BJP के लिये बड़ी चुनौती बने राज्यसभा चुनाव और क्षेत्रीय दल
राज्यसभा चुनाव और क्षेत्रीय दल
आगामी राज्यसभा चुनाव और क्षेत्रीय दल (RS Election-Regional Parties) (बीजेपी) BJP के लिये बड़ी चुनौती बनकर सामने आ रहे हैं। यूपी चुनाव ही नहीं, इस साल होने वाले अन्य चार राज्यों के चुनाव जीतना भी उसके लिये अहम माना जा रहा है। इसके पीछे वजह है आगामी राज्यसभा चुनाव और क्षेत्रीय दलों की स्थिति, जिनके साथ के बिना राज्यसभा में बीजेपी के लिये राह आसान नहीं रह जायेगी।
BJP इस वर्ष होने वाले राष्ट्रपति और राज्यसभा चुनाव को लेकर अपनी रणनीति तैयार कर रही है। ऐसे में पार्टी के लिये फिलहाल ऐसे क्षेत्रीय दल बड़ी चुनौती बने हुये हैं, जो पहले तो उनके साथ रहे, लेकिन इस चुनावी दौर में अलग अलग वजहों से BJP से दूर होते जा रहे हैं।
बता दें कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल इसी साल जुलाई में पूरा होने वाला है। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि इस साल 2022 के मध्य तक राष्ट्रपति चुनाव भी कराये जा सकते हैं। राष्ट्रपति चुनाव के साथ साथ इसी साल 75 राज्यसभा सीटों के भी चुनाव होंगे, जिनका कार्यकाल जल्द ही पूरा होने वाला है। राज्यसभा चुनाव और क्षेत्रीय दल (RS Election-Regional Parties) BJP के लिये बड़ी चुनौती बने हुये हैं।
ज्ञात हो कि जहां राष्ट्रपति का चुनाव सांसदों और विधायकों वाले निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता है, वहीं राज्यसभा सदस्यों का चुनाव विशेष राज्य विधानसभा के विधायकों के निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता है।
उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर, इन पांच राज्यों में जल्द ही चुनाव कराये जाने की उम्मीद है। भाजपा के वरिष्ठ नेता मानते हैं कि जिन राज्यों में क्षेत्रीय दलों का दबदबा है, वहां के “बदलते परिदृश्य” राष्ट्रपति चुनाव और राज्यसभा चुनाव की गणना को बदल सकते हैं।
BJP के वरिष्ठ नेता ने कहा, चुनाव आने के साथ ही एंटी बीजेपी का माहौल तैयार करने के लिये बड़े स्तर पर लामबंदी की कोशिश शुरू हो चुकी है। यहां तक कि क्षेत्रीय दलों में भी बीजेपी के विरूद्ध ज्यादा गतिशीलता नजर आने लगी है। हम यह अंदाजा नहीं लगा पा रहे कि आगे क्या होने वाला है, लेकिन पार्टी इन सारी बातों से अच्छी तरह से वाकिफ है।
राज्यसभा की 75 सीटें, जो इस साल खाली होने वाली हैं, उनमें उत्तर प्रदेश की 11 सीटें होंगी। ऐसे में नवगठित विधानसभा चुनाव में सपा और बसपा की ताकत अहम होगी। इसके अलावा पंजाब से राज्यसभा की 7 सीटें रिक्त होने वाली हैं, जहां बीजेपी छोटी पार्टियों के साथ हुई चुनावी गठजोड़ पर दांव लगा रही है। इनके अलावा महाराष्ट्र और तमिलनाडु से 6-6 सीटें भी खाली होने वाली हैं, इन दोनों ही राज्यों में बीजेपी के विरोधी दलों का दबदबा है। इसके अलावा 4 राज्यसभा सीटें आंध्र प्रदेश से भी खाली होने वाली हैं, जहां जगन मोहन रेड्डी की सरकार है।
इस साल जिन 75 राज्यसभा सीटों पर चुनाव होंगे, उनमें से 26 फिलहाल भाजपा सदस्यों के पास हैं। भाजपा नेताओं ने स्वीकार किया कि राज्यसभा में अपनी ताकत को बड़े पैमाने पर बढ़ा पाने की उम्मीद फिलहाल पार्टी को नहीं है, ऐसे में पार्टी का प्रयास होगा कि कम से कम उसकी मौजूदा संख्या राज्यसभा में बनी रहे।
