गांधी जी आनंद भवन और इलाहाबाद की यादें…

गान्धीजी की अन्तिम यात्रा..

गान्धी जी और आनन्द भवन की कुछ यादें : अंग्रेजी राज के खिलाफ स्वतन्त्रता संग्राम की बहुसंख्यक निशानियां आज भी इलाहाबाद की हर एक गली व गांव में देखने को मिलेंगी, क्योंकि, इलाहाबाद आजादी की लड़ाई के अनेक वीर सपूतों की जन्मस्थली एवं कर्मस्थली है और शायद यही वजह थी कि स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान महात्मा गान्धी जी कई बार इलाहाबाद आये। विश्वविद्यालय के प्रोफसरों से लेकर किसानों तक को स्वराज की प्राप्ति के लिए आन्दोलित किया। गान्धी ने आन्दोलन में भाग लेने से पहले देश का दौरा किया था। इसके बाद वह आजादी की लड़ाई में इलाहाबाद की भूमिका को समझ सके। महात्मा गान्धी के कई बार इलाहाबाद आने से आजादी के लिये चल रहे संघर्ष पर भी बड़ा व्यापक प्रभाव पड़ा। यहां अधिकांश स्वतंत्रता सेनानी गान्धी के विचार पथ पर चल पड़े। आजादी के आन्दोलन में गान्धी के सत्य, अहिंसा के विचार को सबसे बड़ा हथियार मानने वालों की तादाद इलाहाबाद में बहुत अधिक थी।

संगम की धरती पर संयोग भरा पहला कदम…

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संगम नगरी इलाहाबाद

वास्तव में इलाहाबाद संगम नगरी की माटी पर मोहन दास करमचन्द गान्धी कदम रखना भविष्य में इतिहास गढ़ने का संकेत था। मोहनदास करमचन्द गान्धी 24 बरस की उम्र में 1893 में दक्षिण अफ्रीका गये। इंग्लैण्ड से बैरिस्टर बनकर लौटे थे। गुजराती व्यापारी दादा अब्दुल्ला का मुकदमा लड़ने डरबन पहुंचे। महात्मा गान्धी 3 वर्ष तक दक्षिण अफ्रीका रहने के बाद डरबन से हुगली जाने वाले ‘पोंगोंला जहाज‘ ;महात्मा गान्धी क्रोनोलॉजी से लिया गया हैद्ध से भारत आये। 4 जुलाई को वह कलकत्ता मेल से प्रयाग मुम्बई मार्ग से राजकोट के लिए रवाना हुए।

5 जुलाई 1896 को गान्धी जी रेलगाड़ी पर सवार थे और राजकोट से कलकत्ता जा रहे थे। बीच रास्ते में अचानक उनकी तबियत खराब हो गई। गाड़ी 11 बजे इलाहाबाद स्टेशन पर पहुंची। दरअसल गाड़ी यहां 45 मिनट खड़ी होती थी, उन्होंने दवा लेने की सोची। ‘उत्तर प्रदेश में गॉधी‘ पुस्तक में उद्धृत यह कथन बतौर गॉधी कहते हैं- ‘‘मैंने सोचा कि इतने समय में जरा शहर देख आऊं मुझे औषषि विक्रेता के यहां से दवा भी लेनी थी। औषधि विक्रेता ऊंघता हुआ बाहर आया। दवा देने में बड़ी देर लगा दी। ज्योंही स्टेशन पहुंचा गाड़ी चलती हुई दिखायी दी।

