शंकराचार्य स्वरूपानंद ने राम मंदिर निर्माण के तौर तरीक़ों पर ज़ोरदार आपत्ति जतायी
जहां वेद-शास्त्र नहीं, वहां देवत्व भी नहीं -जगद्गुरु शंकराचार्य स्वरूपानंद
जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद ने राम मंदिर निर्माण के तौर तरीक़ों पर एक बार ज़ोरदार आपत्ति प्रकट की है. स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज सनातन हिंदू धर्म की चार शंकाराचार्य पीठों में से दो – ज्योतिष्पीठ एवं द्वारकाशारदापीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य हैं. हिंदू धर्म की व्यवस्था में उनका स्थान काफ़ी ऊँचा है.
जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती ने सोमवार आठ फ़रवरी को प्रयागराज माघ मेला क्षेत्र शिविर में आयोजित हरिहर सन्त सम्मेलन में अध्यक्षीय उद्बोधन में संघ परिवार, भारतीय जनता पार्टी और सरकार के तौर तरीक़ों की मुखर आलोचना की.
शंकराचार्य स्वरूपानंद ने राम मंदिर पर कहा,” वेद शास्त्रों के अनुसार चलने वाला ही सनातनधर्मी है। जहां वेद शास्त्र के अनुसार काम न हो रहा हो वहां देवत्व का आगमन असंभव है। धर्मशास्त्रों और वास्तु आदि की उपेक्षा कर बनाये गये ढांचे में देवत्व की आशा व्यर्थ है।” ढाँचे से उनका मतलब अयोध्या श्रीराम जन्म भूमि पर निर्माणाधीन राम मंदिर समझा जा रहा है.
शंकराचार्य स्वरूपानंद ने राम मंदिर पर आगे कहा कि, “सनातन-धर्मी एक बार पुनः छद्म हिन्दुओं से छले जा रहे हैं। पांच सौ वर्षों से तीन लाख बलिदान के बाद अब अयोध्या की श्रीराम जन्मभूमि में शास्त्रोक्त मन्दिर बनाने के उनके प्रयासों को चतुराई से बदला जा रहा है जिस पर रोक जरूरी है। यदि सनातनी अभी चूके तो सदा के लिये चूक जायेंगे.”
शंकराचार्य स्वरूपानंद ने राम मंदिर पर आगे कहा कि, “अपने को हिन्दू- हिन्दू कहकर कुछ ऐसी संस्थायें जो वेद शास्त्रों को मानती ही नहीं हैं ,आगे आ गई हैं और सत्ता में होने का लाभ उठाकर मन्दिर और उसके प्रांगण को अपने कार्यालय की तरह विकसित करती जा रही हैं। वास्तविकता ये है कि मन्दिर निर्माण में लगी संस्थायें श्रीराम को परब्रह्म परमात्मा तो दूर भगवान् भी नहीं मानतीं। अपनी इस मान्यता को उन्होंने कुछ वर्ष पूर्व प्रयाग के प्रेस मैदान में हुये अधिवेशन में रामजी के कट आउट को डाक्टर अम्बेडकर और स्वामी विवेकानन्द के समकक्ष प्रदर्शित भी कर दिया है.”
शंकराचार्य स्वरूपानंद ने गुरु गोलवलकर द्वारा लिखी विचार नवनीत पुस्तक के उन अंशों को भी उद्धृत किया जिनमें श्रीराम जी को महापुरुष सिद्ध करने का प्रयास किया गया है।
शंकराचार्य स्वरूपानंद ने आगे कहा कि अयोध्या की श्रीराम जन्मभूमि में मन्दिर के निर्माण की मूल मांग सनातनधर्मियों की थी. तब आर्य समाज, संघ, विहिप जैसी संस्थाओं का जन्म भी नहीं हुआ था। यही नहीं उन्होंने ही बलिदान दिये। कोर्ट में पक्षकार बनकर केस लड़ा और विजय प्राप्त की. इसलिये उस स्थान पर सनातनधर्मियों का अधिकार बनता है. अतः सनातनी धर्माचार्यों के निर्देशन में शास्त्रोक्त विधि से मन्दिर बनना और संचालित होना चाहिए।
सम्मेलन में मुख्य रूप से मठ मन्दिरों के तोड़े जाने की घटनाओं में वृद्धि, सन्तों की हत्यायें और उनके गायब होने पर चिन्ता, गोहत्या न रुकने, गंगा को बांधे और काशी में पाटे जाने पर चिन्ता और सनातन हितैषी शासन के बारे में भी चर्चा हुई।
विषय स्थापना हरिहर सन्त सम्मेलन के संयोजक, परमधर्मसंसद् 1008 के प्रवर धर्माधीश स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती ने की ।
एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार त्रिवेणी मार्ग स्थित श्रीशंकराचार्य शिविर मे आयोजित हरिहर सन्त सम्मेलन मे पूरे देश से पधारे सैकडों सन्तों ने शंकराचार्य जी के नेतृत्व में अपना विश्वास व्यक्त किया।
कार्यक्रम में देश भर से पधारे लगभग एक सहस्र सन्त सम्मिलित हुए. शिविर प्रभारी ब्रह्मचारी सहजानन्द जी महाराज ने सबका स्वागत किया।