जानें, काशी-विश्वनाथ का आध्यात्मिक महत्व, कई महापुरुषों ने यहां आकर की महादेव की पूजा-अर्चना

मान्यता है कि अगर कोई भक्त बाबा विश्वनाथ के दरबार में हाजिरी लगाता है तो उसे जन्म जन्मांतर के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। बाबा का आशीर्वाद उनके भक्तों के लिये मोक्ष के द्वार खोल देता है।

विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में उपलब्ध जानकारी के मुताबिक यह सिलसिला प्राचीनकाल से चला आ रहा है। इस मंदिर में दर्शन पूजन के लिये आने वालों में आदिशंकराचार्य, संत एकनाथ, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, महर्षि स्वामी दयानंद, गोस्वामी तुलसीदास जैसे सैकड़ों महापुरुष शामिल हैं। वर्ष 1676 ई. में रीवा नरेश महाराजा भावसिंह तथा ​बीकानेर के राजकुमार सुजानसिंह काशी यात्रा पर आये थे। उन्होंने विश्वेश्वर ​के निकट ही शिवलिंगों को स्थापित किया।

मीडिया स्वराज डेस्क

भगवान शिव के बारह ज्योर्तिलिंगों में शामिल है विश्वप्रसिद्ध उत्तर प्रदेश की प्राचीन धार्मिक नगरी वाराणसी में हजारों साल पूर्व स्थापित श्री काशी विश्वनाथ मंदिर। शिव की नगरी काशी में महादेव साक्षात वास करते हैं। यहां बाबा विश्वनाथ के दो मंदिर बेहद खास हैं। पहला, विश्वनाथ मंदिर, जो 12 ज्योर्तिलिंगों में नौवां स्थान रखता है, वहीं दूसरा, जिसे नया विश्वनाथ मंदिर कहा जाता है, यह मंदिर काशी विश्वविद्यालय के प्रांगण में स्थित है। मान्यता है कि अगर कोई भक्त बाबा विश्वनाथ के दरबार में हाजिरी लगाता है तो उसे जन्म जन्मांतर के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। बाबा का आशीर्वाद उनके भक्तों के लिये मोक्ष के द्वार खोल देता है।

हिंदू धर्म में सर्वाधिक महत्व के इस मंदिर के बारे में कई मान्यताएं हैं। माना जाता है कि भगवान शिव ने इस ज्योर्तिलिंग को स्वयं के निवास से प्रकाशपूर्ण किया है। पृथ्वी पर जितने भी भगवान शिव के स्थान हैं, वे सभी वाराणसी में भी उन्हीं के सानिध्य में मौजूद हैं।

भगवान शिव के आने से देवस्थान बन गयी सारी काशी नगरी

भगवान शिव मंदर पर्वत से काशी आए, तभी से उत्तम देवस्थान नदियों, वनों, पर्वतों, तीर्थों तथा द्वीपों आदि सहित काशी पहुंच गए। विभिन्न ग्रंथों में मनुष्य के सर्वविध अभ्युदय के लिये काशी विश्वनाथ जी के दर्शन आदि का महत्व विस्तारपूर्वक बताया गया है। इनके दर्शन मात्र से ही सांसारिक भयों का नाश हो जाता है और अनेक जन्मों के पाप आदि दूर हो जाते हैं।

शिव के त्रिशूल की नोंक पर बसा है वाराणसी

काशी विश्वेश्वर लिंग ज्योर्तिलिंग है, जिसके दर्शन से मनुष्य परम ज्योति को पा लेता है। सभी लिंगों के पूजन से सारे जन्म में जितना पुण्य मिलता है, उतना केवल एक ही बार श्रद्धापूर्वक किये गये विश्वनाथ के दर्शन पूजन से मिल जाता है। माना जाता है कि सैंकड़ों जन्मों के पुण्य के ही फल से विश्वनाथ जी के दर्शन का अवसर मिलता है।

मान्यता है कि शिव के त्रिशूल की नोंक पर वाराणसी शहर बसा है। गंगा नदी के तट पर विद्यमान श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में वैसे तो सालभर यहां श्रद्धालुओं द्वारा पूजा अर्चना के लिये आने का सिलसिला चलता रहता है, लेकिन सावन आते ही इस मोक्षदायिनी मंदिर में देशी विदेशी श्रद्धालुओं का जैसे सैलाब उमड़ पड़ता है।

