रामपुर : सपा सांसद मोहिबुल्लाह नदवी की बढ़ीं मुश्किलें, चौथी पत्नी को गुजारा भत्ता देने का हाईकोर्ट का आदेश
रामपुर : सपा सांसद मोहिबुल्लाह नदवी की बढ़ीं मुश्किलें, चौथी पत्नी को गुजारा भत्ता देने का हाईकोर्ट का आदेश
रामपुर। समाजवादी पार्टी (सपा) के सांसद मोहिबुल्लाह नदवी की कानूनी मुश्किलें बढ़ गई हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उनकी चौथी पत्नी की याचिका पर सुनवाई करते हुए सांसद को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया है।
पत्नी ने अदालत में आरोप लगाया था कि सांसद ने उन्हें घर से निकाल दिया और आर्थिक सहायता देना बंद कर दी। हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि पत्नी को भरण-पोषण का अधिकार है और सांसद को यह राशि नियमित रूप से देनी होगी।
⚖️ कानूनी संदर्भ
गुजारा भत्ता का प्रावधान धारा 125, दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) में है। इसके तहत पत्नी, बच्चे या माता-पिता को भरण-पोषण का अधिकार है, यदि कोई व्यक्ति उन्हें बिना कारण छोड़ देता है या आर्थिक सहायता देने से इंकार करता है।
💬 सामाजिक विमर्श : चार शादियां और न्याय का प्रश्न
यह मामला केवल एक कानूनी आदेश नहीं, बल्कि समाज के लिए भी आत्ममंथन का अवसर है।
आज के युग में चार शादियां करना कितना उचित है, ख़ासकर तब जब व्यक्ति अपनी पत्नियों के साथ न्याय नहीं कर पाता?
इस्लामिक पर्सनल लॉ में बहुविवाह की अनुमति तो है, लेकिन इसका उद्देश्य न्यायऔरसमानता पर आधारित है।
यदि कोई व्यक्ति अपनी पत्नियों को समान अधिकार, सुरक्षा और सम्मान नहीं दे पाता, तो यह उस सिद्धांत के विरुद्ध है जिस पर यह अनुमति आधारित है।
📊 भारत में बहुविवाह की वास्तविक स्थिति
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5, 2019–21) के अनुसार,
भारत में केवल 1.9 प्रतिशत मुस्लिम महिलाओं ने बताया कि उनके पति की एक से अधिक पत्नियाँ हैं।
यह अनुपात राष्ट्रीय औसत 1.4 प्रतिशत से थोड़ा अधिक है, लेकिन पहले के वर्षों की तुलना में इसमें गिरावट आई है।
अन्य सर्वेक्षणों से भी यही संकेत मिलता है कि मुस्लिम समाज में दो या अधिक पत्नियाँ रखने की प्रवृत्ति बहुत सीमित है।
महाराष्ट्र के मुस्लिम-बहुल शहर मालेगाँव में हुए एक सर्वे में 5 लाख से अधिक मुस्लिमों में केवल 151 पुरुषों की दो पत्नियाँ और सिर्फ दो पुरुषों की तीन पत्नियाँ पाई गईं।
इससे स्पष्ट है कि बहुविवाह अब बहुत अपवादस्वरूप स्थिति है, न कि सामान्य प्रचलन।
ऐसे में किसी जनप्रतिनिधि द्वारा चार शादियाँ करना और फिर पत्नियों के साथ न्याय न कर पाना न केवल कानूनी, बल्कि नैतिक प्रश्न भी खड़ा करता है।
🧭 नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारी
विवाह केवल अधिकार नहीं बल्कि एक जिम्मेदारी और वचन है।
जो व्यक्ति अपनी पत्नियों के साथ न्याय नहीं कर पाता,
वह न केवल कानून की नजर में दोषी है बल्कि समाज और धर्म — दोनों के मूल सिद्धांतों से भटक जाता है।
(रिपोर्ट: मीडिया स्वराज डेस्क)