प्राण का आधार कभी खंडित नहीं होता
संत विनोबा बताते हैं कि ईशावास्य उपनिषद के अनुसार प्राण का आधार कभी खंडित नहीं होता।
इसलिए प्राण तो रहता ही है परंतु हमें मालूम नहीं होता और प्राणवायु की हलचल समाप्त हुई तो हम कहते हैं कि मनुष्य मर गया।
परंतु उसका मतलब इतना ही है कि यंत्र बंद हो गया, अब इस यंत्र से काम नहीं होगा। लेकिन उस कारण वह मर गया, ऐसा मानना निरी मूर्खता है।
ज्ञान शक्ति बंद होती है लेकिन आत्मा निराकार रूप में बहुत काम करता है। हम उसे देख नहीं पाते। अव्यक्त रूप में उसका कार्य जारी रहता है। हमें मालूम नहीं होता है, इतना ही।
हमारी पहचान की एक शक्ति है। कोई चीज उससे परे हो गई तो हम कहते हैं कि वह खत्म हो गयी। बीज मिट्टी में पड़ा तो क्या मर गया?
वह जमीन के अंदर अव्यक्त रूप में कार्य करता है। जब अंकुर फूटता है तब हम समझते हैं कि वह विकसित हो रहा था।
वैसे अव्यक्त रूप में कई काम होते हैं। देह के औजार से बहुत छोटा काम होता है, स्थूल रूप में थोड़ा-बहुत काम होता है। बाकी ज्यादा से ज्यादा काम सूक्ष्म रूप में ही होता है।
आखिर देह तो एक यंत्र है। उसका जो यंत्री है, वह अंदर है और वही काम करता है। वही प्राण का आधार है।
प्राण सतत् काम करता है। जागृति में तो करता है पर निद्रा में भी करता है । वह जीवन भर विश्रांति नहीं लेता।
बाकी के अवयवों को शांति मिलती है। पर प्राण को नहीं मिलती। जन्म के साथ उसका जो कार्य शुरू होता है, आखिर तक वह सतत जारी रहता है।
वह कभी विश्रांति मांगे तो भी हम उसे देने को तैयार नहीं होते। वह विश्रांति ले, यह हमें सहन नहीं होता। उसकी विश्रांति को हम मरण कहते हैं।
लेकिन उसकी हलचल बंद होती है और निराधार नहीं होते। जिसकी सत्ता पर प्राण हलचलन करता है, वह मूल आधार तो कायम रहता है।
प्राण की हलचल बंद हुई यानी एक काम करने वाले नौकर ने पेंशन ली। लेकिन ऑफिस बंद नहीं हुआ।
इसलिए हम इस गलतफहमी में न रहें कि हम इस प्राण के आधार पर चलते हैं। पर आज सारी दुनिया इस गलतफहमी में है।
बालक ने हलचल की तो कहते हैं, अरे कोई जन्मा, शक्कर बांटो, और हलचल बंद हुई तो कहते हैं, मर गया, परंतु न कोई आया है न कोई गया है। वह तो अपने स्थान पर ही है। सिर्फ हलचल हुई और बंद हुई।