रेल भर्ती: छात्रों का ये आंदोलन अब थमने वाला नहीं
सरकार समिति बनाकर हमारे ग़ुस्से को ठंडा करना चाहती है ताकि यूपी और दूसरे राज्यों के चुनावों पर असर न हो
रेल भर्ती परीक्षा परिणामों को लेकर नाराज छात्रों ने आज बिहार बंद का आह्वान किया था. शुक्रवार के बिहार बंद ने ये साफ कर दिया है कि छात्र सरकार की समिति गठन की बात से सहमत नहीं हैं. आंदोलनरत छात्रों का मानना है कि सरकार यूपी और अन्य राज्यों के चुनाव तक भर्तियां टालना चाहती है. जैसे ही चुनाव खत्म हो जायेंगे, रोजगार देने का उनका यह नाटक भी खत्म हो जायेगा. यानी कहा जा सकता है कि आने वाले समय में छात्र आंदोलन खत्म होने वाला नजर नहीं आता बल्कि उम्मीद यह की जानी चाहिये कि धीरे धीरे इस आग की लौ और ज्यादा भड़कने वाली है.
मीडिया स्वराज डेस्क
बिहार बंद के दौरान गुस्साये छात्रों का दर्द जितना उनकी आंखों से बयां हो रहा था, उतना ही जुबां से भी. उन्हें केंद्र की बीजेपी सरकार पर कतई भी भरोसा नहीं रह गया है. उनका कहना है कि मोदी सरकार को शर्म आनी चाहिये. कितनी आसानी से रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने प्रेस कांफ्रेंस में कह दिया कि 1.27 करोड़ लोगों ने आवेदन भरा, ऐसे में परीक्षा लेना आसान नहीं था, ऐसा बोलने से पहले उन्हें शर्म आनी चाहिये थी. क्या उन्हें ये बात समझ नहीं आयी कि देश में बेरोजगारी किस हद तक बढ़ चुकी है?
आरआरबी-एनटीपीसी परीक्षा के नतीजों से नाराज बिहार की सड़कों पर उतर आये प्रदर्शनकारी छात्रों का कहना है कि सरकार समिति बनाकर हमारे ग़ुस्से को ठंडा करना चाहती है ताकि यूपी और दूसरे राज्यों के चुनावों पर असर न हो, बेरोज़गार शांत रहें. हम सरकार की साज़िश समझ रहे हैं.
इन बेरोज़गार युवाओं के अंदर आक्रोश किस गहराई तक पहुंच चुका है, इसका एहसास उनकी बातें सुनकर आसानी से किया जा सकता है. सरकार ने अगर इसे गंभीरता से लेते हुये जल्दी ही इसका हल निकालने की कोशिश नहीं की तो ये प्रदर्शन एक बड़े आंदोलन का रूप भी ले सकते हैं.
बता दें कि सोमवार से ही बिहार की राजधानी पटना और कई शहरों में ग़ुस्साए छात्रों ने प्रदर्शन किए. कई जगह हिंसा भी हुई और ट्रेनों को आग भी लगा दी गई. इस मामले में अब तक आठ छात्र गिरफ़्तार किए जा चुके हैं. आज छात्रों ने बिहार बंद का आह्वान भी किया था, जिसे लेकर राजधानी पटना में सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम किये गये थे.
बढ़ती जा रही है निराशा
14 जनवरी को नतीजे आने के बाद से ही छात्रों में नाराज़गी थी. छात्रों का आरोप है कि इन नतीजों में गड़बड़ी है और इनसे ऐसे छात्र बाहर हो जाएंगे जिनके पास मैरिट है. उनका कहना है कि नतीजे आने के बाद से ही हमारी ओर से सोशल मीडिया पर विरोध किया जा रहा था. जब दस दिनों तक सोशल मीडिया पर छात्रों के विरोध को नज़रअंदाज़ किया गया तब वे सड़कों पर उतर गए. छात्रों के इस प्रदर्शन के पीछे न कोई चेहरा है और न कोई नेतृत्व.