भले स्टेशन मास्टर ने गाड़ी एक मिनट रोकी भी पर मुझे वापिस आता न देख कर मेरा सामान उतरवा लिया।‘‘ जानसेनगंज दवा लेने के लिए जहां पहुंचे वह उस समय इलाहाबाद के डीएम जान्सटन के नाम पर रखा गया था। ट्रेन छूटने के बाद महात्मा गान्धी इलाहाबाद स्टेशन के ही पास कैलिनर होटल में ठहर गये। गान्धीजी दक्षिणी अफ्रीका में रह रहे भारतीयों की दुर्दशा को लेकर वह बेहद चिन्तित थे। इलाहाबाद में उन्होंने समय का सदुपयोग किया और ‘पायनियर‘ प्रेस चले गये। पायनियर को इलाहाबाद में जॉर्ज एलन द्वारा स्थापित किया गया। इन्हीं के नाम पर आज भी प्रयाग के समीप ही एलनगंज मुहल्ला है। गान्धी ने तत्कालीन सम्पादक मि0 चेेज़नी से प्रवासी भारतीयों के प्रति गोरों के अमानवीय तथा विषम व्यवहार के बारे में बताया। मि0चेज़नी ने गान्धी जी की पूरी बात सुनी और लेख छापने के लिए आश्वासन दिया।

गाँधी जी
महात्मा गाँधी

गान्धी ने इसी शहर में ग्रीन पेपर ग्रीन पैम्फलेट नामक रचना का निर्माण करने का निश्चय किया। ‘दक्षिण अफ्रीका में भारतीय मजदूरों पर होने वाली ज्यादतियां और गोरी सरकार की दमनात्मक नीतियों के सन्दर्भ में गॉधी द्वारा एक ग्रीन पेपर भारत में छप चुकी थी। उसके बारे में अंग्रेजी प्रेस ने प्रचार किया था कि अंग्रेजों को भारत में बदनाम करने के लिए गान्धी ने ग्रीन पेपेर छपवाकर बदनाम किया था। जब गान्धी द0 अफ्रीका पहुंचे मिस्टर लाटन के कहने पर जहाज से बाहर निकले तो गोरी जनता ने उन्हें घेरकर आक्रमण किया। मि0 लाटन जान बचाकर भाग गये थे। उनकी जान वहां के पुलिस कप्तान श्री अलेक्जेण्डर की पत्नी ‘सारा‘ ने अपने छाता को उनके सामने अड़ाकर बचाई थी। इस ग्र्रीनपेपर में गान्धीजी ने दक्षिण अफी्रका में हो रहे भारतीयों पर अत्याचार के बारे में इलाहाबाद से वापस जाने के बाद 14 अगस्त को लिखे थे। इलाहाबाद स्टेशन उतरना संयोग ही कहा जायेगा। किसे पता था कि इलाहाबाद में इक्का पर बैठकर विदेशी कपड़ा पहने जानसेनगंज में उतरने वाला एक दिन महात्मा की आवाज में लोगों की जुबान पर रहेगा और तन पर केवल एक धोती पहने फिर से इलाहाबाद में दिखेंगे। मोहन दास करमचन्द महात्मा गान्धी की यह इलाहाबाद में प्रथम संयोग भरी यात्रा थी।


1916 में गॉधी को महामना मदन मोहन मालवीय ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के उद्घाटन समारोह में आमन्त्रित किया था। उसके बाद इलाहाबाद आये। अमरनाथ झा की डायरी में दर्ज़ है कि 22 दिसम्बर 1916 को 3 से 5 बजे तक मालवीयजी के घर पर रूककर श्री पोलाक से बातचीत किया, फिर कालेज के फिजिक्स थियेटर में गान्धी ने एकोनॉमिक सोसायटी के समक्ष अपना पेपर पढ़ा। मैंने उनका पेपर लिया, जो शीट पर लिखा हुआ था, जिस पर उनका दक्षिण अफी्रकी पता ‘टॉलस्टाय फार्म जोहान्सबर्ग छपा था।


