कमर और पीठ दर्द से है परेशान, तो करें ये योगासन

शरीर को स्वस्थ रखने के लिए कमर (Waist) को लचीला बनाए रखना बहुत जरूरी होता है. साथ ही पेट की चर्बी को भी कम करना पड़ता है. ऐसा करने से आपका शरीर ने केवल बाहर से सुंदर दिखता है बल्कि शरीर अंदर से भी हेल्दी रहता है. घंटो बैठकर काम करने वाले लोगों को अक्सर कमर और पीठ दर्द (Back Pain) की परेशानी होती है. वहीं बैठकर काम करने से पेट की चर्बी भी तेजी से बढ़ती है. ऐसे में आपको कुछ खास योगासनों (Yoga) का अभ्यास करना चाहिए. योग करने से शरीर स्वस्थ रहता है और जीवन संतुलित बना रहता है. इसके अलावा इम्यूनिटी (Immunity) को मजबूत बनाने के लिए न सिर्फ हेल्दी खाना खाएं बल्कि जमकर योग भी करें. नियमित रूप से योग करने से शरीर में एनर्जी (Energy) का संचार तो होता ही है साथ ही कई प्रकार की बीमारियों से भी छुटकारा मिलता है.

ग्रीवा शक्ति आसन

इस योग क्रिया को करने के लिए अपनी जगह पर खड़े हो जाएं. जो लोग खड़े होकर इस क्रिया को करने में असमर्थ हैं वे इसे बैठकर भी कर सकते हैं. जो जमीन पर नहीं बैठ सकते वे कुर्सी पर बैठकर भी इसका अभ्यास कर सकते हैं. कंफर्टेबल पोजीशन में खड़े होकर हाथों को कमर पर टिकाएं. शरीर को ढीला रखें. कंधों को पूरी तरह से रिलैक्स रखें. सांस छोड़ते हुए गर्दन को आगे की ओर लेकर आएं. चिन को लॉक करने की कोशिश करें. जिन लोगों को सर्वाइकल या गर्दन में दर्द की समस्या हो वह गर्दन को ढीला छोड़ें चिन लॉक न करें. इसके बाद सांस भरते हुए गर्दन को पीछे की ओर लेकर जाएं.
सांस छोड़ते हुए फिर गर्दन को आगे की ओर लेकर जाएं. इसके बाद शरीर को पूरी तरह से ढीला छोड़ दें. इस क्रिया को 8 से 10 बार करें. इसके बाद दूसरी क्रिया करनी है. सांस छोड़ते हुए दाईं ओर गर्दन को झुकाएं. सांस भरते हुए सेंटर में गर्दन लेकर आएं. फिर सांस छोड़ते हुए बाईं ओर गर्दन लेकर जाएं और सांस भरते हुए सेंटर में गर्दन ले आएं. इसके बाद शरीर को ढीला छोड़ दें. गदर्न के दर्द को कम करने, शरीर और माइंड को रिलैक्स करने के लिए ये क्रिया बेस्ट है.

जानु शीर्षासन

जानु शीर्षासन असल में संस्कृत भाषा का शब्द है. ये शब्द तीन शब्दों से मिलकर बना है. पहले शब्द जानु का अर्थ घुटना होता है. दूसरे शब्द शीर्ष का अर्थ सिर होता है. वहीं तीसरे शब्द आसन का अर्थ, बैठने, लेटने या खड़े होने की मुद्रा, स्थिति या पोश्चर से है.
जानु शीर्षासन के फायदे
-मजबूत बनाता है और स्ट्रेच करता है.
-शरीर के कई अंगों को स्टिम्युलेट करता है.
-पाचन सुधारता है.
-दिमाग को शांत करता है और एंग्जाइटी लेवल को कम करता है.
-लोअर बैक और स्पाइन का लचीलापन सुधारता है.