237 सदस्यों वाले राज्यसभा में फिलहाल भाजपा के 97 सांसद हैं। लोकसभा में स्पष्ट बहुमत होने के बावजूद, राज्यसभा में अपनी ताकत को देखते हुए, भाजपा को कई प्रमुख विधेयकों को आगे बढ़ाने के लिए क्षेत्रीय दलों का समर्थन लेना पड़ा है।
लेकिन हाल ही में संपन्न हुए शीतकालीन सत्र ने छोटे दलों के समर्थन को लेकर बीजेपी की आशंकाएं तेज कर दी हैं, जबकि आंध्र प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी YSRCP ने सदन में अधिकांश मुद्दों पर भाजपा का पक्ष लिया है। लेकिन, तेलंगाना राष्ट्र समिति और बीजू जनता दल (बीजद) जैसी पार्टियों ने स्पष्ट रूप से सत्तारूढ़ भाजपा से खुद को दूर कर लिया।
सत्र के शुरुआती दिनों में, टीआरएस सांसदों ने लगभग हर दिन कार्यवाही बाधित की और बाद में धान खरीद के मुद्दे पर सत्र का बहिष्कार भी किया। बीजद ने विपक्ष के साथ हाथ मिलाकर सत्ताधारी बीजेपी पर यह आरोप लगाया था कि सरकार बिना चर्चा के विधेयकों को आगे बढ़ा रही है।
मिशनरीज ऑफ चैरिटी (MoC) के फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट (FCRA) लाइसेंस को नवीनीकृत करने के मुद्दे पर, ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने सीएम राहत कोष से धन देने की पेशकश करने में जल्दबाजी कर दी, ताकि संगठन को फंड की कमी का सामना न करना पड़े।
हाल ही में, पार्टी के 25वें स्थापना दिवस पर जाहिर तौर पर भाजपा पर निशाना साधते हुये पटनायक ने अपने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुये पटनायक ने यह घोषणा की थी कि उनकी पार्टी का दिल्ली में कोई बॉस नहीं है। उन्होंने कहा, “दिल्ली में हमारा कोई बॉस नहीं है। ओडिशा के लोग ही बीजु जनता दल (बीजद) के मालिक हैं।”
दक्षिण भारत में बीजेपी के कामकाज से परिचित एक भाजपा पदाधिकारी ने कहा, “लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा ने जिस तरह से दिल्ली में खुद को स्थापित किया, टीआरएस और बीजेडी जैसी पार्टियां उसकी सराहना नहीं कर सकती थीं, यही वजह है कि भाजपा इन राज्यों में मुख्य प्रतिद्वंद्वी बन चुकी है। हालांकि, आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी, तेलंगाना में के. चंद्रशेखर राव और भुवनेश्वर में नवीन पटनायक को हमारी पार्टी से कई मुद्दों पर मतभेद हैं, इसके बावजूद हमें YSRCP से ज्यादा विरोध की उम्मीद नहीं है।”
अधिकारी ने समझाया, “भाजपा के वरिष्ठ नेताओं का अनुमान है कि उत्तर प्रदेश में यदि भाजपा प्रभावशाली संख्या के साथ सत्ता में वापसी करने में विफल रहती है तो क्षेत्रीय दलों को लेकर पार्टी की स्थिति और भी मुश्किलों भरी हो जायेगी। यकीनन ऐसी स्थिति में, पटनायक और राव जैसे नेता उन लोगों के साथ शामिल हो जाएंगे, जो राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा विरोधी स्थान बनाने के लिए लगातार संघर्षरत हैं। वे जानते हैं कि अगले दो वर्षों में लामबंदी होनी है। राज्यसभा में यह तब दिखाई देगा, जब विधायी प्रक्रिया हमारे लिए कठिन हो जायेगी।”
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