उसी समय 1916 22 दिसम्बर केो गॉधी इलाहाबाद के म्योर सेण्टर कालेज और अर्थशास्त्र समिति के तत्वाधान में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। स्वतन्त्रता के पहले ‘विलियम म्योर की स्मृति में म्योर सेन्ट्रल कालेज बना जो कि विश्वविद्यालय का ही अंग रहा। व्याख्यान का विषय था, ‘क्या आर्थिक प्रगति वास्तविक उन्नति के विपरीत जाती है? इस भाषण में आर्थिक समृद्धि से नैतिक समृद्धि के ह्नास होने की बात पर जोर देते हुए गान्धीजी ने अन्त में कहा,-‘‘ब्रिटिश छत्र छाया में हमने बहुत कुछ सीखा है, किन्तु मेरा यह निश्चित मत है कि ब्रिटेन यथार्थ नैतिकता की दिशा में कुछ भी देने में असमर्थ हैं। ‘‘……… हमें सर्वप्रथम देवी सम्पद् की, परम्पिता के राज्य और उसकी पविेत्रता की कामनी करनी चाहिए। जो ऐसा करेगा उसे यह अमोघ वचन मिला हुआ है। उसके पास सब वस्तुएं आ जायेंगी। सच्चा अर्थशास्त्र यही है।‘‘ इस समारोह में प0 मदन मोहन मालवीय अध्यक्ष थे। तेज बहादुर सप्रू, डॉ सुन्दर लाल,विश्वविद्यालय के तत्कालीन उप कुलपति एच0एस0एल0 पोलक, सर्वश्री चिन्तामणि, शिव प्रसाद गुप्ता, पुरूषोत्तम दास टण्डन आदि उपस्थित रहे। दूसरे ही दिन 23 दिसम्बर को कटघर रोड पर प्राचीन और अर्वाचीन शिक्षा पर भाषण दिया था।
महात्मा गान्धी 6 फरवरी को मोती लाल नेहरू की मृयु के बाद उनका शव लेकर प्रयाग आ गये। गान्धी 16 फरवरी तक इलाहाबाद में ही रहे । शास्त्रीजी, तेज बहादुर सप्रू और जयकर से बातचीत करते रहे। इसी दौरान गान्धी ने इलाहाबाद से ही वाइसराय लार्ड इर्विन को पत्र लिखा। पत्र में पुलिस द्वारा की जा रही बर्बर बर्ताव पर चर्चा करने के साथ ही अन्य ुद्दों पर मिलने के लिए भी कहा। 16 फरवरी को महात्मा गान्धी इलाहाबाद से दिल्ली चले गये। उसके बाद बहुत दिनों तक बातचीत के बाद 5 मार्च 1931 को गान्धी-ईर्विन समझौता हुआ। समझौते के बाद भी अंग्रेज अपने गलत इरादों से काम करता रहा। अंग्रेजों की कू्रूरता कम नहीं हो रही थी। गान्धी को फिर नये वाईसराय लार्ड विलिंगडन से मिलने शिमला जाना पड़ा था।

आनन्द भवन

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आनन्द भवन

स्वराज भवन पहले इलाहाबाद कांग्रेस अस्पताल था। 1930 में इलाहाबाद में जवाहर लाल नेहरू ने एक सभा की, जिसमें महात्मा गान्धी भी आये हुए थे। कमला नेहरू भी इसी दौरान गिरफ्तार कर ली गईं, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया था। इस दौरान उन्होंने घर के ही अन्दर एक अस्पताल बनवाया, जिसमें वह राष्ट्रवादियों की देखभाल किया करती थीं, लेकिन इस बात की सूचना मिलने पर ब्रिटिश अधिकारियों ने आन्दोलन के दौरान इसके उपकरण, दवाईयां और एम्बुलेन्स को जब्त कर लिया था। अप्रैल 1932 में यह हस्पताल स्वराज भवन की पास की ईमारत में चलाया जाने लगा, लेकिन अंग्रेजों की आंखों में किरकिरी मची हुई थी।

