?
एक कलक्टर साहब ने भरी मीटिंग में सीएमओ को गधा कह दिया और उनकी खाल खींचकर ज़मीन में दफ़ना देने की धमकी भी दी।
धन्य हो कलक्टर साहब! और धन्य वह शासन व्यवस्था, जिसने उनके विरुद्ध कोई कार्यवाही न करके सीएमओ की आत्मा का अजर-अमर और अनाहत होने की मान्यता पर शासकीय मुहर लगा दी।