शशि थरूर राष्ट्रपति शासन प्रणाली के पक्ष में
(मीडिया स्वराज डेस्क)
नई दिल्ली. देश में कर्नाटक, मध्य प्रदेश और राजस्थान की राजनीतिक परिस्थितियों का आंकलन करें तो ऐसा प्रतीत होता है कि इस समय जनता द्वारा निर्वाचित नेताओं का ध्यान जन कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने की जगह सत्ता हथियाने में लगा हुआ है। वह समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति के हित के लिए पॉलिसी निर्माण से ज्यादा स्वयं के हित के लिए सत्ता लोलुप बनकर रह गए हैं।
कांग्रेस के सांसद शशि थरूर ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखे एक आर्टिकल के माध्यम से यह बताया है कि हमारी संसदीय व्यवस्था कहीं न कहीं फेल हो गई है। भारत का लोकतंत्र ही उसकी शक्ति है लेकिन इसकी वर्तमान परिस्थिति ने इसे कमज़ोर बना दिया है। अब बदलाव की आवश्यकता महसूस की जा रही है। इसका सबसे बड़ा कारण उन्होंने राजनेताओं के काम करने के बदलते तरीकों को बताया है, जिसमें राजनेता के लिए पार्टी बस एक माध्यम है और वह उसे ठीक उसी प्रकार जरूरत के हिसाब से बदलते या अपनाते हैं जैसे कोई बॉलीवुड अभिनेता फ़िल्म के सीन के हिसाब से अपनी पोशाक बदलता है।
उन्होंने यह भी बताया है कि जनता तक यह संदेश पहुंचाया जाता है कि अगर वह प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री के रूप में किसी व्यक्ति विशेष को देखना चाहते हैं तो उनकी पार्टी के कैंडिडेट को वोट दें। वहीं प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री अपनी पसंद से काम करने वाले लोगों को कैबिनेट में मात्र इस कारण से नहीं रख पाते हैं क्योंकि उन्हें अपने सहयोगी दलों या मुट्ठी भर नेताओं को खुश करना होता है।
उन्होंने बताया कि संसदीय व्यवस्था के फेल होने का एक कारण विधायकों की।खरीद फ़रोख़्त पर प्रभावी अंकुश न लगा पाना है। इसलिए अब एक ऐसी व्यवस्था की आवश्यकता है जहां नेता सत्ता में बने रहने से ज्यादा जनहित के कदम उठाने के लिए प्रतिबद्ध हों।
उन्होंने कहा जिस तरह दिल्ली में कार्यपालिका के मुख्य कार्यकारी का चयन होता है और लोग अपने इलाके में काम करने वाले नेता को ही वोट करते हैं। यह एक बेहतरीन प्रणाली है। इसमें नेता जनहित के काम करने के लिए प्रतिबद्ध होते हैं और ऐसी व्यवस्था में राजनैतिक अस्थिरता क्षीण होती है।
उन्होंने कहा कि ठीक इसी प्रकार हमारे कस्बों और शहरों में जनता द्वारा सीधे तौर पर चुने जनप्रतिनिधि बेहतर काम करने के लिए प्रतिबद्ध होते हैं।
उन्होंने इसके लिए लोकसभा में प्राइवेट मेंबर बिल प्रस्तावित भी किया है। यह एक ऐसी सरकार की परिकल्पना है जिसमें ठीक उसी तरह काम होता है जैसे गाँव मे चुने जनप्रतिनिधि सीमित संसाधनों के साथ जनहित में काम करते हैं। इन सबका सीधा कंट्रोल राष्ट्रपति को दिया जाए। हालांकि राष्ट्रपति शासन की एक खामी ये है कि इसमें तानाशाही का खतरा है। लेकिन इसमें नियंत्रण संभव है। इस व्यवस्था में जनता द्वारा प्रत्यक्ष तौर पर चुने गए प्रतिनिधि जनहित में नियंत्रण कर सकते हैं।
उन्होंने वर्तमान समय में राजनैतिक व्यवस्था में परिवर्तन को नितांत आवश्यक बताते हुए राष्ट्रपति शासन की तरफ कदम बढ़ाने का सुझाव दिया है।
सर मीडिया स्वराज छोटी से छोटी और बडे मुद्दे को जन मानस के सामने रखता है, आज ही प्रवासी मजदूरों की समस्या ए केज्ड जर्नी टू होम, यह लेख जो पूरे देश से सरोकार रखता है, बहुत बहुत धन्यवाद सर🙏💐💐