अस्पताल जब्त करने के बाद ही अंग्रेजों को चैन मिला। कुछ दिन तो मरीजों की देखरेख पेड़ के नीचे ही की गई बरसों बाद कमला नेहरू की मृत्यु के बाद मोहनदास करमचन्द गान्धीजी द्वारा 19 नवम्बर 1939 को कमला नेहरू अस्पताल का शिलान्यास किये। उसके बाद भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक भी हुई, जिसमें महत्त्वपूर्ण वार्ता हुई। कार्यसमिति की बैठक के बाद गान्धी ने कई कार्यकर्ताओं से मुलाकात भी की। जनवरी 1940 में भी राष्ट्रपिता महात्मा गान्धी इलाहाबाद में आयोजित हुई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में उपस्थित हुये थे। यह बैठक आनन्द भवन के स्वराज भवन में हुई थी। इस बैठक में विजय लक्ष्मी पण्डित,जे0बी0 कृपलानी, सरदार बल्लभभाई पटेल,विजय लक्ष्मी पण्डित मौजूद थे।

नए संसद भवन निर्माण को स्थगित करना ही बेहतर(Opens in a new browser tab)

शिलान्यास के बाद 1941 में 28 फरवरी को महात्मा गान्धी इलाहाबाद आये और कमला नेहरू अस्पताल का उद्घाटन किया। उस अवसर पर उन्होंने भाषण भी दिया, जिसमें कमला नेहरू के देश सेवा और त्याग की बात की। उन्होंने आशा भी की कि, यह अस्पताल उनकी स्मृति में उसी प्रेरणा से दु-खी मानवता की सेवा भी करता रहेगा। स्वतन्त्रता के बाद करछना से इलाहाबाद की पहली महिला विधायक डॉ0 कमल गोईन्दी के भाई स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शुभेन्द्रसिंह गोईन्दी ने कमला नेहरू अस्पताल उद्घाटन में महात्मा गान्धी का भाषण सुने थे, जिसमें अनेक बातों में एक बात गान्धी ने चिन्ता के साथ कही थी- मुझे इतना भव्य भवन देखकर डर लग रहा है कि निरीह व्यक्ति यहां आ सकेगा कि नहीं।

दूसरे विश्व युद्व के दौरान जब गान्धी ने भारत छोड़ो आन्दोलन का शंखनाद किये तो अंग्रेज समझ गये कि अब भारत के लोग नहीं रूकने वाले। हर शहर-गांव, गली-मुहल्ला आजादी के लिए मर मिटने के लिए तैयार था। आजादी की लड़ाई के दौरान आनन्द भवन कांग्रेस का राष्ट्रीय कार्यालय हुआ करता था। यहीं से कांग्रेस देश भर में कार्य करता रहा। महात्मा गान्धी हमेशा यहीं रूका भी किया करते थे। बाद में गान्धी ने वर्धा में जाकर 8 अगस्त को मुम्बई में कांग्रेस कार्य समिति की बैठक की।

आनन्द भवन
आनन्द भवन

संशोधन के पश्चात् 9 अगस्त को पूरे देश में भारत छोड़ो आन्दोलन का विगुल बज गया। इस मौके पर जब गान्धी इलाहाबाद के आनन्द भवन में आये तो शहर के तमाम आन्दोलनकारी, समाजकर्मी और बुद्धिजीवी वर्ग उनसे मिलना चाह रहे थे। अत्यधिक भीड़ होने के कारण वह सभी से नहीं मिल पा रहे थे। भीड़ को देखते हुए निर्णय लिया गया कि सम्बोधन ऊपर जाकर छत से किया जाए तो बेहतर होगा, वही किया भी गया। 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान ब्रिटिश सरकार के खिलाफ गतिविधि चलाने के आरोप में आनन्द भवन को 1947 तक कब्जे में रखा गया था।

