राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा, बेपटरी कांग्रेस को लोगों से जोड़ने की यात्रा
कल्याण कुमार सिन्हा
राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ पिछले 7 सितंबर से शुरू हो चुकी है. 150 दिनों और 3500 यह बहुचर्चित यात्रा कन्याकुमारी के बाद पेरम्बदूर होते हुए बढ़ती जा रही है. 2024 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रख कर शुरू की गई यह यात्रा, राहुल के घोर विरोधी भारतीय जनता पार्टी सहित सहयोगी विपक्षी पार्टियों के दिलों की भी धड़कनें अगर बढ़ा रही हैं तो यह स्वाभाविक भी है. कुछ धुरंधरों ने तो यहां तक मान लिया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजपथ को भले ही ‘कर्तव्य पथ’ घोषित किया हो, लेकिन कर्तव्य पथ पर तो राहुल गांधी ने चलना शुरू कर दिया है. कांग्रेस को पटरी पर लाने का कर्तव्य वे ही निभा रहे हैं.
नवजीवन का संचार कर कांग्रेस का कर्ज चुका सकेंगे
इस यात्रा का नाम भले ही ‘भारत जोड़ो’ रखा गया है, लेकिन जाहिर है, यह यात्रा “कांग्रेस को लोगों से जोड़ने” का काम जरूर करेगी. अब तक कांग्रेस टूटती ही आई है. राहुल का पार्टी में वर्चस्व बढ़ने के साथ ही यह टूटन पार्टी को आम जनता से कांग्रेस को दूर ही करती गई है. प्रेक्षकों का मत है कि इस यात्रा से राहुल को व्यक्तिगत लाभ हो न हो, कांग्रेस को नवजीवन पाने का अवसर जरूर मिलेगा, यह यात्रा पार्टी के बिखरते जनाधार को समेटने का काम जरूर करेगी… और यही राहुल का पार्टी के लिए अपना कर्ज चुकाने जैसा होगा. जितना नुकसान उनके कारण हुआ है, उसकी पूरी-पूरी भरपाई भले ही न हो, फिर भी बहुतांश भरपाई तो हो ही जाएगी.
खोया जनाधार बढ़ेगा
सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी हो या कांग्रेस की सहयोगी रही विपक्षी पार्टियां, इन सभी को चिंता इसी बात से है. इस यात्रा से कांग्रेस का जनाधार जरूर बढ़ेगा. ऐसे में उसका असर उन्हें ही झेलना पड़ेगा. उनके जनाधार में कटौती तो जरूर होगी. इस कटौती का असर भाजपा पर भले ही कम पड़े, क्षेत्रीय विपक्षी दलों को निश्चय ही अधिक कटौती का दंश झेलना पड़ सकता है. ऐसे में कांग्रेस का नवजीवन छोटी क्षेत्रीय विपक्षी दलों के लिए नुकसान लेकर आ सकता है. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने तो साफ भी कर दिया है कि यह यात्रा विपक्षी दलों को पास लाने के लिए नहीं, लोगों को पास लाने के लिए है. इस यात्रा के निहितार्थ को समझने में भारतीय राजनीति के आधुनिक चाणक्य माने जाने वाले एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार को देर नहीं लगी है. विपक्षी राजनीति में अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए वे सक्रीय भी हो गए हैं. उन्होंने दिल्ली से सरकार विरोधी हुंकार भी लगा दी है.
यात्रा निकल रही कांग्रेस शासित राज्यों से होकर
केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा के लिए चिंता की बात यह भी है कि राहुल गांधी भारत जोड़ो का यह यात्रा पथ बिहार को छोड़ उत्तर प्रदेश और उन 11 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों से है, जहां या तो कांग्रेस सरकार है, अथवा वह मजबूत स्थिति में है. उत्तर प्रदेश से तो उनकी यात्रा के वाल बुलंदशहर को छू कर आगे निकल जाने वाली है. अन्य 11 राज्यों में तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब और हिमाचल प्रदेश शामिल हैं. इनके अलावा दिल्ली और जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित भी उनकी यात्रा के रूट में हैं.
