शेखर गुप्ता : एक जुझारू पत्रकार

त्रिलोक दीप
त्रिलोक दीप

—त्रिलोक दीप

आज शेखर गुप्ता के बारे में लिखने का मन कर रहा है। पिछले दिनों काफी वक्त के बाद उनसे फ़ोन पर बात हुई।इससे पहले कि मैं अपना परिचय दे पाता उनका पहला सवाल था, कैसे हो। अपने आपको अच्छी तरह से बचा कर रखो।
क्या आपने मुझे पहचान लिया के उत्तर में बोले, ‘सभी कुछ आंखों के सामने आ गया है। होर दस्सो की हो रया है।’ हम लोग अक्सर पंजाबी में ही बातें करते हैं। यह पूछे जाने पर कि ‘ThePrint’ वेबसाइट की तो खूब धाक है बोले, ‘कोशिश कर रहे हैं, सारे साथी भी बहुत मेहनती हैं।’
शेखर गुप्ता का नाम भी तो जुड़ा है, जवाब था ‘सिर्फ नाम से कुछ नहीं होता। उसको बनाये रखने के लिए निरंतर परिश्रम करना पड़ता है जिसे हम सभी लोग मिलकर कर रहे हैं। ‘ आपके फ़ोटो एडिटर प्रवीण जैन और एक रिपोर्टर तो कोरोना का शिकार भी हो गयी थीं? शेखर गुप्ता का कहना था, बावजूद इसके उन्होंने बहुत काम किया। स्वस्थ होने के बाद अब सभी लोग बहुत एहतियात बरत रहे हैं।
शेखर गुप्ता से पहली मुलाकात कब हुई ठीक से याद नहीं लेकिन इतना तो दावे के साथ कह सकता हूं कि वह पैंतीस-चालीस बरस पहले हुई होगी। यह मोटा मोटी आंकड़ा यों सटीक लगता है कि पंजाब में आतंकवाद हम साथ साथ कवर किया करते थे।
शेखर की ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में उनकी पूर्वोतर की रिपोर्टें पढ़ कर मैं उनका कायल हुआ था। अगर मैं भूलता नहीं तो पंजाब में आतंकवाद वह ‘इंडिया टुडे ‘ में रहकर कवर करते थे और मैं ‘दिनमान’ से।

जब ‘ इंडिया टुडे ‘ शुरू हुआ था तो कई लोग दैनिक अखबारों को छोड़ इस साप्ताहिक पेपर में शिफ्ट कर गये थे। शेखर गुप्ता के अलावा इंडियन एक्सप्रेस, भोपाल के एन. के. सिंह भी थे। शेखर गुप्ता ने जल्दी ही इंडियन एक्सप्रेस में वापसी कर ली, एन. के.सिंह अंग्रेज़ी से हिंदी में शिफ्ट कर ‘ दैनिक भास्कर’ का संपादक बन जयपुर चले गये।वहां काफी वक्त गुजारने के बाद वे ‘ इंडियन एक्सप्रेस’, अहमदाबाद संस्करण के स्थानीय संपादक बन गये।
एन. के. सिंह से मैं दो बार मिला- पहली बार डाकू मलखान सिंह के आत्मसमर्पण के समय और दूसरी बार अहमदाबाद में शिष्टाचार के नाते।
हां, तो बात शेखर गुप्ता की चल रही थी। इंडियन एक्सप्रेस में वापसी कर उन्होंने खूब तरक्की की और वह Editor- in- chief के पद तक पहुंचे। वह रिपोर्टर से एडिटर इन चीफ के पद पर पहुंचने वाले कुछ विरले लोगो में से थे। उनसे पहले गिरिलाल जैन टाइम्स ऑफ इंडिया के प्रमुख संपादक बने थे। सुरिंदर निहाल सिंह पहले कभी पाकिस्तान में रिपोर्टर थे बाद में स्टेट्समैन के संपादक हुए।यही बात इंदर मल्होत्रा पर भी लागू होती है।

इंडियन एक्सप्रेस में शेखर गुप्ता के आलेखों को तो चाव से पढ़ा ही जाता था उनका टीवी चैनल पर ‘वॉक द टॉक’ और हिंदी में ‘ चलते चलते’ भी बहुत लोकप्रिय रहे हैं। इसीलिए उन्हें ‘ हरफनमौला” पत्रकार भी कहा और माना जाता है । अंग्रेज़ी के अलावा उनका हिंदी, पंजाबी और उर्दू पर समान अधिकार है। शेखर की एक और सिफत है। वे बहुत ही सादे लिबास में रहते हैं। उनका अपना एक ‘ट्रेड मार्क’ है। अमूमन वह अपनी पूरी बाजू की कमीज को आधी बाजू में कन्वर्ट कर लेते हैं। हल्की सी सर्दी होने पर वही अपनी पूरी बाजू से आधी बाजू की गयी शर्ट पर जैकेट पहन लेंगे। कभी मौका मिले तो गौर कीजियेगा। इस का राज़ अभी तक मैं नहीं जान पाया हूं, आप कोशिश कीजियेगा।

