विनोबा के पवनार आश्रम में मित्र मिलन की तैयारी

42 वें मित्र मिलन की तैयारियां हो गईं शुरू, अन्नपूर्णा भवन में रसोई का पूजन सम्पन्न, सभी आवास कक्ष सेवा से हुए अभिमंत्रित संपूर्ण वर्ष में 365 दिनों का 6 प्रतिशत अर्थात 20 दिन तो व्यवस्था देखने वालों को और मित्र मिलन में आने वाले आगंतुक अर्थात गांधी विनोबा और संविदा या कल्याण कार्यक्रम से जुड़े साथियोंको कम से कम डेढ़ प्रतिशत अर्थात आने जाने सहित 5 दिन हर वर्ष नवंबर माह में देना ही चाहिए।

नवंबर माह आते ही मित्रमिलन की आवास, रसोई और सम्पूर्ण परिसर की सफाई, साज सज्जा शुरू हो जाती है। हमारे मित्र सुभाष भाई पाटिल अपने साथ मयंक और संजीव को लेकर आवास के लिए सभी कक्ष या बड़े हाल धुलाई कराके सबमें बिछावन बिछाकर किसमें कितने भाई और कितनी बहनें ठहर सकती हैं। सभी कक्षों को सेवा से अभिमंत्रित करके सुरक्षित कर रहे हैं।

जहां तक अन्नपूर्णा की तैयारी प्राची और हेमा बहन ने पहुंचकर गेहूं का धोकर एक एक दाना बीनकर और चना दाल से बेसन महेश और विशाल ने पवनार गांव की हमारी नंदिनी बहन राधा के यहां चक्की पर खुद खड़े होकर दो दिन में पीस लिया है। ताकि शुद्धता में एक प्रतिशत कमी न रहे।

कल विमला बहन पहुंची ही थीं। कि गंगा दीदी के मार्गदर्शन में नवो चूल्हों की रंगोली आदि रंजना बहन मनीषा बहन और लक्ष्मी बहन आदि ने की ।विधिवत पूजा गंगा दीदी ने की। यद्यपि रसोई में खाना बनाने की शुरुआत तब होगी जब मेहमान 15 से 16 हो जायेंगें। क्योंकि जो दीदी लोगों का रसोई है वहां 40 लोगों का खाना एक बार में बन सकता हैं।जिसमें 15 मेहमान समाहित हो सकते हैं।बाबा के समय से आश्रम की रसोई में अभी तक गैस चूल्हा आदि नहीं पहुंचा है।गोबर गैस पर दाल सब्जी और चावल बनता है और अंगीठी पर सभी के लिए रोटी सिकती है। जिसे सेंकने का काम गत चालीस वर्षों से आदरणीय गौतम बजाज करते हैं।कभी कभी पत्रकार भाई जी से पूछते हैं।कि आपकी शोध जिसमें हैं तो भाई जी कहते कि मेरी पी एच डी रोटी सेंकने में है।

Vinoba Bhave

सब दालें बिन चुकी हैं। इस बार संपूर्ण मित्र मिलन की रसोई जैविक होगी इसलिए दंतेवाड़ा से सारी सामग्री गेहूं, दाल,चावल, गुड चना, सभी मसाले , सभी दालों को मंगाया गया हैं।यह रसोई लगभग 11 दिन चलती है।संभवतः 9 या 11 से शुरू होकर 20 या 22 तक चलतीं है। अपनी गौशाला का।दूध जिससे दही भी छाछ देने के लिए बनता हैं प्रत्येक दिवस अलग अलग नाश्ता भोजन आदि बनता है। ईंधन लकड़ी आदि की व्यवस्था आश्रम के पेड़ों से मिल जाती है। सब्जियां सभी जैविक मंगाने का प्रयास।किया जा रहा है।अपना धनिया मेथी हल्दी सब पाउडर मिक्सी से पीसा जा रहा है। मूंगफली का शुद्ध तेल की व्यवस्था की गई है।

अब सवाल है आने वालों का अभी गत 41 साल वह पीढ़ी आ रहीं थी जिन्होंने बाबा के साथ काम किया या बाबा को देखा भर।वह पीढ़ी बुजुर्ग हो रही है या भगवान की प्यारी हो रही है। लेकिन अब नई पीढ़ी को जोड़ने के भी प्रयास हो रहे हैं। प्रतिवर्ष यह बाहर से आने वालों की संख्या 250 से 500 तक होती है। इस वर्ष भी इसी प्रकार सभी प्रतिनिधियों के आने की पूर्ण संभावना है।ब्रह्मविद्या मंदिर की देवतुल्य बहनें मित्र मिलन में आने वाले हर मित्र की राह देखती हैं। सूचना पाकर आनंदित हो जाती है।।ऐसे पवित्र स्थल पर जो एक बार आ गया तो अगले वर्ष तो वह बरबस खिंचा चला आयेगा। रामहरि

रमेश भैया

Leave a Reply

Your email address will not be published.

5 × four =

Related Articles

Back to top button