आजादी की लड़ाई के दौरान आनन्द भवन कांग्रेस का राष्ट्रीय कार्यालय हुआ करता था। यहीं से कांग्रेस देश भर में कार्य करता रहा। महात्मा गान्धी हमेशा यहीं रूका भी किया करते थे। बाद में गान्धी ने वर्धा में जाकर 8 अगस्त को मुम्बई में कांग्रेस कार्य समिति की बैठक की। संशोधन के पश्चात् 9 अगस्त को पूरे देश में भारत छोड़ो आन्दोलन का विगुल बज गया।

गान्धीजी का पहली बार इलाहाबाद आना संयोग था, वहीं अन्तिम बार स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सरदार भगवान सिंह गोईन्दी की बेटियों से मिलना भी संयोग ही कहेंगे। डॉ कमल गोईन्दी, उत्तर प्रदेश महिला कालेज की प्रथम प्राचार्या डॉ0 सुचेत गोईन्दी और कस्तूरबा गान्धी राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट की पूर्व मन्त्री डॉ सन्तोष गोईन्दी जब 11-12 साल की थी, तभी वह महात्मा गान्धी से सितम्बर 1947 में इलाहाबाद स्टेशन जाकर ट्रेन में मिली। उस दिन सोमवार होने के कारण गान्धीजी मौन थे, लेकिन बिना बोले ही सब कुछ सिखा गये। सिर पर उनके जादुई हाथ का स्पर्श ऐसा रहा कि गोईन्दी बहनें आज भी सत्याग्रह के मार्ग पर अडिग हैं।

गान्धीजी की अन्तिम यात्रा...

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गान्धीजी की अन्तिम यात्रा

30 जनवरी 1948 को बिड़ला भवन में राष्ट्रपिता महात्मा गॉधी को मौत की नींद सुला दिया गया। उनके अन्तिम संस्कार के बाद गॉधी के अस्थियों को देशभर में ले जाया गया गया। इलाहाबाद में भी अस्थि कलश लाया गया, जिसे आनन्द भवन में रखा गया। एनआईपी के सम्पादक वीएस दत्ता गॉधी की मृत्यु की ,खबर को कुछ यूं बयां करते हैं-
‘‘इलाहाबाद में महात्मा गॉधी के मृत्यु की खबर आग की तरह फैल गई। चारो तरफ सन्नाटा छा गया!

उस समय टीवी तो नहीं थी। स्थानीय रेडियो स्टेशन भी नहीं था। आकाशवाणी दिल्ली या लखनऊ सुनना पड़ता था। गान्धी की मृत्यु हो गई, इसकी खबर एक शोक धुन से सुनने को मिल रही थी । उस समय कम्पनी बाग में जिमखाना क्लब में लॉन टेनिस प्रतियोगिता चल रही थी, जिसमें हिस्सा लेने के लिए विदेश से भी खिलाड़ी आये हुए थे। पाकिस्तान के गौस मुहम्मद मैदान में थे । जैसे ही उन्होंने गॉधी की शहादत को सुना वैसे ही खेल बन्द करा दिया। टुर्नामेण्ट वहीं का वहीं रोक दी गई। इलाहाबाद के इतिहास में ऐसा पहली व आखिरी बार हुआ कि शहर के सभी सिनेमा हॉल 13 दिन के लिए बन्द कर दिये गये। रात साढ़े आठ बजे पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पौने नौ बजे उप प्रधानमंत्री सरदार बल्लभभाई पटेल ने बापू को श्रद्धांजलि दी।

