प्रकाश से अधिक गति मन की, ईश्वर सबसे गतिवान

आज का वेद चिंतन

प्रकाश
प्रस्तुति : रमेश भैया

विनोबा भावे ईशावास्य उपनिषद काचौथा मंत्र पढ़ते हैं –

अनेजदेकं मनसो जवीयः नैनददेवा आपप्नुवन् पूर्वमर्षत्
तद्धावतोडन्यान् अत्येति तिष्ठत् तस्मिन्नपना मातरिश्वा दधाति

ईशावास्य के प्रथम तीन मंत्रोें में एक पूर्ण जीवन-विचार बताया। 1-ईश्वरनिष्ठा 2-कर्मयोग 3- भोगासक्त जीवन का परिणाम।

अब मंत्र 4-5 में आत्मा के स्वरूप का वर्णन है। ईश्वर और आत्मा एक ही है। ज्योति तो एक ही है, एक अन्दर है और एक बाहर है।

आत्मतत्व को अनेजत् कहा। एजत् यानी हलनचलन करने वाला। अनेजत् यानी वह हलनचलन नहीं करता, निष्कंप है।

एकम् यानी एक है। ईश्वर अनेक नहीं हो सकते, एक ही है। एक से ज्यादा ईश्वर हो तो दुनिया चल नहीं सकती।

मनसो जवीय:- वह मन से भी वेगवान है। जब यानी वेग, जवीयस् – अधिक वेगवान, जविष्ठ– सबसे अधिक वेगवान।

इस तरह कई शब्द बनते हैं – ज्यायान्– ज्येष्ठ, श्रेयान् – श्रेष्ठ, कनीयान-कनिष्ठ, प्रेयान– प्रेष्ठ।

वैसे ‘तर‘ ‘तम‘ प्रत्यय भी लगाये जाते हैं। जैसे अंतर, अंतरतर, अंतरतम। जव बहुत प्राचीन शब्द है। मनोजवम् शब्द आता है। जव यानी गति, वेग, प्रेरणा।

दुनिया में सबसे अधिक वेगवान हैं, मन। मनसो जवीयः यानी मन से भी अधिक वेगवान। मन की गति प्रचंड है।

यहां से चंद्रमा लाखों मील दूर है। परन्तु मन क्षण में वहां पहुंच जाता है। लेकिन ईश्वर की गति मन से भी अधिक है, फिर भी वह निष्कंप निश्चल है।

प्रकाश की गति बहुत ज्यादा है ऐसा कहते हैं। प्रकाश एक सैकंड में 1,86,000 मील जाता है।

कुछ तारे हमसे इतने दूर है कि हजारों साल चलने के बाद वहां से प्रकाश यहां पृथ्वी पर पहुंचता है।

ध्रुव 30 प्रकाशवर्ष दूर है। आज रात हमने ध्रुव देखा तो इसका मतलब यह मत समझिए कि आज वह वहां पर ही है।

हमने अपनी प्रत्यक्ष आंखों से देखा है और प्रत्यक्ष प्रमाण के आधार पर हम कहते हैं कि आज वहां पर है। किन्तु आज हमने जो ध्रुव देखा, 30 साल पहले का देखा है।

आज ध्रुव वहां पर है या नहीं, वह तो तीस साल के बाद ही मालूम हो सकेगा। आज हम जिसे देख रहे हैं वह प्रकाश 30 साल पहले ही निकल चुका था।

आज हमने 1955 के साल में ध्रुव देखा तो हम यह निश्चित कह सकते हैं कि 1925 तक ध्रुव वहां पर था।

तो आज हम जितना जानते हैं उसके अनुसार कहते हैं कि प्रकाश की गति अंतिम है। लेकिन भौतिक सृष्टि में प्रकाश से अधिक गति आकाश की है।

प्रकाश कितनी भी तेज रफ्तार से दौड़े तो भी आकाश के पेट मे ही रहता है। अब रेडियोएस्ट्राॅनमी का विकास हो रहा है।

तो पता चल रहा है कि आकाश में जगह-जगह परमाणु-विस्फोट जैसे हलचलें चल रही हैं। तो संभव है कि प्रकाश से अधिक गतिमान शक्ति का पता चले!

प्रकाश से अधिक गति है मन की, और ईश्वर की गति मन से भी अधिक है। और साथ-ही-साथ कहा वह निष्कंप है, हलचलन नहीं करता।

Leave a Reply

Your email address will not be published.

twelve − eight =

Related Articles

Back to top button