संविधान सभा की दूसरी बैठक: स्थायी अध्यक्ष के चुनाव और महत्वपूर्ण प्रस्तावों पर चर्चा
कुमार कलानंद मणि

भारत की संविधान सभा की दूसरी बैठक 10 दिसंबर 1946 को हुई, जिसमें संविधान निर्माण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए गए। इस सत्र में स्थायी सभापति (अध्यक्ष) के चुनाव की प्रक्रिया तय की गई और कई महत्वपूर्ण प्रस्तावों को पारित किया गया।
स्थायी सभापति के चुनाव की प्रक्रिया तय हुई
संविधान सभा के अस्थायी अध्यक्ष डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा ने सत्र की शुरुआत करते हुए उन सदस्यों को रजिस्टर पर हस्ताक्षर करने का अवसर दिया जो पहली बैठक में शामिल नहीं हो सके थे।
इसके बाद, आचार्य जे.बी. कृपलानी ने स्थायी सभापति (संविधान सभा के अध्यक्ष) के चुनाव की प्रक्रिया से संबंधित छह बिंदुओं वाला प्रस्ताव प्रस्तुत किया। इस प्रस्ताव का समर्थन पंडित जवाहरलाल नेहरू ने किया।
इस प्रस्ताव पर चर्चा में निम्नलिखित सदस्यों ने भाग लिया—
डॉ. पी.एस. देशमुख (मध्य प्रांत और बरार)
श्री के. संतानम (मद्रास)
श्री एम. अनंतशयनम अयंगर (मद्रास)
श्री सी. राजगोपालाचारी (मद्रास)
कुछ सदस्यों ने प्रस्ताव में शब्दों के संशोधन सुझाए, लेकिन अधिकांश ने मूल प्रस्ताव को स्वीकार किया। श्री एच. वी. कामत (मध्य प्रांत और बरार) ने सुझाव दिया कि चुनाव प्रक्रिया में प्रत्याशी को नामांकन वापस लेने का प्रावधान होना चाहिए।
अंततः, सभापति ने सभी संशोधनों के साथ प्रस्ताव को संविधान सभा द्वारा स्वीकृत घोषित किया।
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महत्वपूर्ण प्रक्रियात्मक प्रस्ताव पारित हुए
स्थायी अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया तय होने के बाद, पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सभा के समक्ष अन्य प्रक्रियात्मक प्रस्ताव प्रस्तुत किए।
1. संविधान सभा के संचालन के नियमों को स्वीकृति
प्रस्ताव: जब तक संविधान सभा अपने नियम नहीं बना लेती, तब तक केंद्रीय धारा-सभा (British Legislative Assembly) के नियम लागू होंगे।
समर्थन: पं. गोविंद वल्लभ पंत (संयुक्त प्रांत)
चर्चा में भाग लेने वाले सदस्य:
• श्री विश्वनाथ दास (उड़ीसा)
• श्री श्रीप्रकाश (संयुक्त प्रांत)
• श्री एन. वी. गाडगिल (बंबई)
प्रस्ताव को सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया।
2. संविधान सभा के सचिवालय का वर्तमान संगठन जारी रहेगा
प्रस्ताव: जब तक संविधान सभा अंतिम निर्णय नहीं ले लेती, तब तक वर्तमान सचिवालय संगठनकार्य करता रहेगा।
समर्थन: श्री एम. आसफ अली (दिल्ली)
सभापति ने प्रस्ताव को स्वीकृत घोषित किया।
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प्रोसीजर कमेटी और भाषाई बहस
इसके बाद, संविधान सभा के संचालन के लिए 15 सदस्यों की एक समिति गठित करने का प्रस्ताव आचार्य कृपलानी ने पेश किया। इस समिति को पांच महत्वपूर्ण विषयों पर रिपोर्ट देनी थी।
चर्चा में भाग लेने वाले सदस्य:
• राय बहादुर श्यामानंदन सहाय (बिहार)
• डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी (बंगाल)
• पं. पुरुषोत्तम दास टंडन (संयुक्त प्रांत)
• सरदार हरनाम सिंह (पंजाब)
• डॉ. के. एम. मुंशी (बंबई)
• श्री बसंत कुमार दास (असम)
• पं. जवाहरलाल नेहरू (संयुक्त प्रांत)
इस दौरान, श्री आर. वी. धुलेकर ने हिंदी भाषा में बोलने की मांग की और कहा कि संविधान सभा की कार्यवाही हिंदी में होनी चाहिए। जब अस्थायी सभापति ने पूछा कि क्या वे अंग्रेज़ी जानते हैं, तो उन्होंने उत्तर दिया कि वे अंग्रेज़ी जानते हैं, लेकिन हिंदी में बोलना चाहते हैं।
धुलेकर का बयान: “जो लोग हिंदुस्तानी (हिंदी) नहीं जानते, उन्हें हिंदुस्तान में रहने काअधिकार नहीं है। वे इस सभा के सदस्य होने के योग्य नहीं हैं और उन्हें सभा से चले जानाचाहिए।”
इस पर अन्य सदस्यों ने प्रतिक्रिया दी और बहस चली, लेकिन अंततः प्रोसीजर कमेटी के गठन का प्रस्ताव पारित हो गया।
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स्थायी अध्यक्ष के चुनाव की घोषणा
अस्थायी अध्यक्ष डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा ने घोषणा की कि—
स्थायी सभापति (संविधान सभा के अध्यक्ष) के लिए नामांकन 11 दिसंबर दोपहर 12 बजे तक किया जा सकता है।
नामांकन वापस लेने की अंतिम तिथि 11 दिसंबर दोपहर 2 बजे तक थी।
संविधान सभा का अगला सत्र 11 दिसंबर 1946 को सुबह 11 बजे होगा।
इसके साथ ही, संविधान सभा का दूसरा सत्र समाप्त हुआ।
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निष्कर्ष
संविधान सभा की दूसरी बैठक में संविधान निर्माण की प्रक्रिया को व्यवस्थित करने के लिए महत्वपूर्ण नियम तय किए गए।
स्थायी अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया तय हुई।
संचालन के लिए अस्थायी नियम अपनाए गए।
प्रोसीजर कमेटी का गठन हुआ।
हिंदी भाषा पर महत्वपूर्ण बहस हुई।
अगले सत्र में स्थायी सभापति का चुनाव होने वाला था, जो संविधान सभा की दिशा तय करने वाला एक ऐतिहासिक क्षण साबित हुआ।