मीडिया कार्यशाला : सांस्कृतिक एवं फिल्म पत्रकारिता के नाम रहा दूसरा दिन

स्वराज विद्यापीठ प्रयागराज में आयोजित मीडिया एवं पत्रकारिता निःशुल्क कार्यशाला के दूसरे 27 अक्टूबर दिन सांस्कृतिक पत्रकारिता की दशा, दिशा एवं फिल्म पत्रकारिता के दृष्टिकोण पर चर्चा की गयी।

सांस्कृतिक रिपोर्टिंग की चर्चा करते हुए इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ अमितेश कुमार ने कहा कि अभी भी सांस्कृतिक क्षेत्रों से जुडी खबरों को समाचार पत्र-पत्रिकाओं में सीमित जगह मिल रही है जबकि यह क्षेत्र मनुष्य के जीवन से गहराई से जुड़ा हुआ है।उनके अनुसार, आज के समय में चुनौती यह है कि हम कैसे नयी संस्कृतियों को अपनाते हुए अपनी बीती हुई संस्कृतियों को कैसे जिन्दा रख सकते हैं। यहीं पर पत्रकारिता की मुख्य भूमिका शुरू होती है। मानव जीवन प्रारम्भ से सूचनाओं के माध्यम से अपनी संस्कृतियों को जीवित रखता रहा है। इसलिए पत्रकारिता के माध्यम से छूटी हुई विरासत को नया जीवन देना है।


फिल्म पत्रकारिता का इतिहास बताते हुए ईश्वर शरण डिग्री कालेज इलाहाबाद विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर अंकित पाठक ने फिल्म में देखने की दृष्टि को महत्वपूर्ण बताया।

सिनेमा पूर्व निरधारित धारणाओं को दिखाता है साथ ही उसमें मौलिक परिवर्तन भी करता है और एक ही दृश्य को अलग-अलग आयामों से समझा जा सकता है। उन्होंने जापानी फिल्म रोशोमन का उदाहरण देते हुए बताया कि किस तरह से एक ही घटना को अलग-अलग सात दृष्टिकोणों से रखा गया है और सभी दृष्टिकोण अपने आप में पर्याप्त हैं।

कार्यशाला के संयोजक डॉ अतुल मिश्र ने प्रिंस डायना और मदर टेरेसा के मृत्यु का उदाहरण देते हुए बताया कि मदर टेरेसा की मौत पर प्रिंस डायना से कम ही लिखा गया। कभी-कभी पत्रकारिता में सनसनीखेज सूचनाओं को अधिक महत्व मिल जाता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published.

five × 3 =

Related Articles

Back to top button