भारत में पानी की उपलब्धता पर्याप्त है, प्रबंधन के अभाव में जल संकट बढ़ रहा है- जलपुरुष डॉ राजेंद्र

शुक्रवार दिनांक 10 दिसंबर 2021 को विरासत स्वराज यात्रा ग्वालियर की प्राकृतिक विरासत गोपालचल पहुंची। यहां भारतीय विरासत के पहाड़ी में नमूने बने हुए हैं। इस यात्रा में जाना कि, भारतीय समाज में विरासत को बचाने का जज्बा अभी भी बाकी है। बहुत पहले यह क्षेत्र पूरा वीरान हो गया था। पिछले 20 साल में सरकार ने इसे अतिक्रमण मुक्त कराया और यहां के समाज ने इसे हरा भरा बनाया है। ग्वालियर तो पहले से ही प्राकृतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक विरासत का बड़ा केंद्र रहा है। यहां के राजाओं ने इनके संरक्षण का बहुत प्रयास किया था। यात्रा करते हुए जलपुरुष राजेंद्र सिंह ने कहा कि, यदि लोग विरासत नहीं बचाएंगे, तो प्रकृति अपना क्रोध दिखाकर, अपनी विरासत को बचाने पर मजबूर करेगी। जिस प्रकार आज यह कोविड वायरस कर रहा है।

यात्रा भारतीय पर्यटन एवम यात्रा प्रबंध संस्थान ग्वालियर, मध्यप्रदेश में आयोजित “विरासत बचाओ राष्ट्रीय जल सम्मेलन” में शामिल हुई। इस सम्मेलन में 24 राज्यों से नदी और पर्यावरण के लिए काम करने वाले 24 राज्यों के लगभग 230 लोग शामिल हुए। इस सम्मेलन का शुभारंभ नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया व जलपुरुष डॉ राजेंद्र सिंह ने किया।

मीडिया स्वराज डेस्क

शुक्रवार दिनांक 10 दिसंबर 2021 को विरासत स्वराज यात्रा सर्वप्रथम सुबह 6 बजे स्वर्ण रेखा नदी के उद्गम की तरफ आईआईटीटीएम के डायरेक्टर प्रो अशोक कुमार व अन्य साथियों के साथ यात्रा करते हुए, स्वर्ण रेखा नदी को देखा। इस नदी को पार करते हुए ही झांसी की रानी लक्ष्मी बाई वीरगति को प्राप्त हुई थी। इसके उपरांत ग्वालियर की प्राकृतिक विरासत गोपालचल पहुंचे। यहां भारतीय विरासत के पहाड़ी में नमूने बने हुए हैं।

इस यात्रा में जाना कि, भारतीय समाज में विरासत को बचाने का जज्बा अभी भी बाकी है। बहुत पहले यह क्षेत्र पूरा वीरान हो गया था। पिछले 20 साल में सरकार ने इसे अतिक्रमण मुक्त कराया और यहां के समाज ने इसे हरा भरा बनाया है। ग्वालियर तो पहले से ही प्राकृतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक विरासत का बड़ा केंद्र रहा है। यहां के राजाओं ने इनके संरक्षण का बहुत प्रयास किया था।

यात्रा करते हुए जलपुरुष राजेंद्र सिंह ने कहा कि, यदि लोग विरासत नहीं बचाएंगे, तो प्रकृति अपना क्रोध दिखाकर, अपनी विरासत को बचाने पर मजबूर करेगी। जिस प्रकार आज यह कोविड वायरस कर रहा है। प्रकृति की इस मार से बचने के लिए भारतीयों को अपनी विरासत, जीवन के लिए प्रकृति को समृद्ध रखना होगा। प्रकृति में विनाश और बिगाड़ होगा तो मानवीय जीवन सुरक्षित नहीं रहेगा। इसलिए जरूरी है कि हम अपनी विरासत को संरक्षित और समृद्ध रखें।

इसके उपरांत यात्रा भारतीय पर्यटन एवम यात्रा प्रबंध संस्थान ग्वालियर, मध्यप्रदेश में आयोजित “विरासत बचाओ राष्ट्रीय जल सम्मेलन” में शामिल हुई। इस सम्मेलन में 24 राज्यों से नदी और पर्यावरण के लिए काम करने वाले 24 राज्यों के लगभग 230 लोग शामिल हुए। इस सम्मेलन का शुभारंभ नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया व जलपुरुष डॉ राजेंद्र सिंह ने किया।