क्षेत्रीय विपक्षी सहयोगियों से बार्गेनिंग संभव हो जाएगा…
इससे भाजपा की चिंता यह है कि 2024 में वह इन कांग्रेस के प्रभाव वाले राज्यों में अपने जनाधार बढ़ाने में कहीं विफल न हो जाए. हो सकता है- उसे इन राज्यों में जीत का अपेक्षित परिणाम शायद हासिल न हो पाए. लेकिन कांग्रेस के क्षेत्रीय विपक्षी सहयोगियों को तो खामियाजा भुगतना ही पड़ेगा. क्योंकि तब कांग्रेस की ‘बार्गेनिंग पावर’ बढ़ेगी और गठबंधन की सूरत में इन दलों को कांग्रेस के लिए इन राज्यों में अधिक संख्या में सीटें छोड़नी पड़ेंगी. गठबंधन नहीं भी हुआ तो भी नुकसान उन्हें उठाना पड़ सकता है.
हाल ही में हिंदी न्यूज चैनल इंडिया टीवी को दिए एक इंटरव्यू में चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कहा है कि कांग्रेस की इस यात्रा का रूट ज्यादातर उन राज्यों से होकर गुजरता है, जहां कांग्रेस की सरकारें हैं. बेहतर तो यह होता कि राहुल की यात्रा भाजपा शासित राज्यों से होकर गुजरती. हालांकि साथ ही उन्होंने यह भी माना है कि अगर कांग्रेस ने यह रूट चुना है तो कुछ सोचकर ही चुना होगा.
सोचकर ही चुना है यात्रा पथ
निश्चय ही, राहुल गांधी और कांग्रेस ने यात्रा मार्ग सोच कर ही चुना है. यात्रा के मार्ग में आने वाले जिन 12 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों को चुना गया है, उन सभी को मिला कर इनमें लोकसभा की 372 सीटें आती हैं. इनमें सर्वाधिक उत्तर प्रदेश की 80, उसके बाद महाराष्ट्र की 48, तमिलनाडु की 39, मध्य प्रदेश की 29, कर्नाटक की 28, गुजरात की 26, आंध्र प्रदेश और राजस्थान की 25-25, केरल की 20, तेलंगाना की 17, पंजाब की 13, और हरियाणा की 10 सीटों के साथ ही केंद्र शासित दिली की 5 और जम्मू-कश्मीर की 7 सीटें हैं.
372 सीटों के आसान लक्ष्य पर है नजर
राहुल गांधी और कांग्रेस के लिए यह 372 सीटें शायद आसान लक्ष्य हैं. इन राज्यों में भाजपा के साथ मुकाबले में उनकी विपक्षी पार्टियों से भी मदद की अपेक्षा भी जरूर हो सकते है. विपक्षी पार्टियां राहुल गांधी की इस भारत जोड़ो यात्रा को लेकर अभी तक कोई उत्साह या भरोसा तो नहीं जताया है, लेकिन विरोध या आलोचना भी नहीं की है. भाजपा ने भी मामूली कटाक्ष के अलावा विशेष टिप्पणी करने से बचती आई है. संभवतः वह उनकी यात्रा पर को महत्व नहीं देने का स्वांग रच रही हो.
बेपटरी भी हो सकती है यात्रा?
विपक्षी पार्टियों की चुप्पी तो समझ में आती है. वह अभी शायद इसके परिणामों को बारीकी से आंकने में लगी हैं. लेकिन भाजपा का यात्रा को महत्व नहीं देने का स्वांग जल्द ही टूटता नजर आ रहा है. क्यों कि अब कांग्रेस की ओर से भी प्रहार शुरू हो गए हैं. राजीव गांधी के टी-शर्ट और पैंट की कीमतों पर कटाक्ष के जवाब में खाकी पैंट से आग के कांग्रेस की ट्वीट ने उसे बेचैन कर दिया है.
