बैठे -ठाले
—मीरा सिन्हा
जी हाँ यह न कोई लेख है न कहानी बस मन मे उठते स्वच्छंद विचार है जो पक्षियों की भाँति मन केउन्मुक्त आकाश मे विचरण कर रहे हैं जब मोदी जी ने24 अप्रैल की रात को लॉक डाउन की घोषणा की तो मुँह खुला का खुला रह गया 21दिन तक ट्रेन,हवाई जहाज,बस सब बन्द ऐसा लगा कि समय ठहर गया हो मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है सबसे बड़ी सजा उसकी यही है कि उसे समाज से काट दिया जाये यह कैसा अन्याय हैकि 135करोड़ देशवासी कोरोना नाम की महामारी से ड़र कर अपने घर पर रहने को मजबूर थे मुझे तो कोरोना पुराणो मे वर्णित कोई राक्षस लग रहा है जिसका शरीर सम्पूर्ण विश्व मे फैल चुका है और वहअपने कई मुखों से मनुष्य का जीवन लील रही हैं और अट्टहास कर रही है मानव की बेबसी पर शायद बताना चाहता हैं कि मनुष्य चाहे जितनी प्रगति कर ले प्रकृति के आगे विवश है 25तारीख की अवसाद भरी भोर होती है
चारों तरफ़ सन्नाटा सड़कों पर आवागमन नही काम करने वालों की भी आवाजाही नही सड़के एकदम स्वच्छआकाश निर्मल वातावरण प्रदूषण रहित चलो लॉक डाउन का कुछ तो फायदा हुआ चारो तरफ निरवता बस उसकोभंग करती हुई कुछ बच्चों और परिचितो के फ़ोन जो आज कुछ ज्यादा ही आ रहे हैं कहा जाता हैकि हर समस्या का सामना सीना तान के करना चाहिए पर यहाँ तो कृष्ण की भांति रण छोड़ की नीतिअपनानी होगी वरना ना जाने कितनो का विनाश करेगी हेल्पर तो आज आयेंगे नही घर की सफाई करके और मनपसंद खाना बना कर बहुत आत्म सन्तोष मिलता हैं फिर पौधॉ को पानी देता हूं उनकी साज संवार करता हूँ मिट्टी लगे हाथ जब धोने जाता हूँ तो याद आता है कि इस बीमारी के संक्रमण को रोकने के लिए बार बार हाथ धोना जरूरी है:अचानक मुझे पुराना समय याद आने लगा जब यह सब नित्यप्रति के व्यवहार में था फिर यह सब पुरातनपन्थी लगने लगा मेरे लॉन मे गौरैया दिखाई दे रही है कही से कोयल की कूक भी सुनाई दे रही है 4-5कबूतर भी आ कर बैठ गये है मै उन लोगों को दाना
हूँ धीरे-धीरे करके मुझे इस लॉकडाउन में आनन्द आने लगा हमारे समाज में तो सोशल डिस्टें3 सींग का बहुत महत्त्व है शिशु के जन्म पर प्रसूतिका गृह अलग कर दिया जाता है और वहाँ हर किसी का प्रवेश वर्जित होता है टी वी मे समाचार आ रहा है कि मरीज के सम्पर्क में आने वाले लोगों को 14 दिन के लिये quarantine किया जाता है हम लोगों के यहाँ तो यह प्रथा बहुत पुरानी बात हैं किसी की परिवार मे मृत्यु होने पर उसके परिवार को कुछ समय के लिये समाज से अलग कर दिया जाता है ताकि यदि मृतक कोकोई बीमारी रही हो तो उसका संक्रमण पूरे समाज मे ना फैले रथ यात्रा के पहले जगन्नाथजी भी 14दिन के लिये एकांत वास पर जाते हैं बहुत ही शोध परक और वैज्ञानिक है
हमारे समाज की मान्यताये आज तो पूरा विश्व नमस्ते कर रहा है चार लॉक डाउन हो चुके है भारत में भी संक्रमण बहुत तेजी से फैल रहा है पर लॉक डाउन हमेशा तो नही रह सकता है अत:कुछ शर्तों के साथ लॉक डाउन खोल दिया गया मै गंगा जी की तरफ निकल गया था गंगा एकदम निर्मल और स्वच्छ दिखाई दे रही थी पर जब तक इस महामारी की वैक्सीन या कोई कारगर दवा नही मिल जाती तब तक हमे इससे लड़ने के लिये आत्मसंयम बरत्ना होगा