वैष्णव संप्रदाय के प्राण -पुरुष श्रीरामानुजाचार्य

डा चंद्र्विजय चतुर्वेदी ,प्रयागराज

विशिष्टाद्वैत दर्शन के प्रवर्तक ,वैष्णव सम्प्रदाय के प्राण -पुरुष श्रीरामानुजाचार्य ने सनातन धर्म के अनुष्ठान पद्धति में क्रांतिकारी परिवर्तन करते हुए ऐसी उपासना पद्धति प्रतिष्ठित की, जिसमे ब्राह्मण से चांडाल तक के लिए सर्वोच्च आध्यात्मिक उपासना का मार्ग प्रशस्त हुआ .

ऐसे महान पुरुष का अवतरण 8मई १०५७ई को वैशाख शुक्ल षष्ठी को तमिलनाडु के कांचीपुर के समीप पेरुम्बदुर में हुआ था .बाल्यकाल में ही गुरुकुल में पढ़ते हुए गुरुओं के समक्ष अपनी मेधा का परिचय दिया की इनके गुरुजन अचंभित हो जाते थे .

किशोर रामानुज की धार्मिक निष्ठां को वरदराज के परम भक्त शुद्र्वर्ण में पैदा हुए कांचिपूर्ण महाराज ने विकसित की और रामानुज को विशिष्ठाद्वैत का पाठ पढ़ाते हुए दीक्षित किया की जीव और इश्वर में भेद है ,जगत के कारण प्रकृति के कारण परम ब्रह्म परमेश्वर हैं .

रामानुज ने वैष्णव मन्त्र की दीक्षा भी शुद्रोकुलोत्पन्न महापूर्ण महाराज से ली .उनके गुरूजी ने मन्त्र की दीक्षा देते हुए रामानुज को निर्देशित किया की यह गोपनीय मन्त्र है जो इसे धारण कर इसे सिद्ध करेगा उसे वैकुण्ठ की प्राप्ति होगी .इस मन्त्र को धारण कर सार्वजनिक करने वाला नरकगामी होगा .रामानुज ने इस मन्त्र ओउम नमो नारायणाय को धारण कर इसे सिद्ध किया जिससे उन्हें अभूतपूर्व आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव हुआ .

इस ऊर्जा ने उन्हें प्रेरित किया की इस वैष्णव मन्त्र को क्यों न सर्वसुलभ कर दिया जाए ,एक दिन उन्होंने घोषणा की जो कोई इस असार संसार में कष्टों का निवारण तथा वैकुण्ठ धाम प्राप्त करना चाहता है वह मेरे साथ तीन बार वैष्णव मन्त्र का उच्चारण करे .भारी संख्या में लोग उपस्थित हुए .रामानुज के साथ ओउम नमो नारायणाय का उदघोष किया .


मन्त्र के सार्वजनिक किये जाने पर रामानुज के गुरु बहुत रुष्ट हुए .रामानुज ने उनका चरण पकड़ कर कहा यदि वैष्णव मन्त्र से सर्वजनो का कल्याण हो तो मैं सहर्ष नरक जाने को तैयार हूँ .रामानुज के परहित चिंतन से गुरु गोष्ठिपूर्ण महाराज बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने रामानुज को वैष्णव मत के प्रचार प्रसार के लिए प्रेरित किया .


वैष्णव सम्प्रदाय के लिए रामानुज का बिज मन्त्र था —न जातिः करणं लोके गुणाःकल्याण हेतवे –अर्थात संसार में जाति नहीं गुण ही कल्याण का कारक है .रामानुज ने बताया की संसार में जाति के अहंकार से बढकर दूसरा कोई शत्रु नहीं है .रामानुज ने लाखों शूद्रों और अन्त्यजों को वैष्णव विश्वास से युक्त किया .

उन्होंने उद्घोष किया की एक मात्र इश्वर ही सत्य है और उसकी सेवा ही परम पुरुषार्थ है .शास्त्रज्ञान यदि भगवद्भक्ति न उत्पन्न कर केवल पांडित्य का अभिमान ही बढाए तो वह मिथ्या ज्ञान है ,वल्कि अज्ञानी ही उससे अच्छा है .

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Articles

Back to top button