सम्मेलन का शुभारंभ करते हुए भारत सरकार के नागरिक विमानन उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि, हमें अपनी विरासत को बचा कर रखना होगा। नदियों एवं तालाबों के संरक्षण के लिए हम सबको आज अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार दिवस के अवसर पर संकल्पित होकर जल अधिकार का संकल्प लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि जल, जीवन को बचाने का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। बिना जल के मानव जीवन की कल्पना करना अधूरा है। जल संरक्षण एवं प्रकृति संरक्षण करने वाले लोगों में ऊर्जा का संचार अधिक दिखाई देता है, जिसका जीता जागता उदाहरण भारत में जलपुरुष के नाम से विख्यात राजेंद्र सिंह हैं, जिनसे मैं वर्ष 2003 में जब मिला था, तब से पानी के लिए उन्हें वैसे ही चिन्तन करते आज भी देख रहा हूं। उन्होंने कहा कि, आने वाली पीढ़ियों के लिए पानी कैसे बचे, यह सब की चिंता होनी चाहिए।

भारत सरकार के नागरिक विमानन उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि, हमें अपनी विरासत को बचा कर रखना होगा। नदियों एवं तालाबों के संरक्षण के लिए हम सबको आज अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार दिवस के अवसर पर संकल्पित होकर जल अधिकार का संकल्प लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि जल, जीवन को बचाने का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। बिना जल के मानव जीवन की कल्पना करना अधूरा है।

कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए मध्य प्रदेश सरकार के जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट ने कहा कि, जल संसाधन विभाग की तरफ से समाज के सभी वर्गों से उनका अनुरोध है कि, वह उनके विभाग की योजनाओं को जमीन में उतारने में सहयोग प्रदान करें, क्योंकि बिना सामाजिक सहयोग के सरकारी योजनाएं जमीन पर नहीं उतर सकती हैं।

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता के तौर पर जल पुरुष राजेंद्र सिंह ने कहा कि, पानी के अभाव में आज दुनिया बेपानी होकर उजड़ रहा है, लोग विस्थापित हो रहे हैं। आज नदियों के सामने संकट है। जल संरक्षण के लिए आज सरकारों की, जो भी योजनाएं चलाई जा रही हैं, उनमें स्थायित्व का अभाव है। योजना तो बन जाएगी लेकिन निरंतरता कैसे रहेगी, यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है। उन्होंने सरकार से आव्हान किया कि हर घर नल जल योजना जितनी महत्वपूर्ण है, उससे अधिक उसके स्थायित्व पर ध्यान देने की आवश्यकता है, जिसके लिए भारत को जलाधिकार की जरूरत है, भारत में पानी की उपलब्धता पर्याप्त है, लेकिन प्रबंधन के अभाव में जल संकट निरंतर बढ़ता जा रहा है। उन्होंने कहा कि, सरकारों की जिम्मेदारी और हकदारी समाज से ज्यादा है। हम नदियों को मां मानते हैं, लेकिन आज नदियां मैला ढोने वाली नाला में परिवर्तित हो गई हैं। मां के अपमान के लिए हम सब समान रूप से दोषी हैं।

कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए जल बिरादरी के संयोजक सत्यनारायण बुल्लीशेट्टी ने कहा कि, जब हम अपने कार्यों के द्वारा समाज में कुछ करके दिखाते हैं, तभी समाज का भरोसा विकसित होता है। वर्तमान में समाज में बहुत निराशा व्याप्त हो गई है, इस निराशा को दूर करने की दिशा में राजेंद्र सिंह महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं और उनके साथ मिलकर उन्होंने अपने राज्य आंध्रप्रदेश में जल संरक्षण हेतु कार्य किया है।