उत्तानासन

इस आसन को स्टैंडिंग फॉरवर्ड बेंड भी कहा जाता है. उत्तानासन को कई योगासनों का मूल भी माना जाता है. इस आसन के अभ्यास से आपके शरीर में खिंचाव पैदा होता है. ये खिंचाव आपको चिंता, टेंशन और डिप्रेशन दूर रखने में मदद करता है. इसके अलावा ये हमारे पाचन को ठीक रखता है और शरीर में उत्तेजना बढ़ाने में मदद करता है.
व्रजासन
बहुत हेवी डाइट के बाद तुरंत सोने या बैठकर टीवी देखने से डाइजेशन संबंधी समस्याएं हो जाती हैं. ऐसे में अगर आप रोज खाने के बाद टीवी देखने या तुरंत सोने के बजाय वज्रासन को अपने रूटीन में शामिल करेंगे तो यकीनन आप डाइजेशन से संबंधित समस्याओं से दूर रहेंगे. वज्रासन को आप दिन में कभी भी कर सकते हैं लेकिन यह अकेला ऐसा आसन है जो खाने के तुरंत बाद बहुत अधिक प्रभावी होता है. यह न सिर्फ पाचन की प्रक्रिया ठीक रखता है बल्कि लोअर बैकपेन से भी आराम दिलाता है.
वज्रासन करने का तरीका
इस आसन को करने के लिए घुटनों को मोड़कर पंजों के बल सीधा बैठें. दोनों पैरों के अंगूठे आपस में मिलने चाहिए और एड़ियों में थोड़ी दूरी होनी चाहिए. शरीर का सारा भार पैरों पर रखें और दोनों हाथों को जांघों पर रखें. आपकी कमर से ऊपर का हिस्सा बिल्कुल सीधा होना चाहिए. थोड़ी देर इस अवस्था में बैठकर लंबी सांस लें. जिन लोगों को जोड़ों में दर्द हो या गठिया की दिक्कत हो वे इस आसन को न करें

वज्रासन के फायदे

वज्रासन के दौरान शरीर के मध्य भाग पर सबसे अधिक दबाव पड़ता है. इस दौरान पेट और आंतों पर हल्का दबाव पड़ता है जिससे कांस्टिपेशन की दिक्कत दूर होती है और पाचन ठीक रहता है. वज्रासन की मुद्रा में कमर और पैरों की मांसपेशियों का तनाव दूर होता है और ज्वाइंट्स खुलते हैं. अधिक चलने या देर तक खड़े होने के बाद इस आसन की मदद से आराम महसूस होगा.

उत्तानपाद आसन

उत्तानपाद आसन के अभ्यास करने के लिए सबसे पहले जमीन पर चटाई या दरी बिछाएं और सीधे लेट जाएं. अब श्वास भरते हुए बिना घुटनों को मोड़ें पैरों को 30 डिग्री के कोण तक उठाएं और जितनी देर इस स्थिति में रुक सकते हैं रुकें और फिर धीरे धीरे श्वास छोड़ते हुए पैरों को नीचे जमीन पर लाएं, पैर नीचे की तरफ लाते हुए ध्यान रखें कि पैर झटके के साथ नीचे न लाएं और न ही पैरों को झटके के साथ ऊपर ले जाएं. दोबारा श्वाश भरते हुए पैरों को 60 डिग्री कोण तक धीरे-धीरे ऊपर की तरफ उठाएं और जितनी देर रोक सकें रोकें.
इसके बाद श्वास छोड़ते हुए पैरों को धीरे धीरे नीचे लाएं. इस आसन का अभ्यास शुरूआती दिनों में सिर्फ पांच मिनट तक ही करें और धीरे धीरे अपने क्षमता के अनुसार अभ्यास बढ़ाएं. जिन्हें ह्रदय से सम्बंधित या हाई ब्लड प्रेशर की शिकायत है ऐसे लोग इस आसन का अभ्यास न करें. पीठ दर्द में इस आसन को धीरे धीरे करें और अगर स्लिप डिस्क से सम्बंधित दिक्कत है तो इस आसन का अभ्यास योग्य प्रशिक्षक की देख रेख में ही करें. इस आसन को करने से गुस्से पर नियंत्रण होता है मन शांत रहता है व इसका प्रभाव गोनाड्स ग्रंथि पर पड़ने के कारण शुक्रवाहिनियां स्वस्थ होती हैं.

