प्रयागराज मे रामप्रसाद बिस्मिल को किसने मारने का प्रयास किया ? क्या थी कहानी जरूर पढ़ें

वीरेंद्र पाठक
वीरेंद्र पाठक

वीरेंद्र पाठक, वरिष्ठ पत्रकार, प्रयागराज 

राम प्रसाद बिस्मिल की मां पहुंची जेल। पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को फांसी होने वाली थी,,,, मां को देखकर राम प्रसाद बिस्मिल की आंखों में आंसू आ गये,,,, मां तो मां ही थी,,,, और वह भी राम प्रसाद बिस्मिल की मां!
फौलादी आवाज में मां ने कहा “अगर रोना ही था तो इस पथ पर क्यों आये,,, मौत से इतना है तो तुम्हें क्रांति की राह नहीं चुननी चाहिए”।

मां की आवाज सुन राम प्रसाद बिस्मिल भावुक हो गये उन्होंने कहा की मां मुझे मृत्यु से भय नहीं,,, मैं इसलिए नहीं रो रहा कि मुझे फांसी होने वाली है। बल्कि इसलिए रो रहा और प्रार्थना कर रहा हूं कि मेरा सपना पूरा हो,,, और अगले जन्म में भी तुम्हारी कोख से जन्म लूं,,, तुम ही मेरी मां बनो।

जेल में मां और बेटे के बीच जिसने यह संवाद सुना वह भावुक हो गया। ऐसे थे वीर राम प्रसाद बिस्मिल ।
11 जून 18 97 में जन्मे
महान क्रांतिकारी अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद के गुरु गेंदालाल दीक्षित के शिष्य मेरा रंग दे बसंती चोला सहित बहुत सारे देशभक्ति के गीत लिखने वाले काकोरी कांड के नायक एक बार अंग्रेजों को चकमा देकर जेल से बाहर आने के बाद पूरा क्रांति की मशाल जलाने वाले अमर शहीद राम प्रसाद बिस्मिल की शहादत दिवस पर शत-शत नमन। राम प्रसाद बिस्मिल के दादा का नाम नारायण लाल था जो मूल रूप से ग्वालियर के रहने वाले थे इनके पिता का नाम मुरलीधर था यह बहुत अच्छे शायर थे बेस्ट मैन इन का खूब नाम या टाइटल रखा था।
22 जनवरी को प्रयाग के संगम के पास इनकी हत्या का प्रयास किया गया था। वह कहानी आज यहां लिखता हूं। इस घटना के बाद से राम प्रसाद बिस्मिल को यह विश्वास हो गया था कि उनका जीवन किसी बड़े कार्य उद्देश्य के लिए बचा है।

गेंदालाल दीक्षित के साथ इनका नाम मैनपुरी कांड में आ गया । ऐसे में यह अपने तीन अन्य साथियों के साथ इलाहाबाद आये थे । उनमें से एक कमजोर किस्म का था। कुछ दिन पहले राम प्रसाद बिस्मिल का उससे विवाद हुआ था । झूंसी के बाद गंगा के पार यमुना तट पर यह शौच के बाद ध्यान लगाकर बैठे थे। इतने में खट की आवाज हुई ,जब पलट के देखा तो इनका एक साथी मात्र 2 गज की दूरी से इन पर फायर किया था। गोली कान के बगल से निकल गयी। इन्होंने जब तक अपना माउजर चमड़े के बैग से निकाला,,, तब तक उनके तीनों साथी भाग गये।
इतने पास से हमला होने के बावजूद इनका जीवित बचना इनको भाव विह्वल कर गया। यह निर्विकार हो गये और वही बालू में गिर पड़े। काफी देर बाद चैतन्य होकर ईश्वर को धन्यवाद देते हुए अपने एक मित्र के पास पहुंचे और उनसे चादर लेकर लखनऊ चले गये
उन्होंने समझ लिया कि आज ईश्वर ने उन्हें बचाया है , क्योंकि इतने पास से अगर गोली मारी जाती और उनके साथी जो हमलावर हो गये थे भागते नहीं तो बड़ी आसानी से राम प्रसाद बिस्मिल की हत्या कर देते। यह चमत्कार ही था। ऐसा बिस्मिल मानते थे कि ईश्वर ने उनकी जान इसी बड़े कार्य के लिए बचाई है । बाद में राम प्रसाद बिस्मिल एचआरए के प्रमुख नीति कर्ता बने,,, चंद्रशेखर आजाद जैसे नौजवानों को दिशा दिखाई और बाद में काकोरी कांड के जुर्म में 19 दिसंबर 1927 को गोरखपुर जेल में अंग्रेजों द्वारा दी गई फांसी को हंसते-हंसते स्वीकार कर अमर हो गये।( वीरेन्द्र पाठक भारत भाग्य विधाता)

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