रेपोर्टरी उनके रग रग में भरी है। इसे आप शेखर गुप्ता का ‘पहला प्यार ‘ भी कह सकते हैं। पंजाब में आतंकवाद कवर करने के लिए जिस तरह का जोखिम वे उठाया करते थे शायद ही दूसरा कोई पत्रकार उठाता होगा। इसीलिये उन्हें एक्सक्लूसिव संवाद वाला पत्रकार कहा जाता था। पंजाब में कई बार हम साथ साथ दीख जाते थे इसमें कोई नयी बात नहीं।
एक बार मैं लाहौर के अवारी होटल में ठहरा था। सुबह मैं नाश्ता करने के लिये रेस्तरां में गया तो अचानक मेरी नज़र एक अलग से कमरे में बैठे शेखर गुप्ता पर पड़ी। वह आम लोगों से हट कर बैठते हैं यह उनकी स्टाइल है। मैंने जाकर हेलो की तो उठकर गले मिले। तुम कब आये। बताया कल ही आया हूं। शिष्टाचारी बातचीत के बाद अपने अपने प्रोग्राम पर चर्चा भी हुई।
पाकिस्तान के सत्ताधारियों में शेखर की खासी पैठ रही है। भूतपूर्व प्रधानमंत्री मियां नवाज़ शरीफ के करीबियों में वे माने जाते रहे हैं। वे शायद पहले भारतीय पत्रकार हैं जिन्हें पाकिस्तान का स्थायी वीज़ा प्राप्त था।शेखर की उस दिन लाहौर में कई मुलाक़ातें तय थीं और मेरी अपनी अलग। साथ साथ नाश्ता करने के बाद इस वादे के साथ अलग हुए कि इंशाल्लाह कराची में भेंट होगी। कराची में भी मैं अवारी होटल में ही ठहरा था।

उसके मालिक बैरम अवारी से जब मिला तो पता चला कि शेखर गुप्ता आये तो थे, कहां चले गये , यह बता पाना मुश्किल है। नामुमकिन नहीं वह हैदराबाद चले गये हों।कराची तो हर कोई आ जाता है उसके आगे जाने की हिम्मत सिर्फ शेखर ही रखता है।
बैरम अवारी कभी प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ के संसदीय सचिव हुआ करते थे और पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों में उनकी खासी पैठ है। एक बार तो उन्होंने भारत में भी होटल खोलने का मन बनाया था, लगता है बात बनी नहीं। बहुत ही ज़हीन इंसान हैं बैरम अवारी। उन्हें कहीं से पता चला कि मैं बीमार हूं और सर गंगाराम अस्पताल में भर्ती हूं तो उन्होंने एक बहुत ही खूबसूरत पुष्पगुच्छ भेजा इस इबारत के साथ कि जल्दी सेहतमंद हो जायें, एक बार फिर आपके साथ बैठने की मन में हसरत है। शेखर गुप्ता से कराची में भेंट नहीं हो पायी। दिल्ली में मुलाकात होने पर बोले,’ यार अचानक किसे दा फोन आ गया सी, नसना पै गया ‘।
शेखर गुप्ता का सहयोग जब जब मैंने चाहा मुझे मिला।’ संडे मेल’ के लोकार्पण समारोह में उन्होंने शिरकत की। बाद में रामकृष्ण जयदयाल सद्भावना पुरस्कार समारोह का विशेष अतिथि बनने का अनुरोध मेरी सहयोगी श्रीमती नफीस खान ने किया जिसे स्वीकार कर हमें कृतार्थ किया,।