बेरोज़गार छात्रों का ये ग़ुस्सा कई सालों से पनप रहा है. भर्तियां निकल नहीं रही हैं और तैयारी में पैसा और समय दोनों ख़त्म होता जा रहा है. नौकरी न मिलने से उनमें अवसाद बढ़ रहा है.
पंकज कुमार कहते हैं, “मैंने पांच चरणों में परीक्षा दी है, हर बार पास हुआ हूं, लेकिन नौकरी नहीं लगी है. सरकार नतीजों की तारीख आगे बढ़ाती जाती है, कभी चार महीने नतीजा टाल देते हैं, कभी छह महीने, परंतु अब हमारे सब्र का बांध टूट रहा है.”
पंकज कहते हैं, “कभी विधानसभा चुनाव के लिए भर्ती आगे बढ़ा देते हैं, कभी लोकसभा चुनाव के लिए. इसी तरह से हमें परेशान किया जा रहा है. हमारा तो समय और पैसा दोनों ख़र्च हो रहा है.”
तैयारी करने वाले कई छात्रों का कहना है कि उनके सामने हालात बदतर होते जा रहे हैं. कई बार उन्हें भूखे ही सोना पड़ता है. बहुत से छात्र ऐसे हैं, जो कई सालों से तैयारी कर रहे हैं. उन्हें लगता है कि समय उनके हाथ से निकलता जा रहा है.
27 साल के शशिभूषण समस्तीपुर से हैं और पिछले छह सालों से पटना में रहकर परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं. शशि भूषण का कहना है कि इस दौरान उनके क़रीब पांच लाख रुपये ख़र्च हो गये हैं, लेकिन अब नतीजों में गड़बड़ी ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है.
शशिभूषण प्रदर्शन में शामिल थे. भिखुनिया मोड़ पर जब पुलिस और छात्रों के बीच पत्थरबाज़ी हुई, तब शशि भूषण ने भी पत्थर उठा लिया था. भूषण कहते हैं, “इस सरकार ने हमारे सामने कोई रास्ता नहीं छोड़ा है, हम इतने आक्रोशित हो गए थे कि जब पुलिस ने छात्रों को पीटा तो हमने भी पत्थर उठा लिया.”
शशि भूषण अकेले नहीं हैं. हज़ारों ऐसे छात्र हैं, जिन्हें लगता है कि परीक्षा के नतीजों में हुई कथित गड़बड़ी ने उनके भविष्य को अंधकार में ला दिया है.
सरकार के समिति के गठन की घोषणा पर शशि भूषण कहते हैं, “हम इस समिति को ख़ारिज करते हैं, ये समिति नहीं है. ये यूपी चुनाव तक बेरोज़गारों के ग़ुस्से को ठंडा करने की साज़िश है. एक बार छात्र चुप बैठ जाएगा, चुनाव हो जाएगा तो सरकार का जो मन करेगा, वो वही करेगी.”
छात्रों में नाराज़गी इस बात को लेकर भी है कि भर्तियां सही समय पर नहीं निकल रही हैं और निकल भी रही हैं तो उनमें देरी की जा रही है.
शशि भूषण कहते हैं, “ये भर्ती 2019 में निकली थी, लोकसभा चुनाव से पहले. इसी के नाम पर चुनाव जीत लिया गया. अब तीन साल बाद तक भी नतीजे नहीं आए हैं. छात्र अब सरकार की नीयत को समझ रहे हैं.” प्रदर्शन करने वाले छात्रों की सबसे बड़ी नाराज़गी यही है कि उनके पास भर्ती परीक्षाओं और नतीजों का कैलेंडर नहीं है. छात्र कहते हैं, हमें ये स्पष्ट कैलेंडर चाहिए, जिससे पता चले कि सीबीटी-2 (कम्प्यूटर बेस्ड टेस्ट), स्किल टेस्ट और इंटरव्यू कब होगा और अंतिम नतीजे कब आएंगे. समिति को रिपोर्ट जब देनी है तब दे, लेकिन परीक्षा की तारीख़ अभी दे.
