फ़िल्म शेरदिल की कहानी में ख़ास बात क्या है!

शेरदिल की कहानी एक ऐसे इंसान की कहानी है जो अपने समाज को जीवित रखने के लिए खुद को कुर्बान करने का निर्णय लेता है। उसके इस निर्णय के बाद की घटनाओं में निर्देशक ने फ़िल्म के ज़रिए समाज का दोहरा चरित्र बेनकाब किया है।
शेरदिल में आप किसी घटना पर आजकल की मीडिया द्वारा किए जाते कवरेज को करीब से देख सकते हैं और डिजिटल इंडिया का सच भी आपको समय-समय पर झकझोरते जाता है।
भारत में गरीबों को शिक्षा से दूर कर उन्हें किताबों का तो नही, फ्री इंटरनेट का लती बना दिया गया है।जहां ज्ञान न हो वहां अन्याय तो होगा ही। इस इंटरनेट की वजह से किताब के लाखों शब्दों की जगह सोशल मीडिया पर प्रसारित कुछ पंक्तियों के मैसेज पढ़ना और चंद मिनटों के झूठ पर आधारित वीडियो देखना लोगों को आसान लगने लगा। राजनीतिक फायदा उठाते लोगों द्वारा लिखी कुछ ऐसी ही पंक्तियों में प्यार कम और नफरत अधिक थी।
उदयपुर की घटना भी इसी तरह की पंक्तियों और वीडियो का नतीजा मानी जा सकती है। असत्य पर सत्य की और नफरत पर प्रेम की जीत सदियों से होती जा रही है। हम प्यार फैलाने वाले मैसेज और वीडियो से इस नफरत को खत्म कर सकते हैं। इसी प्रेम के सन्देश को फैलाने का जिम्मा फ़िल्म ‘शेरदिल द पीलीभीत सागा’ के निर्देशक ने भी उठाया है।
फ़िल्म के निर्देशक श्रीजीत मुखर्जी को सिनेमा का बारह सालों का अनुभव है और उसी अनुभव के दम पर उन्होंने वर्ष 2014 से अब तक चार बार नेशनल फिल्म अवार्ड जीते हैं।श्रीजीत ने इस फ़िल्म में घने जंगल के बीच बैठे दो लोगों के बीच स्थापित तारतम्य से जंगल की अहमियत के साथ-साथ धार्मिक आडम्बर पर भी दर्शकों का ध्यान खींचा है।
गंगाराम नाम के ग्राम प्रधान बने पंकज त्रिपाठी और जिम अहमद नाम के शिकारी बने नीरज काबी ही इस कहानी के मुख्य पात्र हैं और इनकी जगह कोई अन्य पात्र आपके दिल में नही बसता।
फ़िल्म के अभिनेता पंकज त्रिपाठी गैंग ऑफ वासेपुर, बच्चन पांडे, 83, क्रिमिनल जस्टिस और मिर्जापुर में काम कर चुके हैं और उन्होंने इस फ़िल्म से खुद को मनोरंजन उद्योग के बड़े नामों में शामिल कर लिया है। नीरज काबी ने निश्चित तौर पर हाफ टाइम के बाद फ़िल्म का मजा दोगुना किया, वह जब कोई संवाद बोलते हैं तो दर्शक उन्हें सुनते हुए कहीं खो से जाते हैं। नीरज काबी में जिस तरह की काबिलियत है शायद मनोरंजन जगत में  उनको अभी तक उस तरह का सम्मान नहीं मिला है।
पंकज त्रिपाठी की पत्नी बनी सयानी गुप्ता की आंखें ही काफी कुछ कह जाती है लेकिन निर्देशक ने हाफ टाइम के बाद सयानी गुप्ता को कैमरे के सामने कम जगह दी है।
फ़िल्म का छायांकन पश्चिम बंगाल के जंगल की खूबसूरती हूबहू हमारे सामने रखने में कामयाब हुआ है। जंगल में जाला बुनती मकड़ी को देखते और जंगली जानवरों को खतरनाक आवाज़ सुनते आप जंगल से खौफ तो खाने ही लगेंगे। फ़िल्म का गीत-संगीत बड़ा ही कर्णप्रिय है और फ़िल्म के गाने जिस तरह लिखे गए हैं, आप उन्हें ध्यान से सुनेंगे। इसके गीतों में क्षेत्रीय शब्दों की भरमार है।’आदमी भूतिया है’ गीत इंसान की फितरत बयान करने के लिए काफी है तो ‘मोको कहां’ गीत दर्शकों की खुद से मुलाकात कराता है।
फ़िल्म में दिखाए गए गांव में बिजली नही होती और वहां घरों में बत्ती जली हुई दिखती है, आज भी भारत में ऐसे बहुत से गांव हैं। कुछ ऐसे दृश्य दिखाए जाने पर ही यह फ़िल्म खुद में अलग है।
फ़िल्म के संवाद कुछ इस तरह बन पड़े हैं कि वो इसके निर्देशक को मिलने वाले अवार्डों के क्रम को नही टूटने देंगे। ‘भूखे गरीब को कानून कहां याद रहता है’ संवाद गरीबों की व्यथा पर प्रकाश डालता है।जंगल की अहमियत पर संवाद ‘हम सबसे पहले जानवर, कीड़ों, मकोड़ों से पहले, इस धरती पर जिंदगी की शुरुआत से भी पहले। ये जंगल ही था’ वास्तविकता है।
गंगाराम और जिम अहमद के मध्य जंगल में हुआ एक संवाद हमारे देश की वर्तमान स्थिति के लिए बड़ा ही महत्वपूर्ण है। इसे देख आप फ़िल्म के पटकथा लेखक और निर्देशक के प्रशंसक बन जाएंगे।दृश्य की शुरुआत में जंगल के बीचों बीच एक पेड़ के नीचे बैठे गंगाराम, जिम अहमद से कहते हैं अरे महाराज आप क्यों धर्म भ्रष्ट करने पर तुले हो। हम शाकाहारी आदमी हैं, सब खिला कर हमें पाप का भागीदार बनाओगे! पूजा पाठ करना पड़ जाएगा गरीबी में आटा गीला।