इसके अलावा भारत जोड़ो यात्रा के जो तीन उद्देश्य बताए गए हैं, वह तीनों में है पहला- केंद्र में एनडीए शासन के दौरान देश में बढ़ती आर्थिक असमानता, दूसरा- जाती,धर्म, नस्ल और रंग के आधार पर बढ़ रहे भेदभाव और अपराध एवं तीसरा- केंद्र सरकार द्वारा सत्ता और सरकारी एजेंसियों का विरोधियों के खिलाफ दुरुपयोग. यदि यात्रा के दौरान उकसावे वाली तीखी टिका-टिप्पणी शुरू हुई तो हो गई है. नोंकझोक भी शुरू हो गए हैं. लोगों को आशंका है कि ऐसी नोंकझोक से यात्रा का उद्देश्य भाजपा कहीं बेपटरी करने में सफल न हो जाए.
राहुल की सरकार के खिलाफ मुखरता से मिला फायदा
राहुल गांधी इन दिनों पहले से ही इन तीनों मामले में केंद्र की एनडीए सरकार और पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ आक्रामक रहे हैं. लेकिन ममता बनर्जी, महाराष्ट्र की महा विकास आघाड़ी, अरविंद केजरीवाल और अखिलेश यादव इस मामले में केवल तभी मुखर हुए, जब इनके लोगों के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाइयां हुईं. किंतु लोगों ने यह भी देख कि केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाइयां बेबुनियाद नहीं थीं. अन्य विपक्षी दलों ने इसी कारण कुछ अधिक बोलना नहीं समझा. राहुल अकेले नेता रहे, जिन्हें केंद्र के खिलाफ इन मुद्दों पर बोलते सुना गया. इससे कांग्रेस को सरकार की खिलाफत में मुखर रहने के एकमात्र विपक्षी नेता के रूप में राहुल को प्रोजेक्ट करने का अवसर भी मिल गया.
गहरी चोट दे गई हेराल्ड मामले में पूछताछ
लेकिन, सबसे बड़ी चोट तो कांग्रेस को तब लगी, जब हेराल्ड मामले में अदालत के आदेश पर मामले की जांच कर रहे प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने पूछताछ के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी तलब कर लिया. राहुल गांधी भी बच नहीं पाए. जबकि कांग्रेस को लगता था कि उनके इन दोनों बड़े नेताओं को छूने का दुस्साहस सरकार की कोई एजेंसी नहीं कर पाएगी. यह हिमाकत कांग्रेस और राहुल गांधी को बड़ी नागवार गुजरी है. उनके लिए सत्ता और केंद्रीय एजेंसी का दुरुपयोग लगना स्वाभाविक ही है.
पिछली यात्राओं के गणित से प्रेरणा
कांग्रेस को कुछ नेताओं की पिछली यात्राओं से भी प्रेरणा मिली है. चंद्रशेखर जी की जून 1983 से अक्टूबर 1984 तक की 4200 किलोमीटर की पदयात्रा, 2003 में वाई. एस. राजशेखर रेड्डी ने 1500 किलोमीटर की पदयात्रा, 2013 में चंद्रबाबू नायडू ने 1700 किलोमीटर की यात्रा, 2017 में दिग्विजय सिंह ने नर्मदा यात्रा और 2017 में जगन मोहन रेड्डी ने 3648 किलोमीटर की पदयात्रा से जोड़ कर भी इसे देखा जा रहा है. यह सभी ‘भारत जोड़ो’ की तरह राजनीतिक यात्राएं ही थीं. इन यात्राओं से सभी ने कुछ न कुछ बड़ा ही हासिल किया था. ऐसे में राहुल गांधी को भी इस यात्रा से कांग्रेस को एक बार फिर देश की जनता तक पहुंच दिलाने का फायदा पहुंचाने के साथ प्रधानमंत्री पद भी हासिल करने में मदद मिल जाए तो निश्चय ही भारतीय राजनीति के लिए बड़ी बात साबित होगी।