आत्मनिर्भरता और गांधी की प्रासंगिकता

गांधी के आत्मबल का आवाहन करना होगा : ग्लोबल विलेज के बजाय देशीय गांव

आत्मनिर्भरता और गांधी की प्रासंगिकता इस दौर का सबसे बड़ा सत्य है. अब koii संशय नहीं रहना चाहिए. विश्व महामारी के इस दौर में आम आदमी की आर्थिक विपन्नता का इससे बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है कि लोगों को भुखमरी से बचाने के लिए आज भारत में अस्सी करोड़ लोगों को मुफ़्त राशन दिया जा रहा है. हालाँकि यह मुफ़्त राशन भी मुफ़्त न होकर दरअसल सरकारी ख़ज़ाने यानी जनता के टैक्स के पैसे से दिया जा रहा है. कोई बेशर्मी से उस पर अपना फ़ोटो भले चिपका दे. लेकिन हम लोगों को राज्याश्रित क्यों बना चाहते हैं? क्यों नहिं हम अपनी नीतियों में बदलाव कर सबको आत्म निर्भर बनाने का काम करते. प्रस्तुत है प्रयागराज  से डा चन्द्रविजय चतुर्वेदी का लेख.

चंद्रविजय चतुर्वेदी
डा चंद्रविजय चतुर्वेदी

यह तो निश्चित ही था की  देश आर्थिक संकट ,भूख ,बेरोजगारी ,प्राकृतिक असुरक्षा ,हिंसा ,नफ़रत में जब कभी उलझेगा तो गांधी की याद अवश्य आएगी।

इस विपत्तिकाल में बहुत अच्छा लगा जयजगत ,आत्मनिर्भरता ,स्वदेशी ,लोकल स्थानीयता के प्रयोग की अभिलाषा जागरण देश में उभर रहे हैं । ये शब्द मात्र नहीं हैं इनके अर्थ में छिपा है व्यक्ति ,समुदाय ,देश का हित ही नहीं उसका अस्तित्व और उसकी पहिचान भी।

ये वे यज्ञ और तपस्या हैं जिससे आज की विपत्ति से मुक्ति मिल सकती है पर इनके क्रियान्वयन के लिए गांधी के आत्मबल का आवाहन करना होगा तभी कोई सार्थक परिणाम मिल सकते हैं। 

 कोरोना वाइरस ने वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पूंजीवादी विचारधारा और बाजारवाद  के प्रभुत्व की कलई खोल दी है। ऐसे समय में स्वदेशी विचारधारा पर दिखावे के औपचारिक कर्मकांड के बजाय गंभीर चिंतन से रचनात्मक कार्यक्रम बनाना होगा। 

  रचनात्मक कार्यक्रम के लिए निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है 

१ ;गाँधीवादी विचारधारा को मात्र आदर्शवादी विचारधारा मानने की भूल सुधार कर यह निश्चित करना होगा की गाँधीवादी विचारधारा व्यवहारिक आदर्शवाद है। 

२ ; यह स्पष्ट रूप से समझना होगा की गांधीवादी विचारधारा की प्रमुख विशेषता है की यह विचारों कीअसहमति में सहमति के तत्व तलाश लेता है तथा विचारों की सहमति में असहमति के तत्वों पर ध्यान रखता है। 

३ ;मानव एक व्यक्तिवादी या सामजिक प्राणी नहीं वरन एक सामुदायिक प्राणी है। 

४ ;; स्वदेशी के कार्यक्रम में व्यक्ति और समुदाय को आत्मनिर्भरता की और एक साथ अग्रसर करना होगा। 

५ ;;आत्मनिर्भरता के क्रियान्वयन में आज सबसे बड़ा प्रश्न है की गांव के भूमिहीन मजदूरों ,शहर के दिहाड़ी मजदूरों ,निम्न मध्यमवर्ग और मध्यमवर्ग के शिक्षित बेरोजगारों को कैसे आत्मनिर्भर बनाया जाए। 

६ ;;आत्मनिर्भरता और स्वदेशी कार्यक्रम की चेतना पूंजी का पैकेज़ नहीं है। गांव में ,गांव के निकट के कसबे में ,छोटे शहरों में ग्रामोद्योग ,कृषि आधारित उद्योग ,हस्त शिल्प के उद्योग स्थापित करके पूंजी काशीघ्र फल देने वाला  पेड़ उगाना होगा। 

७ ;;विशाल औद्योगीकरण की गति को मंद करते हुए स्थानीयकरण की गति को तेज करना होगा। 

८ ; आत्मनिर्भरता के लिए व्यक्ति और समुदाय को अधिकतम आवश्यकतायों की प्रवृत्ति को तिलांजलि देकर न्यूनतम आवश्यकताओं की जीवन शैली की और लौटना होगा। 

९ ;लोक को राजाश्रय की प्रवृत्ति से ऊपर उठकर अपने अस्तित्व की रक्षा स्वतः करने के प्रति जागरूक होना होगा। 

  अब आवश्यक हो गया है की आमआदमी के पक्षधर मानवतावादी देश का हित चाहने वाले बुद्धिजीवी ,अर्थशास्त्री ,राजनीतिज्ञ ,समाजसेवी ईमानदारी के साथ ग्लोबल विलेज के बजाय देशीय गांव में विश्व को लाने  का तात्कालिक और दूरगामी ढांचा तैयार करने पर मंथन करे जो गांव उन मजदूरों श्रमिकों ,बेरोजगार नौजवानो का आखिरी आसरा है जहाँ पहुंचने  लिए लाखों आम आदमी हजार किलोमीटर की यात्रा पर जान की परवाह किये बिना पैदल ही चल पड़ते हैं  जैसे वही उनके मोक्ष की गति है। 

गांधी और आत्मनिर्भरता
महात्मा गांधी

  अंत में बोराक ओबामा की याद आ गई। जब वे अमेरिका के राष्ट्रपति थे तो उन्होंने अपने कार्यालय में गाँधी का चित्र लगा रखा था जिसमे गाँधी शांति का सन्देश देते हुए नजर आरहे थे। इस विषय में ओबामा का मत था की मेरे दफ्तर में गाँधी की तस्वीर इसलिए लगी हुयी है जिससे मैं यह याद रख सकूँ की वास्तविक परिणाम वाशिंगटन से नहीं जनता के बीच से आएंगे। 

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