शिव कान्त
का विश्लेषण सटीक और प्रासंगिक है.अप लोड करने की देरी खल रही है. राजनाथ सिंह के रूस पहुचने से पूर्व लगना चाहिए था.
चीन की छुरा घौपने की निति को समझने जरूरी है.सन् 1962 में बूशीचय्यान की यात्रा के समय भी यही हुआ था.जब हिन्दी चीनी भाई भाई का राग अलापने के बाद भी हमला हुआ था.
नेहरू ने आकाशवाणी से सम्बोधन में कहा था, “असम के लोगों से क्या बीत रही है? हम जानते हैं पर कुछ कर नहीं सकते हैं.” असम के लोग आज भी उस कथन को याद कर लेते हैं.
अब तो कांग्रेस ने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के साथ समझौता कर लिया है ही. फिर क्या उम्मीद करनी चाहिये.
भारत की जनता ऐसी ही है. तानाशाह इन्दिरा गांधी को भी तो जिताया था.
शिव कान्त
का विश्लेषण सटीक और प्रासंगिक है.अप लोड करने की देरी खल रही है. राजनाथ सिंह के रूस पहुचने से पूर्व लगना चाहिए था.
चीन की छुरा घौपने की निति को समझने जरूरी है.सन् 1962 में बूशीचय्यान की यात्रा के समय भी यही हुआ था.जब हिन्दी चीनी भाई भाई का राग अलापने के बाद भी हमला हुआ था.
नेहरू ने आकाशवाणी से सम्बोधन में कहा था, “असम के लोगों से क्या बीत रही है? हम जानते हैं पर कुछ कर नहीं सकते हैं.” असम के लोग आज भी उस कथन को याद कर लेते हैं.
अब तो कांग्रेस ने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के साथ समझौता कर लिया है ही. फिर क्या उम्मीद करनी चाहिये.
भारत की जनता ऐसी ही है. तानाशाह इन्दिरा गांधी को भी तो जिताया था.