नफीस जी के आग्रह पर मैंने अलबत्ता उन्हें एक बार स्मरण करा दिया था। समारोह से पहले के डिनर में वे अपनी बेटी के साथ डालमिया हाउस आये थे। उनकी मुलाकात सम्मानित किये जाने वाले जिन व्यक्तियों से करायी गयी उनमें से कुछ से वे पहले से परिचित थे। सम्मान पाने वाले लोगों में प्रमुख थे अंग्रेज़ी के लिए डॉ. मुशीरुल हसन, हिंदी के जय शंकर गुप्ता, उर्दू के परवाना रूदौलवी, पंजाबी के हरभजन सिंह हलवारवी, बंगला के नाबनीत देव सेन, कारगिल कवरेज के लिए विशेष पुरस्कार विजेता बरखा दत्त औऱ गौरव सावंत आदि।
शेखर गुप्ता ने हरेक से साथ साथ और अलग अलग बातचीत भी की। संजय डालमिया का आभार जताया और नफीस जी का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि कल मिलते हैं। डिनर पर हम दोनों गपियाते रहे। कुछ लोगों को शेखर को ठेठ पंजाबी में बोलते हुए अचरज भी हुआ।
अगले दिन निश्चित समय पर शेखर गुप्ता पहुंच गये। मुझे एक तरफ ले जाकर कहा कि ‘मैंनू की बोलना है। ‘ मैंने हंसते हुए कहा कि ‘आप जैसे बंदे को मुझे बताने की कब से ज़रूरत पड़ गयी। मैं जिस शेखर गुप्ता को जानता हूं वह और उसका सोच लाजवाब है, बेमिसाल है। ‘
हंसते हुए शेखर बोले,’ओ रहन दे यार’ और इतना कह कर वे मंच की तरफ बढ़ गये। दूसरी तरफ मैंने बरखा को परेशान देखा तो इसका सबब पूछा। बताया मेरे पिताश्री ने यहां आने का वादा किया था, लगता है हमेशा की तरह भूल गये।
बहरहाल, शेखर गुप्ता का भाषण बहुत ही प्रेरक रहा जिसे उपस्थित लोगों और सम्मान प्राप्त लोगों ने भी खूब सराहा। संजय डालमिया के सांस्कृतिक और सामाजिक सरोकारों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि देश के दूसरे उद्योगपतियों को उनसे सीख लेनी चाहिये कि मानवता की सेवा कैसे की जाती है। अपने धन्यवाद भाषण में डॉ. मुशीरुल हसन ने संजय डालमिया के साथ साथ श्रीमती नफीस खान की कर्तव्यनिष्ठा का ज़िक्र करते हुए सम्मानित लोगों की तरफ से आभार व्यक्त किया।

कौटिल्य प्रकाशन ने केपीएस गिल पर एक बहुत ही खूबसूरत पुस्तक प्रकाशित की है। उसके प्रकाशक राजू अरोड़ा और कमल नयन पंकज ने मुझे जस्विन जस्सी और कमलेश कुमार कोहली को भी आमंत्रित किया। इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में बहुत ही भव्य और गरिमापूर्ण समारोह आयोजित किया गया जिसका उद्घाटन शेखर गुप्ता ने किया। मेरी सहयोगी बनाम मित्र सुनीता सभरवाल से भी मुलाकात हो गयी।
जैसा कि मैंने पहले लिखा है पंजाब में आतंकवाद को जिस शिद्दत के साथ शेखर गुप्ता ने कवर किया था वैसा शायद ही किसी अन्य पत्रकार ने किया होगा। शेखर का नेटवर्क बहुत व्यापक है। उनके केपीएस गिल से करीबी संबंधों और आतंकवाद को समाप्त करने में गिल साहब की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला। कई अवसरों पर गिल साहब से मुलाकात और उनसे पंजाबी में होने वाली बातों को जगह जगह उदधृत कर न केवल माहौल को बोझिल होने से बचाया बल्कि उनकी स्पष्टवादिता का ज़िक्र भी किया।
उस दिन जितने भी वक्ता बोले सतीश जैकब सहित, उनके विचारों और उदगारों से गिल साहब की बेबाकी और उनकी प्रोफेशनल कामकाज की शैली का पता तो चलता ही था, साथ ही इस बात का आभास भी होता था कि वे मीडिया को कितना महत्व दिया करते थे। शेखर और जैकब दोनों ने ही गिल साहब की याददाश्त का उल्लेख करते हुए बताया था कि किसी वजह से उनका फोन न उठा पाने के कारण जब उनसे बात नहीं हो पाती थी तो गिल साहब खुद वापस फोन करते थे और पूछते थे ‘फलां वक़्त ते आ सकना, आ जा खूब गल्लां करांदे ‘। उन्हें यह पता होता था कि कौन कौन पत्रकार न सिर्फ पंजाबी समझता है पर बोलता भी है।

बेशक़ आज शेखर गुप्ता इंडियन एक्सप्रेस में नहीं हैं लेकिन ‘The Print’ वेबसाइट को जिस मुकाम तक उन्होंने पहुंचाया है वह शेखर जैसा परिश्रमी, जुझारू और दूरदर्शी पत्रकार द्वारा ही मुमकिन है। हार्दिक शुभकामनाएं शेखर।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Articles

Back to top button