चक्रासन

चक्र का अर्थ है पहिया. इस आसन में व्यक्ति की आकृति पहिये के समान नजर आती है इसीलिए इसे चक्रासन कहते हैं. यह आसन भी उर्ध्व धनुरासन के समान माना गया है.
कैसे करें चक्रासन
सर्वप्रथम शवासन में लेट जाएं. फिर घुटनों को मोड़कर, तलवों को भूमि पर अच्छे से जमाते हुए एड़ियों को नितंबों से लगाएं. कोहनियों को मोड़ते हुए हाथों की हथेलियों को कंधों के पीछे थोड़े अंतर पर रखें. इस स्थिति में कोहनियां और घुटनें ऊपर की ओर रहते हैं. श्वास अंदर भरकर तलवों और हथेलियों के बल पर कमर-पेट और छाती को आकाश की ओर उठाएं और सिर को कमर की ओर ले जाए. फिर धीरे-धीरे हाथ और पैरों के पंजों को समीप लाने का प्रयास करें, इससे शरीर की चक्र जैसी आकृति बन जाएगी. अब धीरे-धीरे श्वास छोड़ते हुए शरीर को ढीला कर, हाथ-पैरों के पंजों को दूर करते हुए कमर और कंधों को भूमि पर टिका दें और फिर शवासन की स्थिति में लौट आएं.
चक्रासन के फायदे
मेरुदंड को लचिला बनाकर शरीर को वृद्धावस्था से दूर रखता है. शरीर में शक्ति और स्फूर्ति बनी रहती है. यह रीढ़, कंधे, कमर, पीठ, पेट सभी को स्वस्थ बनाए रखकर शक्ति प्रदान करता है. यह हृदय प्रणाली को सुचारू रूप से चलायमान रखता है.

