मायके की यादें , वो इक अमरूद का पेड़ : नीलम श्रीवास्तव
नीलम श्रीवास्तव
वो इक अमरूद का पेड़
मेरे कमरे की खिड़की से झांकता
मेरे जन्म से भी बहुत पहले
पापा के हाथों रोपा हुआ
जबसे मैने होश संभाला पाया उसको
हरा-भरा लहलहाता
माँ पानी देतीं थीं उसकी जड़ों में
बचपन का मेरा खिलौना मेरा प्यारा साथी
गरमी की लू भरी दुपहरी कटती उसकी छाया में
उछल कूद करती मैं उसकी डालों पर
चढ़ जाती उससे पाँव-पाँव करके छत तक
मीठे फल देता था हर मौसम में
मज़बूत सी इक शाख पे
सावन में झूला डालती थीं माँ मेरे लिये
फिर आई तरुणाई हुई मैं नवयौवना
कोमल अंकुर फूटे मन में
पहरों बैठी रहती मैं पेड़ तले उस झूले पर
मन में उठती तरंगों मे डूबते-उतराते
स्वप्नों में गुम कुछ खोई सी
फूलते श्वेत पुष्प, कोमल पंखुडियां,
और सुकुमार रोमावलियाँ
मानो भांप लेती हों हृदय की हर संवेदना को
कभी कभी बारिश होती झूम कर घनघोर
दलान में पापा के साथ बैठी घंटों तकती रहती तन्मय
पत्तों पर बूँदों का अप्रतिम नृत्य, अनहद संगीत
प्रकृति के सौंदर्य से अभिभूत सी …
अमरूद का पेड़ …. वो साथी था
हर मौसम में , हर वय में मेरा
ब्याह हुआ छूटा घर आँगन, माँ- पापा
हुई विदा मैं
जब-जब जाती पीहर सबसे मिलजुल कर
मिलती उससे, मानो बुला रहा हो मुझको
अकेला पड़ गया था वो भी
तब कच्चे फल भी लगते अमृत
अब
बहुत दिन हुए मिले उससे
नहीं रहा वो
वो मेरा प्यारा साथी
वो खिड़की भी तो नहीं है अब
न हैं माँ-पापा
और हाँ ….. मैं भी कहाँ रही वो पहले सी
बस यादें 🌱
~ नीलम
9 जून 2020