सच तो ये है कि सच आज बेपर्दा हुआ है
मैं मज़दूर
मेरी बेबसी को बयां करने में
कोई शब्दों से खेलेगा
कोई लाचारी की गिरह खोलेगा
लेकिन तुम में से है कोई
जो अपनी बुनियाद को मेरे काम से तौलेगा
तू जहां रहता है, अभी जहां बैठा है
उस इमारत का हर एक पत्थर
मेरे पसीने की कहानी उकेरेगा
तुझे ग़म है कि बच्चे बाग़ीचे से दूर हैं
मेरा बच्चा एक निवाले को मजबूर है
तेरी फ़िक्र है कि बाज़ार बंद है
मेरी थकान से साँसें मंद हैं
तुझे घर से बाहर आना है
मुझे बस अब घर जाना है
मैंने अपना गाँव, खेत, ज़मीन छोड़ी
तुझे उरूज पर लाने के लिए
तूने मुझे सड़क पर ला दिया
सिफ़र पर लौट जाने के लिए
कौन कहता है कि जो हुआ है आज हुआ है
सच तो ये है कि सच आज बेपर्दा हुआ है
पहले रोटी की आड़ में ईंटों का बोझा था
आज रोटी की आड़ में बच्चों को ढोया है
तूने मीलों का सफ़र तय किया मेरी मेहनत पर
आज मैं भी हूँ मीलों की उस डगर पर
फ़र्क़ इतना भर है ए मेरे महान भारत
तू बहुत आगे बढ़ गया मुझे पीछे धकेल कर
– रुबिका लियाक़त , ए बी पी न्यूज़
👌🙏🏽😓
Thanks
सच्चाई है जनाब ये बडे बडे वादों की , भूख की, नये भारत की और मानवता की
कहाँ तक नाम गिनवाँँए सभी ने इनको लूटा है। कोई ताली थाली बजा कर तो कोई वोट का लालच दिलवाकर
Corona ki mahamari ne sarkar ko expose kr diya
Sach to ye h sahb 06 sal ka vikas 45 din me kmar tod diya
Jai hind