स्पेशल मैरिज ऐक्ट में शादी करने वालों को हाईकोर्ट की बड़ी राहत
प्रेम विवाह एवं अंतर्जातीय तथा अंतर्धामिक विवाह करने वालों को राहत
स्पेशल मैरिज ऐक्ट SPECIAL MARRIAGE ACT 1954 (विशेष विवाह अधिनियम) में प्रेम विवाह एवं अंतर्जातीय तथा अंतर्धामिक विवाह करने वालों को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने बड़ी राहत दी है.
अब तक स्पेशल मैरिज SPECIAL MARRIAGE ACT 1954 (विशेष विवाह अधिनियम) ऐक्ट में शादी के इच्छुक लोगों को एक महीने पहले फ़ोटो सहित नोटिस प्रकाशित करनी होती थी. इस नोटिस से की बार दोनों परिवार के लोग अथवा बाहरी लोग बवाल कर देते थे.
लेकिन अब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फ़ैसला दिया है कि स्पेशल मैरिज ऐक्ट SPECIAL MARRIAGE ACT 1954 (विशेष विवाह अधिनियम) का यह नियम संविधान में प्राप्त निजता के अधिकार का उल्लंघन है.
अदालत ने कहा कि स्पेशल मैरिज ऐक्ट (विशेष विवाह अधिनियम) के तहत अपनी मर्जी से शादी करने वालों के लिए जो एक महीने पहले शादी का नोटिस प्रकाशित कराने का नियम वैकल्पिक होगा. अगर कपल चाहेगा तो ही वो एक महीने पहले इसके लिए नोटिस प्रकाशित करवाएगा, अथवा नहीं. उसे इस सम्बंध में मैरेज आफ़िसर से लिखित निवेदन करना होगा.
जस्टिस विवेक चौधरी ने अपने फ़ैसले में कहा कि,“इस तरह के नोटिस पब्लिश करने को अनिवार्य बनाना मौलिक और निजता के अधिकारों का हनन होगा. जिनके तहत किसी भी शख्स को राज्य और अन्य कारकों के हस्तक्षेप के बिना शादी के लिए पार्टनर चुनने की आजादी भी शामिल है. 1954 के अधिनियम की धारा 5 के तहत नोटिस देते हुए शादी करने वाले जोड़े के लिए ये वैकल्पिक होगा कि वो मैरिज ऑफिसर को लिखित तौर पर बताएं कि धारा 6 के तहत वो नोटिस पब्लिश करवाना चाहते हैं या फिर नहीं.”
जस्टिस विवेक चौधरी ने अपने फ़ैसले में कहा कि,“इस तरह के नोटिस पब्लिश करने को अनिवार्य बनाना मौलिक और निजता के अधिकारों का हनन होगा. जिनके तहत किसी भी शख्स को राज्य और अन्य कारकों के हस्तक्षेप के बिना शादी के लिए पार्टनर चुनने की आजादी भी शामिल है. 1954 के अधिनियम की धारा 5 के तहत नोटिस देते हुए शादी करने वाले जोड़े के लिए ये वैकल्पिक होगा कि वो मैरिज ऑफिसर को लिखित तौर पर बताएं कि धारा 6 के तहत वो नोटिस पब्लिश करवाना चाहते हैं या फिर नहीं.”
कोर्ट ने आदेश दिया कि अगर शादी करने वाले जोड़े की तरफ से नोटिस को पब्लिश करने के लिए नहीं कहा जाएगा तो अधिकारी ऐसी कोई भी सूचना पब्लिश नहीं करेगा, साथ ही इस पर आपत्तियों को भी दर्ज नहीं किया जाएगा. अधिकारी शादी करवाने के लिए आगे की कार्यवाही करेगा.
कोर्ट के फ़ैसले के मुताबिक अधिकारी के पास बाकी तमाम अधिकार होंगे कि वो विवाह की अच्छे से जांच कर सके. जिसमें पक्षों की पहचान करना, उम्र का पता लगाना, साथ ही दोनों की सहमति की पुष्टि करना आदि शामिल है. अगर अधिकारी को शादी को लेकर कोई शक है तो वो इसके लिए और प्रमाण की मांग कर सकता है.
स्पेशल मैरिज एक्ट SPECIAL MARRIAGE ACT 1954 (विशेष विवाह अधिनियम) की धारा-5 के तहत अगर कोई लोग करना चाहते हैं तो पहले उन्हें मैरिज ऑफिसर को नोटिस देना होगा. जिसके बाद अधिकारी इसे धारा-5 के तहत अपनी फाइन में लगाने के अलावा सार्वजनिक कर देगा. जहां इसे कोई भी देख सकता है. इस नोटिस के सार्वजनिक होने के बाद इस विवाह को लेकर कोई भी अपना विरोध दर्ज करवा सकता है. या फिर बता सकता है कि इसमें किन नियमों और शर्तों का उल्लंघन किया जा रहा है.
कई मामलों में नोटिस सार्वजनिक होने के बाद डराया धमकाया जाता है. कुछ संगठन उन्हें लगातार परेशान करते हैं और शादी नहीं करने का दबाव बनाया जाता है. इसीलिए इस नियम को कोर्ट चुनौती दी गई .
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इस मामले में एक मुस्लिम लड़की और हिंदू लड़का स्पेशल मैरिज ऐक्ट SPECIAL MARRIAGE ACT 1954 (विशेष विवाह अधिनियम) में शादी करना चाहते थे, लेकिन उनके परिवार वाले सहमत नहीं थे. विवाह के इच्छुक जोड़े को डर था कि जैसे ही उनका शादी का प्रस्ताव प्रकाशित होगा, परिवार के लोग आपत्ति कर देंगे. हालाँकि परिवार वाले बाद में सहमत होते थे.
आजकल विदेश जाकर नौकरी के इच्छुक लोगों को भी, पारम्परिक शादी के बावजूद, अपनी शादी का स्पेशल मैरिज ऐक्ट (विशेष विवाह अधिनियम) में पंजीकरण काराना होता है.
राम दत्त त्रिपाठी, पूर्व संवाददाता, बीबीसी
Twitter : @Ramdutttripathi
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