कमाल थे कमाल खान : पत्रकारिता को समृद्ध कर गये
कमाल खान का जाना
कमाल थे कमाल खान। कल से पहले तक यह नाम सुनकर हमारे चेहरे पर एक गजब का तेज, गजब की चमक आ जाती थी, मानो उनके नाम में ही एक जादू था, कमाल था। नि:संदेह था भी। कमाल वाकई कमाल थे। उन जैसे पत्रकार और इंसान आज कम ही मिल पाते हैं।
एनडीटीवी के कमाल खान की रिपोर्टिंग, उनकी आवाज, बोलने का तरीका और हर बात को बयां करने का वो जबरदस्त अंदाज… शायद ही कभी कोई भूल पायेगा!
कमाल की अंतिम रिपोर्टिंग…
शुक्रवार की सुबह दिल का दौरा पड़ने से कमाल ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। यह खबर हम सभी के लिये वाकई स्तब्ध कर देने वाली थी। कल पूरा दिन मीडिया जगत कमाल की ही बातें करता रहा। उन्हें याद करता रहा। उनके जाने की तकलीफ को एक दूसरे के साथ बांटता रहा। लेकिन यह तकलीफ कम कहां होने वाली है? बस, दिल चाहता है बार बार उन्हें सुनते रहें। पढ़ने, लिखने और बोलने की उनकी शैली, बातचीत का उनका खास अंदाज और इन सबसे कहीं बढ़कर उनका आकर्षण, उनके व्यक्तित्व पर हम बातें करते रहें।
कमाल के थे कमाल खान
कमाल का लाइब्रेरी में घंटों बिताना, एचएएल कंपनी में रूसी भाषा से हिंदी के अनुवादक के रूप में काम करना, भगत सिंह के साथी रहे क्रांतिकारी शिव वर्मा के स्मृतियों को संजोने का काम करने से लेकर पत्रकारिता जगत में आने और यहां अपनी अलग और खास पहचान बनाने तक, उनके जीवन सफर के हर एक पहलू के बारे में चर्चा कर रहे हैं जाने माने वरिष्ठ पत्रकार राम दत्त त्रिपाठी, आलोक जोशी और कुमार भावेश चंद्र। आप भी सुनिये…