‘स्टेंडर्ड औपरेटिंग प्रोसीजर’
यदि बी. पी. आर. ऐंड डी. (ब्यूरो औफ़ पुलिस रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट) देश में शांति-व्यवस्था भंग होने के विभिन्न प्रकरणों मेंं की गई कार्यवाही का अध्ययन करे तो वह अधिकांश प्रकरणों में एक ‘स्टेंडर्ड औपरेटिंग प्रोसीजर (एस. ओ. पी.)’ अवश्य पायेगा। उत्तर प्रदेश में यह प्रोसीजर 25 वर्ष पूर्व लागू हो गया था, जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वकीलों ने मुख्य न्ययाधीश के चैम्बर में घुसकर तोड़-फोड़ की थी। इस प्रकरण में खबर उड़ गई थी कि मुख्य न्यायाधीश केंद्र को लिखने वाले हैं कि राज्य सरकार सम्विधान-सम्मत चल पाने में अक्षम है। अतः आनन-फानन में आई. जी. ज़ोन, इलाहाबाद को निलम्बित कर दिया गया था। फिर सभी पक्ष पूर्णतः संतुष्ट हो गये थे और अपराधी वकीलों के विरुद्ध कार्यवाही से किसी को कोई मतलब नहीं रह गया था।
इस स्टेंडर्ड औपरेटिंग प्रोसीजर में निम्नलिखित सात सोपान होते हैं-
1. हिंसा एवं विध्वंस को रोकने हेतु पुलिस बल की तैनाती
2. अराजक तत्वों द्वारा हिंसा अथवा पुलिस की अवज्ञा करने पर पुलिस द्वारा बल प्रयोग
3. कतिपय मीडिया द्वारा उस बल प्रयोग का एकपक्षीय प्रस्तुतिकरण
4. स्वयम्भू विद्वानो एवं निपट अज्ञानियों द्वारा पुलिस कार्यवाही की निंदा और पुलिस का दैत्यीकरण
5. पुलिस कार्यवाही में कोई न कोई खोट (जो पुलिस के कार्य में अवश्यम्भावी होता है) निकालकर पुलिस वालों का निलम्बन
6. पीड़ितों (कभी-कभी विध्वंसकों को भी) को मुआविज़ा
7. न्यायिक जांच अथवा सी. बी. आई. जांच का आदेश
आप निष्पक्षता पूर्वक विचार करें तो पायेंगे कि शांति-व्यवस्था स्थापित करने का यह स्टेंडर्ड औपरेटिंग प्रोसीजर समय नष्ट करने वाला, खर्चीला एवं अराजक तत्वों को विध्वंस के अवसर प्रदान करने वाला है। यदि हम भविष्य में इस प्रोसीजर के सात सोपानो के क्रम में फेर बदल कर दें, तो अनेक झंझटों से बचा जा सकता है। यदि हम विंदु 5 की कार्यवाही अर्थात पुलिस वालों का निलम्बन सर्वप्रथम कर दें, फिर विंदु 6 की कार्यवाही अर्थात पीड़ितों को मुआविज़ा दे दें और फिर विंदु 7 अर्थात सी. बी. आई. या न्यायिक जांच का आदेश दे दें, तो विंदु नम्बर 1, 2, 3 और 4 की कार्यवाही की आवश्यकता ही नहीं रहेगी। सभी पक्षों की मांगें प्रारम्भ में ही पूर्ण हो जायेंगी और अशांति का कोई कारण ही नहीं रहेगा- ‘न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी’।