बहुत याद आएंगे स्वामी अग्निवेश
स्वामी अग्निवेश नहीं रहे। वे लंबे समय से लिवर सिरोसिस बीमारी से पीड़ित थे।
उन्हें मंगलवार को आईएलबीएस अस्पताल के आईसीयू में भर्ती कराया गया।
शुक्रवार को कई अंगों के काम करना बंद कर देने के बाद शाम 6 बजे उनका निधन हो गया।
उनके निधन पर तमाम राजनीतिक नेताओं ने शोक जताते हुए कहा कि स्वामी अग्निवेश को बंधुआ मजदूरों और स्त्री अधिकारों के लिए लड़ने वाले एक सच्चे धर्मनिरपेक्ष के तौर पर याद किया जायेगा।
जनादेश के संपादक ने लेख लिख किया याद
स्वामी अग्निवेश की मृत्यु पर जनादेश के संपादक अम्बरीश कुमार ने लिखा है –
वे सन्यासी थे। घर परिवार से कोई मतलब नहीं रहा। समाज के लिए जीते थे। समाज के लिए लड़ते भी थे।
समाज भी उनसे कई बार लड़ भिड जाता था। पर वे कभी बुरा नहीं मानते थे।
पिछली मुलाक़ात तो रामगढ़ में ही हुई जब वे घर आये थे। फिर आने को कह गए थे।
पर कब कौन चला जाए क्या पता। कोरोना की वजह से उनकी जान चली गई।
अपना संबंध अस्सी के दशक से था। इस दशक के मध्य से ही दिल्ली आना जाना शुरू हुआ और फिर जनसत्ता से जुड़ गया।
वर्ष 1988 से जनसत्ता में अपना लिखना-पढना आंदोलन से जुड़े लोगों से ज्यादा रहा।
खासकर बिहार, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में आंदोलन में जुटी जमात से। इनपर लिखा भी खूब।
किसान आदिवासियों पर भी इसी दौर में स्वामी अग्निवेश से मुलाक़ात हुई। अस्सी के दशक के अंतिम दौर से।
बंधुआ मुक्ति मोर्चा ने तब हरियाणा में बंधुआ बाल मजदूरी के खिलाफ अभियान छेड़ रखा था।
जनसत्ता की तरफ से इसकी कवरेज की जिम्मेदारी मुझे दी जाती थी।
कैलाश सत्यार्थी को अग्निवेश सुबह-सुबह घर भेजते थे। 26 आशीर्वाद एपार्टमेंट पटपड़गंज दिल्ली। यही अपना ठिकाना था।
इसी ठिकाने पर कैलाश सत्यार्थी सुबह-सुबह पहुंचते और याद दिलाते कि स्वामी जी ने आपसे बात की थी।
एक पुरानी जीप के साथ जिससे हम आगे जाते। फिर उस खटारा जीप से हरियाणा की यात्रा होती।
बंधुआ मजदूरों को छुडाने के अभियान की कवरेज करना होता था। एक दो बार तो हमले में बाल बाल बचा भी।
पर यदि आप आंदोलन कवर करते हैं तो इसके लिए तैयार रहना चाहिए।
बस्तर में मेधा पाटकर के साथ जब यात्रा कर रहा था, हमला तो तब भी हुआ था। यह सब पत्रकारों के कामकाज का हिस्सा होता है।
कैलाश सत्यार्थी के गुरु थे
खैर स्वामी अग्निवेश के निधन की खबर मिलते ही यह सब दृश्य सामने आ गए।
पिछली बार वे घर आये तो यह सब उन्हें भी याद आया।
अब तो कैलाश सत्यार्थी बड़े लोगों में शामिल हैं। पर पहले वे सामान्य कार्यकर्त्ता थे।
स्वामी अग्निवेश उनके गुरु थे। पर गुरु-शिष्य परम्परा अब कहां बच। दो साल पहले वे पहाड़ पर घर आये।
वे मुंशियारी से लौटे थे और कई पुराने किस्से बताये।
प्रणब मुखर्जी कोलकाता विश्विद्यालय में ला की पढ़ाई में इनके एक साल जूनियर थे, यह जानकारी भी प्रणब मुखर्जी ने उन्हें दी थी बहुत समय पहले।
खैर इससे पहले लखनऊ में इंडियन एक्सप्रेस के दफ्तर में वे मिलने आये जब राम जेठमलानी को वे चुनाव लड़ा रहे थे।
खबर तो लिखता ही रहता था पर स्वामी अग्निवेश का असर अपने पर भी रहा।
बदलाव की राजनीति में हिस्सेदारी
वे आर्यसमाजी रहे और बदलाव की राजनीति में बढ़-चढ़ हिस्सा लेते रहे .
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी। चुनाव से पहले वे फिर आये देर तक चर्चा की।
कहा राज्य में शराबबंदी को लेकर राजनीतिक दलों को घोषणा करनी चाहिए। पर यह संभव नहीं हुआ।
हरियाणा की राजनीति से लेकर देश में बदलाव की राजनीति तक वे लगातार सक्रिय रहे।
किसान आंदोलन से लेकर जन आन्दोलनों में भी उनकी बड़ी भूमिका थी।
विवाद भी हुए पर विवाद से उनके योगदान को कम कर नहीं आंका जा सकता है।
बहुत याद आएंगे स्वामी अग्निवेश।