जब अपनों ने नजदीक आना मुनासिब नहीं समझा
प्रतापगढ़ से सुकून देने वाली खबर
(मीडिया स्वराज़ डेस्क )
प्रतापगढ़। कोरोना की महामारी का इतना भय व्याप्त हो गया है कि कोई अगर हार्ट अटैक या साधारण बीमारी से भी मर जाता है तो भी सगे सम्बन्धी लोग भी उसे छूने या उसके अंतिम संस्कार में शामिल होने से डरते हैं।
ऐसा ही एक मामला प्रतापगढ़ ज़िले से सामने आया है जहां सगे सम्बन्धी या अपने धर्म के लोग तो दूर रहे मगर दूसरे समुदाय के लोगों ने अंतिम संस्कार सम्पन्न किया और अवध की गंगाजमुनी तहज़ीब की नयी मिसाल पेश की।
यह मामला है लालगंज कोतवाली के दांदूपुर पड़ान गाँव का। आज जहाँ एक ओर तबलीगी जमातियों में कोरोना पाए जाने के बाद साम्प्रदायिक खाई बढ़ाने की भरपूर कोशिश हो रही है रही है तो वही इस गाँव मे अल्पसंख्यक युवाओं ने पेश की इंसानियत की मिसाल।
कोरोना के चलते लॉकडाउन में सहमे हुए लोग घरों में कैद हैं ।लोग जरूरी काम से ही घरों से निकल रहे हैं । एक दलित व्यक्ति जतन उर्फ साधू घर मे अकेला रहता था लॉकडाउन में सुबह सब्जी लेने घर से बाजार गया था। वापस घर आते समय घर से महज एक किमी दूर अचानक साइकिल सहित गिरा और काल के गाल में समा गया। बताया जाता है हार्ट अटैक से मौत हुई।
साधू की अर्थी को कंधा देने को कोई आगे नही आ रहा था। जतन के बीबी बच्चे हैं नहीं। पारिवारिक लोग भी कोरोना के भय के चलते तैयार न हुए।जतन की मौत की सूचना गांव में पहुची तो, लेकिन कोरोना के भय के चलते कोई आगे आने को तैयार न हुआ।
इसकी जानकारी जब बीडीसी मेम्बर मो. शानू को हुई तो अपने पड़ोसियों अजहर, कलीम, तनवीर, सकलैन, सदन और गुड्डू संग पहुँच गया , साधू की अर्थी को कंधा देने। इसके बाद ही साधू का हो सका अंतिम संस्कार। जब अपनों ने नजदीक आना मुनासिब नही समझा तो गैरो के ही कंधों का सहारा मिला साधू को अन्तिम यात्रा में।मगर क्या अब भी उन्हें ग़ैर कहना मुनासिब है?