कई महापुरुषों ने यहां आकर की है पूजा अर्चना

विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में उपलब्ध जानकारी के मुताबिक यह सिलसिला प्राचीनकाल से चला आ रहा है। इस मंदिर में दर्शन पूजन के लिये आने वालों में आदिशंकराचार्य, संत एकनाथ, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, महर्षि स्वामी दयानंद, गोस्वामी तुलसीदास जैसे सैकड़ों महापुरुष शामिल हैं।

वर्ष 1676 ई. में रीवा नरेश महाराजा भावसिंह तथा ​बीकानेर के राजकुमार सुजानसिंह काशी यात्रा पर आये थे। उन्होंने विश्वेश्वर ​के निकट ही शिवलिंगों को स्थापित किया।

हिंदू वास्तुकला की यह अनमोल धरोहर इंदौर की महारानी अहिल्याबाई द्वारा वर्ष 1780 ई. में बनवाई गई थी। मंदिर का निर्माण वर्ष 1780 में भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष की अष्टमी को पूर्ण हुआ था। वर्तमान मंदिर का स्वरूप और परिसर आज मूल रूप से वैसे का वैसा ही है, जैसा कि महारानी अहिल्याबाई द्वारा वर्ष 1780 ई. में बनवाया गया होगा।

महारानी अहिल्याबाई ने करवाया था मंदिर का पुनर्निर्माण

हिंदू वास्तुकला की यह अनमोल धरोहर इंदौर की महारानी अहिल्याबाई द्वारा वर्ष 1780 ई. में बनवाई गई थी। मंदिर का निर्माण वर्ष 1780 में भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष की अष्टमी को पूर्ण हुआ था। वर्तमान मंदिर का स्वरूप और परिसर आज मूल रूप से वैसे का वैसा ही है, जैसा कि महारानी अहिल्याबाई द्वारा वर्ष 1780 ई. में बनवाया गया होगा। पंजाब के महाराजा रणजी​त सिंह ने वर्ष 1853 में एक हजार किलोग्राम शुद्ध सोने से मंदिर के शिखरों को स्वर्ण मंडित किया, जिसका स्वरूप आज भी विद्यमान है।

मोक्ष लक्ष्मीविलास मंदिर के ही समान इस मंदिर में 5 मंडप बनाने का प्रयत्न किया गया लेकिन विश्वनाथ जी के कोने में होने के कारण पूर्व दिशा में मंडप नहीं बन पाया। यही वजह है कि पूर्व दिशा में मंदिर का विस्तार किया गया है। इस विस्तृत प्रांगण में दोनों ओर शाला मंडप निर्मित हैं। हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मंदिर परिसर का विस्तार किया जा रहा है। मंदिर के शिखर पर जहां तक स्वर्णमंडन हुआ है, उसके नीचे के भाग को भी स्वर्णमंडित किये जाने का प्रयत्न ​वर्तमान मंदिर प्रशासन द्वारा किया गया है।

शिव को अत्यंत प्रिय है काशी नगरी

श्रुति स्मृति इतिहास तथा पुराणादि के अनुसार काशी सकल ब्रह्मांड के देवताओं की निवास स्थली है, जो शिव को अत्यंत प्रिय है। काशी में शिव के अनेकानेक रूप विग्रह, लिंग आदि की पूजा अर्चना की जाती है।

शिवपुराण के अनुसार काशी में देवाधिदेव विश्वनाथ जी का पूजन अर्चन सर्व पापनाशक, अनंत अभ्युदयकारक, संसाररूपी दावाग्नि से दग्ध जीवरूपी वृक्ष के लिये अमृत तथा भवसागर में पड़े प्राणियों के लिये मोक्षदायक माना जाता है।

मृत्यु के बाद यहां खुद महादेव देते हैं मुक्ति

ऐसी मान्यता है कि वाराणसी में मनुष्य के देहावसान पर स्वयं महादेव उसे मुक्तिदायक तारक मंत्र का उपदेश करते हैं। पौराणिक मान्यता है कि काशी में लगभग 511 शिवालय प्रतिष्ठित थे। इनमें से 12 स्वयंभू शिवलिंग, 46 देवताओं द्वारा 47 ऋषियों द्वारा, 7 ग्रहों द्वारा, 40 गणों द्वारा तथा 294 अन्य श्रेष्ठ शिवभक्तों द्वारा स्थापित किये गये हैं।

