प्रभु राम कौन हैं?
प्रभु राम कौन हैं?राम कवन प्रभु . यह बड़ा गूढ़ प्रश्न है जिसका उत्तर खोजने की कोशिश संत तुलसी दास, कबीर दास , महात्मा गांधी और तमाम अन्य लोगों ने की है. प्रयागराज से वैज्ञानिक चंद्रविजय चतुर्वेदी का विचार पूर्ण लेख. अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के प्रसंग में प्रभु राम का वास्तविक स्वरूप समझना और भी ज़रूरी हो गया है.
राम कवन प्रभु पूछहि तोहि — बाबा तुलसी के मानस में एक प्रसंग है -प्रयागराज गुरुकुल के दस सहस्त्र बटुकों के कुलपति ऋषि भारद्वाज को संशय हुआ की ब्रह्मस्वरूप राम और अवधेशकुमार राम एक ही हैं या दोनों अलग अलग हैं .
एक अवसर पर उन्होंने अपने संशय की अभिव्यक्ति अपने गुरु ऋषि याज्ञवल्क से करते हुए पूछा कि —राम कवन प्रभु पूछहि तोहि —
समाधान हेतु याज्ञवल्क जी ने वह कथा बताई की सीताहरण के उपरान्त जब राम वियोग में खग मृग से सीता के बारे में पूछ रहे थे तो भगवान शंकर अंतरिक्ष में राम की आराधना कर रहे थे .
सती को संशय हुआ —
ब्रह्म जो व्यापक बीरज अज अकळ अनीह अभेद
सोइ कि देह धरि होइ नर जाहिन जानत वेद
अर्थात जो ब्रह्म सर्वव्यापक माया रहित अजन्मा अगोचर इच्छारहित और भेद रहित है –जिसे वेद भी नहीं जानते -क्या वह देह धारण करके मनुष्य हो सकता है
भगवान शंकर भवानी से कहते रहे की राम ब्रह्म के अवतार हैं –अवतरेउ अपने भगत हित —पर सती का संशय दूर नहीं होता और वे प्रभु राम की परीक्षा हेतु सीता का वेश धारण करके वन पहुँच ही गई —
प्रभु राम ने सती को देखते ही माँ का सम्बोधन करते हुए पूछा –कहेउ बहोरि कहाँ बृषकेतू -विपिन अकेलु फिरहि केहि हेतु –
प्रभु राम को जानने में जब ऋषि भारद्वाज और सती जैसी विभूतियों को जब हो जाती है तो सामान्य मानव की क्या बिसात ?
रामकथा प्रारम्भ करने के पूर्व तुलसी अपने नायक की वंदना करते हैं —
बंदउँ रामनाम रघुबर को हेतु कृसानु भानु हिमकर को
विधि हरिहर मय वेदप्रान सो अगुन अनुपम गुन निधान को
अर्थात मैं श्री रघुनाथ के नाम राम की बंदना करता हूँ जो कृसानु –अग्नि भानु –सूर्य और हिमकर -चन्द्रमा का हेतु है अर्थात र आ म रूप से बीज है –यही राम नाम ब्रह्मा विष्णु और शिव रूप में है –वह वेदों का प्राण है –निर्गुण उपमा रहित –गुणों का भंडार है.
बाबा तुलसी राम के निर्गुण सगुन रूप का वर्णन करते हुए अंत में कहते हैं —-चरित सिंधु रघुनायक थाह कि पावइ कोई —
प्रभु राम कौन — इस प्रश्न उत्तर समूचे देश की भाषाओँ की रामकथा ढूंढती हैं
—भक्तिमार्गी रैदास कबीर दादू ढूंढते हैं –कबीर बहुत साफ़ कहते हैं —
—सबमे रमै रमावै जोई —ताकर नाम राम अस होइ
–कबीर की दृष्टि में प्रभु राम कौन —
चार राम हैं जगत में तीन नाम व्यवहार
चौथ राम जो सार है ताना करो विचार .
डा चन्द्रविजय चतुर्वेदी –प्रयागराज