शलभासन

शलभासन एक संस्कृत भाषा का शब्द है, जो दो शब्दों से मिलकर बना है, जिसमें पहले शब्द शलभ का अर्थ टिड्डे या कीट (Locust ) और दूसरा शब्द आसन का अर्थ होता है मुद्रा अर्थात शलभासन का अर्थ है टिड्डे के समान मुद्रा होना. इस आसन को अंग्रेजी में ग्रासहोपर पोज बोलते हैं. इससे आपकी रीढ़ की हड्डी मजबूत होती है.
शलभासन करने का तरीका
शलभासन करने लिए सबसे पहले आप किसी साफ स्थान पर चटाई बिछा कर उलटे पेट के बल लेट जाएं यानि आपकी पीठ ऊपर की ओर रहे और पेट नीचे जमीन पर रहे. अपने दोनों पैरो को सीधा रखें और अपने पैर के पंजे को सीधे तथा ऊपर की ओर रखें. अपने दोनों हाथों को सीधा करें और उनको जांघों के नीचे दबा लें यानी अपना दायां हाथ दायीं जांघ के नीचे और बायां हाथ बायीं जांघ के नीचे दबा लें. अपने सिर और मुंह को सीधा रखें. फिर अपने को सामान्य रखें और एक गहरी सांस अंदर की ओर लें. अपने दोनों पैरों को ऊपर की ओर उठाने की कोशिश करें, जितना हो सकता हैं उतना अपनी अधिकतम ऊंचाई तक पैरों को ऊपर करें.
अगर आप योग अभ्यास में नए हैं, तो आप पैरों को ऊपर करने के लिए अपने हाथों का सहारा ले सकते हैं, इसके लिए आप अपने दोनों हाथों को जमीन पर टिका के अपने पैरों को ऊपर कर सकते हैं. आप इस मुद्रा में कम से कम 20 सेकंड तक रहने की कोशिश करें, इसे आप अपने क्षमता के अनुसार कम ज्यादा कर सकते हैं. इसके बाद आप धीरे धीरे अपनी सांस को बाहर छोड़ते हुए पैरों को नीचे करते जाएं. दोबारा अपनी प्रारंभिक स्थिति में आ जाएं. इस अभ्यास को 3-4 बार दोहराएं.
शलभासन के फायदे
शलभासन वजन को कम करने के लिए एक अच्छी योग मुद्रा मानी जाती है. यह शरीर में चर्बी को खत्म करने में मदद करती है. शरीर की मांसपेशियों को मजबूत करने के लिए शलभासन एक अच्छी मुद्रा है. यह शरीर के हाथों, जांघों, पैरों और पिंडरी को मजबूत करता है, इसके साथ यह पेट की चर्बी को कम करके उसे सुंदर बनाता है. रीढ़ की हड्डी को मजबूत करने के लिए शलभासन एक अच्छा योग है. शलभासन से अनेक प्रकार की बीमारियों को ठीक किया जा सकता है. यह हमारे पेट के पाचन तंत्र को ठीक करता करता है, जिससे पेट संबंधी बीमारियां नहीं होती हैं, इसके साथ यह कब्ज को ठीक करता है, शरीर में अम्ल और क्षार के संतुलन को बनाए रखता है.
कपालभाती
कपाल भाति बहुत ऊर्जावान उच्च उदर श्वास व्यायाम है. कपाल अर्थात मस्तिष्क और भाति यानी स्वच्छता अर्थात ‘कपाल भाति’ वह प्राणायाम है जिससे मस्तिष्क स्वच्छ होता है और इस स्थिति में मस्तिष्क की कार्यप्रणाली सुचारु रूप से संचालित होती है. वैसे इस प्राणायाम के अन्य लाभ भी हैं. लीवर किडनी और गैस की समस्या के लिए बहुत लाभ कारी है. कपालभाति प्राणायाम करने के लिए रीढ़ को सीधा रखते हुए किसी भी ध्यानात्मक आसन, सुखासन या फिर कुर्सी पर बैठें.
इसके बाद तेजी से नाक के दोनों छिद्रों से सांस को यथासंभव बाहर फेंकें. साथ ही पेट को भी यथासंभव अंदर की ओर संकुचित करें. इसके तुरंत बाद नाक के दोनों छिद्रों से सांस को अंदर खीचतें हैं और पेट को यथासम्भव बाहर आने देते हैं. इस क्रिया को शक्ति व आवश्यकतानुसार 50 बार से धीरे-धीरे बढ़ाते हुए 500 बार तक कर सकते हैं लेकिन एक क्रम में 50 बार से अधिक न करें. क्रम धीरे-धीरे बढ़ाएं. इसे कम से कम 5 मिनट और अधिकतम 30 मिनट तक कर सकते हैं.

कपालभाति के फायदे

ब्लड सर्कुलेशन अच्छा होता है
सांस संबंधी बीमारियों को दूर करमे में मदद मिलती है. विशेष रूप से अस्थमा के पेशेंट्स को खास लाभ होता है.
महिलाओं के लिए बहुत लाभकारी
पेट की चर्बी को कम करता है
पेट संबंधी रोगों और कब्ज की परेशानी दूर होती है
रात को नींद अच्छी आती है
ये लोग कपालभाति न करें
प्रेग्नेंट महिलाओं को इसे करने से बचना चाहिए
जिनकी कोई सर्जरी हुई हो वह इसे न करें
गैसट्रिक और एसिटिडी वाले पेशेंट्स इसे धीरे-धीरे करने की कोशिश करें.
पीरियड्स में बिल्कुल न करें.
हाई बीपी और हार्ट संबंधी रोगों के पैशेंट्स इसे करने से बचें.

Related Articles

Back to top button