साधना की सभी युक्तियों में भक्ति जोड़ने से स्थितप्रज्ञ की स्थिति
गीता प्रवचन दूसरा अध्याय
संत विनोबा कहते हैं कि वह साधना की अपनी सब युक्तियाँ काम में लाये, और फिर भी कमी रह जाये तो उसमें भक्ति जोड़ दे।
यह बड़ा कीमती सुझाव भगवान् ने स्थितप्रज्ञ के लक्षणों में दिया है। हाँ, वह दिया है गिने-गिनाये शब्दो में ही।
परंतु ढेरों व्याख्यानों की अपेक्षा वह अधिक कीमती है; क्योंकि जहाँ भक्ति की अचूक आवश्यकता है, वहीं वह उपस्थित की गयी है।
स्थितप्रज्ञ लक्षणों का सविस्तार विवरण हमें आज यह नहीं करना है।
परंतु अपनी इस सारी साधना में भक्ति का अपना निश्चित स्थान भूल न जायें, इसलिए इसकी और ध्यान दिला दिया।
पूर्ण स्तिथप्रज्ञ इस जगत में कौन हो गया, सो तो भगवान् ही जाने; परंतु सेवापरायण स्थितप्रज्ञ के उदाहरण के रूप में पुंडलीक की मूर्ति सदैव मेरी आँखों के सामने आती रहती है। वह मैंने आपके सामने रख ही दी है।
अच्छा, अब स्थितप्रज्ञ के लक्षण पूरे हुए , दूसरा अध्याय भी समाप्त हुआ।
(निर्गुण) सांख्य-बुद्धि +(सगुण) योग-बुद्धि+ (साकार ) स्थितप्रज्ञ
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मिलाकर
संपूर्ण जीवन–शास्त्र।
इसमें से ब्रह्मनिर्वाण यानी मोक्ष के सिवा दूसरा क्या फलित हो सकता है? क्रमश: