बीज सत्याग्रह यात्रा
बीज सत्याग्रह यात्रा अपने पड़ाव के पाँचवें दिन रीवाँ के लूक गाँव पहुँची। जहाँ किसानों ने यात्रा का स्वागत किया।
बातचीत के दौरान चिन्तक, दार्शनिक एवं संत श्री गरुण मिश्र जी ने कहा कि मूलतः वे किसान हैं और आज 80 वर्ष की आयु में लूक गाँव स्थित अपने आश्रम में किसानी में लगे हुए हैं।
सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि देसज बीजों के संरक्षण एवं संवर्द्धन के लिए हम सभी को सामूहिक प्रयास करना होगा। हमारे शास्त्रों में भी अन्न को ब्रह्म अर्थात ईश्वर कहा गया है।
आश्रम में जैव विविधता आधारित खेती का प्रत्यक्ष प्रमाण हम सभी को दिखायी दे रहा था जहाँ पर कई किस्म की देसी धान की फसल लहलहा रही थी और इसके साथ ही साथ कई तरह की सब्जियां भी लगी हुई थीं। चलते समय मिश्र जी ने हमें उन्हीं के आश्रम में उपजाया हुआ डेहुला (कुछ जगहों पर इसे झुरिया अथवा सांवा सार भी कहते हैं) धान की एक बोरी बीज के रूप दी और कहा कि 60 दिन में होने वाला यह धान पौष्टिकता व स्वास्थ्य की दृष्टि से भी बहुत उपयोगी है।
बीज सत्याग्रह यात्रा इस बीज को भी जगह जगह पहुंचाने का प्रयास करेगी। उन्होंने एक आग्रह और किया कि उनके आश्रम को जैव विविधता आधारित खेती के एक संस्थान के रूप में स्थापित किया जाय जहाँ पर स्थानीय समुदाय प्रशिक्षण प्राप्त कर सके। उनके इस अनुरोध को यात्रा में शामिल जैविक खेती विशेषज्ञ दरबान सिंह नेगी ने स्वीकार किया और कहा कि वह इस केन्द्र को बनाने में सारे सम्भव प्रयास करेंगे।
कार्यक्रम में स्वराज विद्यापीठ के कुलसंचालक डॉ कृष्ण स्वरूप आनन्दी जी ने खेती में बहुराष्ट्रीय निगमों की काली करतूतों के बारे में विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि अगर हम देसी बीजों को बचा सके और जगह जगह उनके द्वारा फसलों का उत्पादन कर सके तो यह स्वराज की दिशा में बढ़ने का एक बुनियादी कदम होगा।
गोष्ठी में मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप गौतम सुमन जी ने अपने विचारों को साझा करते हुए कहा कि गलत कार्यों का विरोध आवश्यक है परन्तु सर्जनात्मक कार्यों के द्वारा ही समाज परिवर्तन का काम किया जा सकता है।
गोष्ठी में किसानों की समस्याओं व फसलों में लगने वाले विभिन्न रोगों के उपचार के लिए दरबान सिंह नेगी जी ने कई उपाय बताए। बीज सत्याग्रह यात्रा के उद्देश्यों के बारे में बताते हुए स्वप्निल श्रीवास्तव ने कहा कि यह यात्रा सिर्फ बीजों तक ही सीमित नहीं है अपितु यह यात्रा ग्राम स्वराज की ओर बढ़ने का एक कदम है जिसमें जैविक खेती, पशुपालन, मत्स्यपालन के साथ ही साथ स्थानीय स्तर पर कुटीर उद्योग धंधे भी शामिल हैं।