पानी हमारी आदिम मां

समुद्री तूफ़ान अमफन के बहाने

मुदिता तिवारी

मुदिता तिवारी, असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, प्रयागराज 

जगन्नाथ जी के दर्शन के बाद  कुछ राजस्थानी बुजुर्ग, बूढ़ी महिलाओं के एक झुंड के साथ समुद्र तट पर पहुंचे । ढल चुकी जवानी में भी चेहरा ढांपे वह चली जा रही थीं । चाल मद्धिम ,आंखों में ज्योति भी मद्धिम , हाव भाव भी थके से , वे उन पुरुषों के पीछे खिसकती जा रही थीं । अनंत समुद्र भी उनकी घूंघट की ओट हो गया था ।वो तो यूं ही नज़ारे देखे बिना चली ही जाती।लेकिन अल्हड़ हवाएं किसी को छोड़ती हैं क्या ! जैसे कभी चौराहों पर लडके बिना छेडे किसी लड़की को जाने ही नहीं देते वैसे ही ये आवारा हवाएं । पहले सर पर सधा घूंघट उड़ाया  और फिर समुद्र ने मारा छपाक ! 

जब तक समझतीं ,धरती में जमे पांव लहरों ने उखाड़ दिए ।वह सामूहिक चीखीं ,लेकिन उस प्रसन्नता से जैसे यौवन का कोई किस्ना औचक होली खेल गया हो। पोपले मुंह खुल गए और  प्रसन्नता झरने लगी । भूल गई कि बुड्ढों का अनुगमन करना है ।बुड्ढे उनकी ज़िंदगी में हैं भी ,यह भी भूल गई । कूद पड़ा पूरा झुंड उस अदृश्य किस्ना के ऊपर, जो उन लहरों की ओट था ।

बुड्ढों को जल्दी ही अहसास हुआ कि उन्हें फॉलो नहीं किया जा रहा ।अड़बड़ा कर पीछे घूमे ।सूखी घरवालियों को समुंदर में नहा के नमकीन होते देखा तो उछाह कुलांचें मारता दिल से निकल आया । मैंने गौर से देखा कहीं अपनी – अपनी घरवाली में उन्हें जीनत अमान तो ना दीख रही थी !!  वासना की एक बूंद बुड्ढों के चेहरों पर ना थी । सो जीनत अमान वाला मेरा एंगल फेल हो गया । 

मैंने महसूस किया वो पानी से उपजी हमारी सहज प्रसन्नता थी । पानी हमारी आदिम मां है । उसकी क्रीड़ामय गोद में आते ही बरसों का सहेजा अहंकार झर जाता है ।हम सहज हो जाते हैं इसलिए आनंदमय ।

 मुझे लगा ये प्रसन्नता अब इलाहाबाद में क्यों नहीं मिलती ? बचपन में तो गंगा जी की गोद में हम कैसा खेला करते थे ।उसकी गंध दूर से ही नथुनों में भर कर मादक करती थी ।दिल बल्लियों उछलने लगता था उसमें कूदने को ।तो अब क्या ?  

बड़े बड़े बांधों ने जिसकी गोद को बांध दिया हो वह गोद ही सहज नहीं रह गई ।पानी बंध गया, तो हवा भी बंध गई  ,उसमें तिरती अल्हड़ धुन बंध गई । जब महाभूत  बंध गए ,तब तन्मात्राओं की क्या बिसात !  ५ महाभूत – पृथ्वी ,जल ,अग्नि ,गगन और वायु – से  हमारा जन्म हुआ और हमने उसको ही जकड़ लेना चाहा ।अस्तित्व के जड़ पर ही प्रहार कर देंगे तो उनसे आनंद कैसे उपजेगा ? तन्मात्राएं इन पंच महाभूतों के सूक्ष्म गुण हैं । शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध इन्हीं की अभिव्यक्ति है ।जब पंच महाभू त जकड़ गए तो इनसे अभिव्यक्त तन्मात्रा में आनंद का कोई स्वाद संप्रेषित नहीं होगा ,सिवाय दर्द के ।

हमारा शरीर एक साधारण कंटेनर नहीं है ।अपितु सूक्ष्म पांच कोषों से निर्मित है । अन्नमय कोष सबसे बाह्य लेकिन विस्तार में सबसे कम है । श्वेताश्व तरोपनिषद में कहा गया है , अणोरणीयान् महतो महीयान्। जो सबसे सूक्ष्म है ,वह सबसे महान है ।नैनो साइंस भी ऐसा ही मानती है । सबसे सूक्ष्म और सबसे विस्तृत  हमारा आनंदमय कोष पानी की छवियों से छक जाता था ।लेकिन दर्द से भरी हमारी आदिम मां अब हमें देख आंसू बहाने के सिवा कुछ नहीं कर पाती। इसलिए पानी के पास आनंद के भौतिक साधन जुटाने पड़ गए । चुरमुरा ,पकौड़ी ,मोमोज , चाऊमीन ,समोसा ,टिक्की खाने ,हम अब सरस्वती घाट पर जाते हैं । प्रेमी प्रेमिका, पानी के पास अब सहज और क्रीड़ामय नहीं , वासनामय होते हैं ।

 

हमारा शरीर एक साधारण कंटेनर नहीं है ।अपितु सूक्ष्म पांच कोषों से निर्मित है । अन्नमय कोष सबसे बाह्य लेकिन विस्तार में सबसे कम है । श्वेताश्व तरोपनिषद में कहा गया है , अणोरणीयान् महतो महीयान्। जो सबसे सूक्ष्म है ,वह सबसे महान है ।नैनो साइंस भी ऐसा ही मानती है । सबसे सूक्ष्म और सबसे विस्तृत  हमारा आनंदमय कोष पानी की छवियों से छक जाता था ।लेकिन दर्द से भरी हमारी आदिम मां अब हमें देख आंसू बहाने के सिवा कुछ नहीं कर पाती। इसलिए पानी के पास आनंद के भौतिक साधन जुटाने पड़ गए । चुरमुरा ,पकौड़ी ,मोमोज , चाऊमीन ,समोसा ,टिक्की खाने ,हम अब सरस्वती घाट पर जाते हैं । प्रेमी प्रेमिका, पानी के पास अब सहज और क्रीड़ामय नहीं , वासनामय होते हैं । 

महाभूतों को बांधने के साथ हम अब सिकुड़ते जा रहे हैं ।आनंदमय कोष से अन्नमय कोष की तरफ धंसकते जा रहे हैं । 

वेदों ,उपनिषदों में अन्नमय कोष से आनंदमय कोष की तरफ मन को प्रवृत्त करने पर जोर दिया गया है ।लेकिन बढ़ती भौतिकता में हम आनंद के उपकरणों को भी भौतिक जामा पहनाने से बाज नहीं आ रहे हैं ।

प्रकृति सदैव हमें सहज करती है ।आनंदमय करती है । कभी- कभी वह उग्र होती है ।समुद्र की उग्रता उतने ही क्षण की होती है, जितने क्षण का मा फटा गुस्सा ।वरना तो सदैव इसने हमें धारण किया है ।

Leave a Reply

Your email address will not be published.

20 − nine =

Related Articles

Back to top button