पं0 नेहरू बहुत भावुक थे। रूंधे गले से कह रहे थे- रेडियो पर सुनने को मिला कि ‘हमारे जीवन से रोशनी चली गई। अब चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा है। आगे उसी स्पीच को बढ़ाते हुए कहा कि रोशनी लेकिन गायब नहीं हुई है, सदियों तक वह मार्गदर्शन करती रहेगी।‘ ‘रेडियो स्टेशन में न तो जवाहर लाल नेहरू और न ही सरदार बल्लभभाई पटेल ने हत्यारे का नाम लिया, सिर्फ इतना ही कहा था कि किसी सिरफिरे, पागल आदमी ने उन पर गालियों चला दीं। इसका नतीजा ये हुआ कि पंजाबी समुदाय घबरा गया। कुछ ही दिन पूर्व मदनलाल नाम के एक युवक ने गॉधी पर प्रार्थना सभा में बम फोड़ा था। बापू ने ऐलान किया था कि वह पाकिस्तान का दौरा करेंगे। वहां भी शान्ति का सन्देश देंगे। पं0 नेहरू तब तक पाक प्रधानमंत्री लियाकत अली खान के साथ हवाई उड़ान से लयालपुर फैसलाबाद गये थे।

संयुक्त सभा में शान्ति की अपील भी की थी। कुछ पंजाबी नहीं चाहते थे कि गॉधी पाकिस्तान जायें। वैसे भी दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में पंजाब से आये शरणार्थी की बात से भड़क उठे। वह चाहते थे खून का बदला खून। गॉधाी के अहिंसक विचारधारा में यह विचार कहीं भी तालमेल बैठ नहीं रहा था। संयुक्त सभा में शान्ति की अपील भी की थी। उधर मुस्लिम समुदाय भी भयभीत था। अगर हत्यारा मुस्लिम हुआ तब तो सभी हिन्दू मिलकर उन पर हमला बोल देगा। काफी मुसलमान शरण लेने एक कांग्रेस के मुसलमान नेता श्री महबूब अली के घर इलाहाबाद में राजापुर म्योर रोड चले गये। वह मुस्लिमों की भीड़ देख किसी ने पुलिस को फोन कर दिया। जब पुलिस को पता चला कि मुस्लिम किसी को इकट्ठा नहीं कर रहे थे, बल्कि अपनी सुरक्षा के लिए आये थे तब उन्हें सुरक्षा प्रदान की गई। देर रात को पता चला कि हत्यारा कोई महाराष्ट्र का युवक है तब जाकर लोगों का तनाव कम हुआ। पंजाबियों और मुसलमानों ने शान्ति की सांस ली। मुझे नहीं भूलता एक गीत बापू जिसके बजते ही टै्रफिक अपने स्थान पर रूक जाता था,
सुनों सुनों ये दुनिया वाले
बापू की यह अमर कहानी
वह बापू जो पूज्य है इतना
जितना गंगा मां का पानी।

ये गीत इलाहाबाद में चौराहे -चौराहे पर सुनने को मिले।
याद रहे बापू की कहानी भूल न इसको जायें हम, बापू ने जो दिया जलाया उसकी ज्योति जलाएं हम, जय बापू की जय गान्धी की बोलो सब जन जय गान्धी—जय गान्धी।
आज भी गान्धी की यादें आनन्द भवन में संजोकर रखी गई हैं।

आनन्द भवन का कमरा
आनन्द भवन का कमरा


आज भी आनन्द भवन में एक कमरा गान्धी के लिए सुरक्षित हैं। इस कक्ष में पलंग,कुर्सी-मेज, कपड़े, चरखा, तीन बन्दरों का स्टैच्यू। इस प्रतीक का अभिप्राय लिखा गया है- मम दव मअपसए मंत दव मअपसए चमं दव मअपसण् आज भी आनन्द भवन को देखने के लिए प्रतिदिन हजारों लोग से आते हैं। इलाहाबाद के आजाद पार्क पब्लिक लाईब्रेरी में भी गान्धी की यादें सजोकर रखी गई हैं।

इलाहाबाद में गान्धी-विचार इस तरह रच-बस गया कि कई लोग स्वराज व स्वदेशी की कमान अभी भी संभाले हुए हैं। इलाहाबाद गान्धी को आत्मसात् करता है। जीवन में जीता भी है। इस शहर में गान्धी विचारधारा अभी भी सत्य और अहिंसा के साथ जीवित है।

डॉ. सरिता श्रीवास्तव
डॉ. सरिता

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