काशी या वाराणसी भगवान शिव की राजधानी मानी जाती है इसलिये अत्यंत महिमामयी भी है। अविमुक्त क्षेत्र, गौरीमुख, त्रिकंटक विराजित, महाश्मशान तथा आनंद वन प्रभृति नामों से मंडित होकर गूढ़ आध्यात्मिक रहस्यों वाली है।

क्या है इस मंदिर की कहानी

ऐसी मान्यता है कि एक भक्त को भगवान शिव ने सपने में दर्शन देकर कहा था कि गंगा स्नान के बाद उसे दो शिवलिंग मिलेंगे, और जब वो उन दोनों शिवलिंगों को जोड़कर उन्हें स्थापित करेगा तो शिव और शक्ति के दिव्य शिवलिंग की स्थापना होगी और तभी से भगवान शिव यहां मां पार्वती के साथ विराजमान हैं।

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एक दूसरी मान्यता के अनुसार, मां भगवती ने खुद महादेव को यहां स्थापित किया था। बाबा विश्वनाथ के मंदिर में तड़के सुबह की मंगला आरती के साथ पूरे दिन चार बार आरती होती है। मान्यता है कि सोमवार को चढ़ाये गये जल का पुण्य अधिक मिलता है, खासतौर पर सावन के सोमवार में यहां जलाभिषेक करने का अपना एक अलग ही महत्व है। कहते हैं कि सावन के किसी भी दिन यहां जल चढ़ाने से बा​बा प्रसन्न होते हैं।

काशी के कण कण में चमत्कार की कहानियां भरी हैं, लेकिन बाबा विश्वनाथ के इस धाम में आकर भक्तों की सभी मुरादें पूरी हो जाती हैं और जीवन धन्य हो जाता है। एक ओर शिव के विराट और बेहद दुर्लभ रूप के दर्शनों का सौभाग्य मिलता है तो वहीं दूसरी ओर गंगा में स्नान कर सभी पाप धुल जाते हैं।

नये पुराने काशी विश्वनाथ का एक सा महत्व

काशी हिंदू विश्वविद्यालय परिसर में मौजूद नए काशी विश्वनाथ मंदिर कहने को नया है, लेकिन इस मंदिर का भी उतना ही महत्व है, जितना पुराने काशी विश्वनाथ का। कहते हैं कि यहां आकर भोले भंडारी के दर्शन कर जिसने भी रूद्राभिषेक कर लिया, उसकी सभी मुरादें पूरी हो जाती हैं। उसके लिये मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं।

यहां सभी देवगण विराजते हैं और गंगा की धारा बहती है। वो परमतीर्थ वाराणसी कहलाता है। यहां आने भर से ही भक्तों की पीड़ा दूर हो जाती है। तन मन को असीम शांति मिलती है क्योंकि यहां स्वयं भगवान शिव विराजते हैं। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रांगण में काशी के राजा कहे जाने वाले भगवान शिव के दर्शन होते हैं, जिन्हें भक्त बाबा विश्वनाथ के नाम से ही पुकारते हैं।

यहां मौजूद एक भक्त बताते हैं, अगर भक्तों के जीवन में ग्रह दशा के कारण परेशानी आ रही है, ग्रहों की चाल ने जीना दूभर कर दिया है तो यहां आकर दर्शन करने के बाद रूद्राभिषेक किया जाये तो भक्तों को ग्रह बाधा से मुक्ति मिल जाती है।

मदन मोहन मालवीय का नया काशी विश्वनाथ

नए विश्वनाथ मंदिर की स्थापना की कहानी जुड़ी है पंडित मदन मोहन मालवीय से। कहते हैं कि एक बार मालवीय जी ने बाबा विश्वनाथ की उपासना की, तभी शाम के समय उन्हें एक विशालकाय मूर्ति के दर्शन हुये, जिसने उन्हें बाबा विश्वनाथ की स्थापना का आदेश दिया। मालवीय जी ने उस आदेश को भोले बाबा की आज्ञा समझकर मंदिर का निर्माण कार्य आरंभ करवाया। लेकिन बीमारी के चलते वे इसे पूरा न कर सके। तब मालवीय जी की मंशा जानकर उद्योगपति युगल किशोर बिरला ने इस मंदिर का निर्माण कार्य पूरा करवाया।

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