ग्रामीण क्षेत्र की त्रासदी
कर्नल प्रमोद शर्मा, कृषक , पूर्व सैनिक संगठन।
कृषक कॅरोना के दौर में कई फ्रंट पर समस्याओं से जूझ रहा है। फसल की कटाई शुरू हो चुकी है, कृषकों के पास गेहूं कटवाने के लिए श्रमिकों और कंबाइन वालों को देने के लिए पर्याप्त पूंजी नही है। गेहूं उत्पादक गोरख चव्हाण का कहना है, “छोटी जोत के कारण गेहूं काटने के लिए कंबाइन मशीन आने के लिए तैयार नही, श्रमिकों को देने के लिए कैश नही” सरकार अभी तक गेहूं के लिए क्रय केंद्र नही खुलवा सकी है।बिचौलिए चौदह पन्द्रह सौ रुपये प्रति क्विन्टल गेहूं खरीदने के लिए कृषकों पर दबाव डाल रहे हैं , जिस गेहूं की न्यूनतम कीमत 1850/-प्रति क्विन्टल मिलना चाहिए।
दूध उत्पादकों को दूध बेचने के लिये हलवाइयों से भी मदद नही मिल रही। कमलेश यादव दूध व्यवसायी ने कहा, “जो दूध की कीमत तीस रुपये प्रति लीटर मिलता था अब उस दूध को शहर ले जाने वाला कोई नही।लोकल में खपत नही, दूध का क्या करें” दूध पशुओं के लिए हरा चारा खत्म हो रहा है।आसपास क्षेत्रों से चारा भी नही आ पारा है।भूसा अभी तैयार नही है।
सब्जी उत्पादक को अपना माल शहरों की मंडियों तक पहुँचाने के लिए बहुत मशक्कत करनी पड़ रही है।जो सब्जी उत्पादक अपने माल को सड़कों के किनारे ठेली लगा के बेच लेता था आज कोई खरीदार न होने से वह भारी असमन्जस में है।
सरकार से अनुरोध है कि चंद कदम अवलंब उठाए।
– गेहूं खरीद के लिए तत्काल क्रय केंद्र की व्यवस्था।
– दूध चिलिंग प्लांट के टैंकरों से ग्रामीण क्षेत्र से सारे दूध को खरीद कर शहरों में पहुँचवाये।
– स्थानीय मंडियों से फल सब्जी की खरीद की व्यवस्था कराए।
यदि समय रहते हम नही चेते तो कॅरोना के प्रकोप के बाद आर्थिक मंदी के साथ साथ अन्न सब्जी की किल्लत से भी जूझना पड़ेगा।