तमिलनाडु के सामाजिक कार्यकर्ता गुरुस्वामी ने कहा कि, नदियों को बचाना वर्तमान समय की सबसे बड़ी जरूरत है। यदि हमें भारत के भविष्य को देखना है तो धरती के ऊपर बह रही नदियों को हमें जीवित रखना पड़ेगा।
जल जन जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक संजय सिंह ने कहा कि, यह कार्यक्रम ऐतिहासिक शहर ग्वालियर में इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि यह एकमात्र शहर है, जहां जल संरक्षण की विरासत की लंबी श्रृंखला है। जल सम्मेलन के माध्यम से पूरे देश में जल साक्षरता के लिए एक विशेष मुहिम को आगे ले जाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि, जल साक्षरता को बढ़ावा देने के लिए जल सहेलियों ने जो काम किया है उसे पूरे देश के लोगों को सीखने की जरूरत है।

‘‘विरासत बचाओ राष्ट्रीय जल सम्मेलन’’ के कई सत्रों में जल संरक्षण से सम्बन्धित महत्वपूर्ण विचार विमर्श किया गया, जिसके अन्तर्गत देश के विभिन्न राज्यों में जल संरक्षण, पर्यावरण संरक्षण, नदी पुनर्जीवन आदि पर काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अपने-अपने अनुभव सांझा किए। सत्रों के मध्य हिमालयन और पेनिनसुलर नदियों के संरक्षण पर विस्तार से चर्चा की गई। साथ ही ग्वालियर चंबल जैसे इलाके में सूखती नदियों, बढ़ते सूखे और जल संकट के ऊपर भी गंभीर विचार विमर्श किया गया। सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा अवगत कराया गया कि केरल धीरे-धीरे जल संकट की तरफ बढ़ रहा है। इलाके की अधिकांश छोटी नदियां सूख गई हैं। बड़ी नदियां भी अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही हैं।

कार्यक्रम में तेलंगाना जल बोर्ड के अध्यक्ष कैबिनेट मंत्री प्रकाश राव ने बताया कि, उन्होंने कैसे अपने इलाके को पानीदार बनाने के लिए पिछले वर्षों में सरकार और समाज के साथ मिलकर काम किया है। पुणे से आए डॉ. विनोद बोदनकर ने नदियों के संरक्षण और संवर्धन में नदी घाटी संगठन के उपयोगिता पर अपनी बात रखते हुए कहा कि, यदि नदियों को बचाना है तो नदी के किनारे नदी घाटी संगठन बनाने होंगे। महाराष्ट्र के विदर्भ के अंकित लोहिया ने विदर्भ क्षेत्र को जल संकट मुक्त बनाने की दिशा में किए जा रहे प्रयासों को रेखांकित किया। कार्यक्रम में एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष रन सिंह परमार, स्नेहिल डौंदे, मुकेश पण्डित, राघवेंद्र सिंह, देवेंद्र सिंह, रमेश द्विवेदी आदि ने अपने विचार रखे।

सांध्यकालीन सत्र में सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया, जिसमें वाराणसी के गंगा स्वच्छता के ब्राण्ड एम्बेसडर अमित श्रीवास्तव ने गंगा अवतरण पर आधारित नृत्य नाटिका की मनमोहक प्रस्तुति दी, जिसमें उन्होंनें भागीरथ द्वारा गंगा को पृथ्वी पर अवतरित किए जाने, नदियों के प्रति लोगों के सम्मान व आधुनिक युग में मानव की लिप्सा के कारण नदियों के अतिक्रमण एवं उनकी धारा की अविरलता को अवरुद्ध किए जाने की मार्मिक प्रस्तुति दी। इसके उपरान्त इस सम्मेलन में जलपुरुष राजेन्द्र सिंह द्वारा आई.आई.टी.एम. के निदेशक प्रो. आलोक शर्मा को जल संरक्षण हेतु किए जा रहे प्रयासों हेतु उन्हें सम्मानित किया।

कार्यक्रम के प्रारम्भ में शहीदों के सम्मान में मौन धारण कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई। कार्यक्रम में सामाजिक कार्यकर्ता जयेश जोशी, अनिल सिंह, अरविंद कुशवाहा, रामधीरज सिंह, अनिकेत लोहिया, मुकेश पंडित, अनिल शर्मा, राघवेन्द्र सिंह, वरुण सिंह, पारस सिंह, आर्यशेखर, श्वेता झुनझुनवाला, मस्तराम घोष, सत्यम, जितेन्द्र सिंह, महताब आलम, धीरज सिंह आदि उपस्थित रहे।

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