इसे सुन जिम बड़ी सहजता से कहते हैं ‘अरे इतना मत सोचिए। ये असली गाय नही, नीलगाय है। एक किस्म का हिरन, अगले कुछ दिन इसी से काम चलाना पड़ेगा। देखिए भोजन का अपमान बहुत बड़ा पाप है।’
गंगाराम कहते हैं ‘ अरे महाराज हमें सुनिए, कहां बलिदान देकर स्वर्ग में जाना चाहते हैं। आप नर्क में क्यों धकेल रहे हो।’ये सुन जिम इस महत्वपूर्ण संवाद को आगे बढ़ाते बोलते हैं देखिए स्वर्ग और नरक ,जन्नत और जहन्नुम, ये सब इंसानों के बनाए फलसफे हैं जनाब। ये नंगी भूखी दुनिया किसी जहन्नुम से कम है क्या! भूखे के लिए रोटी से बड़ा जहन्नुम कुछ नहीं है, लीजिए शुरू कीजिए।जिम की ये बात सुन गंगाराम बड़े प्रभावित होते हैं और कहते हैं जब तक मर नहीं जाते तब तक तो जिंदा रहना ही पड़ेगा। (फिर वो उस टुकड़े को खाने लगते हैं)
जिम अब गंगाराम से सवाल करते हैं गाय होती तो भूखे पेट सो जाते क्या!

गंगाराम- बिल्कुल गाय हमारी माता है हम गौ पालक हैं, नहीं खाते।जिम इस पर कहते हैं हम भी एक बार भूख के मारे जंगली सूअर खा गए थे और खाने के बाद आपकी तरह डर गए थे कि हां यार तुम अल्लाह की नजर में गिरे हो, लेकिन जान बची तो लाखों पाए।गंगाराम इसे गौर से सुनने के बाद कहते हैं डर नहीं लगता आपको मुल्लाजी लोगों का।इस पर जिम बने नीरज काबी फिर से अपनी काबिलेतारीफ संवाद अदाएगी से कहते हैं हमारे एक एक गुनाह का रिकॉर्ड अल्लाह के पास है। तो यह हमारा पर्सनल मैटर है, जब हम उनके पास जाएंगे तब तय कर लेंगे। ये चार दिन की जिंदगी में क्या करना है क्या नही, ये कोई मौलाना या पंडित तय क्यों करे भाई।गंगाराम बने पंकज त्रिपाठी इस पर मुस्कुरा भर देते हैं।
फ़िल्म शेरदिल में एक कमी यह जरूर लगी कि इसके एक दृश्य में यह दिखाया गया है कि पंकज ‘महफूज’ नही समझते पर ‘सेफ’ समझ लेते हैं, यह दृश्य निर्देशक द्वारा दर्शकों को जबर्दस्ती हंसाने की कोशिश लगती है।
निर्देशक- श्रीजीत मुखर्जी, अभिनय- पंकज त्रिपाठी, सयानी गुप्ता, नीरज काबी छायांकन- तियाश सेन समीक्षक- हिमांशु जोशी @himanshu28may

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