छात्रों का ये आंदोलन स्वत:स्फूर्त
छात्र संगठन एआईएसए (आइसा) से जुड़े विकास कहते हैं, “छात्रों का ये आंदोलन स्वत:स्फूर्त है, इसके पीछे कोई नेता नहीं है. ये पिछले आठ सालों का ग़ुस्सा है, जो अब फूट पड़ा है. अभी ये प्रदर्शन रेलवे एनटीपीसी परीक्षा को लेकर हो रहे हैं, लेकिन इस गुस्से के पीछे सिर्फ़ एनटीपीसी नहीं है. भारत में बेरोज़गारी की स्थिति के विरोध में गुस्सा बढ़ता जा रहा है. रेलवे एनटीपीसी के नतीजों में गड़बड़ी ने इसे हवा दे दी है.”
विकास कहते हैं, “यहां के किसान, मज़दूर, वंचित तबके के लोग रेलवे की ग्रुप डी भर्ती के जरिये अच्छे जीवन की कल्पना करते हैं. इससे लोगों की बहुत उम्मीदें जुड़ी होती हैं, अब इसमें ही धांधली हुई तो छात्रों का गुस्सा फूट पड़ा है.”
इंकलाबी नौजवान सभा से जुड़े संतोष आर्य कहते हैं, “कई स्तर पर छात्रों के बीच में समन्वय है, लेकिन नेतृत्व नहीं है. छात्र व्हाट्सऐप और सोशल मीडिया पर जुड़े हुए हैं. हमें लगता है कि अगर छात्रों के इस आंदोलन को नेतृत्व नहीं मिला तो हिंसा और अधिक हो सकती है.”
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वहीं, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने अपने आप को अभी तक इन प्रदर्शनों से दूर ही रखा है. हालांकि, कहीं न कहीं छात्रों के मुद्दों पर संगठन ने सहमति दी है. एबीवीपी से जुड़े सुधांशु कहते हैं, “छात्रों के मुद्दों का हम समर्थन करते हैं लेकिन हम समस्या पर नहीं, समाधान पर फ़ोकस करना चाहते हैं. हमने इसे लेकर अधिकारियों से बैठक की है और छात्रों की मांगों को रखा है. हम प्रदर्शन में शामिल नहीं हैं, लेकिन छात्रों के साथ हैं.”
छात्रों के इस अविश्वास की वजह बताते हुए जाने माने समाजशास्त्री पुष्पेंद्र सिंह कहते हैं, “सरकार में रोज़गार के मामलों को टालने का ट्रेंड बन गया है. भर्तियों को खींचा जा रहा है, ठेकों पर नियुक्ति की जा रही है. परीक्षाओं और उनके नतीजे निकालने में देरी की जा रही है. नतीजों के बाद नियुक्ति पत्र देने में भी देरी की जा रही है.”
“किसी ना किसी बहाने से भर्ती में कमी निकालकर टालने की कोशिश की जाती है. ये एक पैटर्न है. आज का यूथ इतना बेवकूफ़ नहीं है कि वो इस पैटर्न को न समझ पाए. वो इसे देख रहा है और समझ रहा है और धीरे-धीरे उसका आक्रोश बढ़ता जा रहा है. इससे सरकार के प्रति छात्रों का भरोसा टूट गया है.”
छात्रों का यह प्रदर्शन आगे कहां तक जाएगा, फिलहाल ये कह पाना मुश्किल है, लेकिन इस बात में कतई भी संदेह नहीं है कि अगर उनके आक्रोश को जल्दी ही रोका न गया तो परिस्थितियां बहुत गंभीर हो सकती हैं.