अचानक नहीं उत्पन्न हुआ है कोयला संकट, इसके चलते चरमरा सकती है देश की बिजली व्यवस्था
कोयला संकट का बिजली व्यवस्था पर असर
कोयला संकट के चलते गहराये बिजली संकट के बीच निजी घरानों ने एनर्जी एक्सचेंज में लूट मचा रखी है. एनर्जी एक्सचेंज में पिछले कई दिनों से बिजली की कीमत ₹9 से ₹21 प्रति यूनिट तक चल रही है, जो खुली लूट है. इतनी महंगी बिजली का कोई औचित्य नहीं है. पहले तो राज्यों के पास इतनी महंगी बिजली खरीदने के लिए आवश्यक धनराशि नहीं है और यदि कहीं से जुगाड़ करके वे इतनी महंगी बिजली खरीद भी लें तो अंततः इसका भुगतान तो आम जनता को ही करना पड़ेगा. गहराते कोयला और बिजली संकट पर जाने माने वरिष्ठ पत्रकार शैलेंद्र दुबे के साथ बीबीसी के पूर्व वरिष्ठ संवाददाता रामदत्त त्रिपाठी की चर्चा का वीडियो भी लेख में संलग्न है. बनिए इस चर्चा का हिस्सा…
देश में कोयले से चलने वाले 135 पॉवर प्लांट है, जिनमें आधे से ज्यादा ऐसे हैं जहां कोयला का स्टॉक समाप्त होने के कगार पर है. प्राप्त जानकारी के अनुसार यहां 2 से 4 दिन का ही कोयला स्टॉक बचा है. भारत में प्रतिदिन लगभग 4 अरब यूनिट बिजली की खपत होती है, जिसमें 72% से अधिक ताप बिजली घरों की बिजली होती है.
जानकार बताते हैं कि ताप बिजली घरों में कोयला संकट अचानक नहीं पैदा हुआ है. केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के मापदंडों के अनुसार ताप बिजली घरों में कम से कम 20 दिन का कोयला भंडार में होना चाहिए. देश के अधिकांश बिजली घरों ने इस मापदंड का पालन नहीं किया.
अप्रैल से जून के बीच का वह समय होता है, जब ताप बिजली घरों में कोयला स्टॉक कर लिया जाता है क्योंकि जुलाई-अगस्त-सितंबर के महीने वर्षा के महीने होते हैं, जब कोयला खदानों में कोयला गीला हो जाता है और कई खदानों में पानी भी भर जाता है. इस प्रकार देखा जाए तो अप्रैल से जून के बीच में पर्याप्त कोयला भंडारण न करने के लिए सीधे तौर पर इन राज्यों का शीर्ष प्रबंधन दोषी है.
कोयला संकट का एक अन्य कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोकिंग कोल की कीमत में भारी इजाफा होना बताया जाता है. विगत दो महीनों में कोकिंग कोल की कीमत $220 प्रति टन से बढ़कर $430 प्रति टन पहुंच गई है.
कोएस्टल क्षेत्र में स्थापित बिजली घर खासकर मूंदड़ा में 4000 मेगावाट का अदानी का ताप बिजली घर और 4000 मेगावॉट का टाटा का ताप बिजली घर इंपोर्टेड कोयला इस्तेमाल करता है. यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि टाटा ने मूंदड़ा स्थित 4000 मेगावॉट के ताप बिजली घर को 18 सितंबर से पूरी तरह बंद कर रखा है.
टाटा का कहना है कि पूर्व में किए गए पावर परचेज एग्रीमेंट की दरों में बढ़ोतरी की जाए क्योंकि उनको कोयले की कीमतें बढ़ने के कारण नुकसान हो रहा है. दबाव बनाने के लिए टाटा ने 4000 मेगावाट का बिजली घर बंद कर रखा है. अधिकांश निजी क्षेत्र के बिजली घरों का यही हाल है.
कोयला संकट के चलते गहराये बिजली संकट के बीच निजी घरानों ने एनर्जी एक्सचेंज में लूट मचा रखी है. एनर्जी एक्सचेंज में पिछले कई दिनों से बिजली की कीमत ₹9 से ₹21 प्रति यूनिट तक चल रही है, जो खुली लूट है. इतनी महंगी बिजली का कोई औचित्य नहीं है. पहले तो राज्यों के पास इतनी महंगी बिजली खरीदने के लिए आवश्यक धनराशि नहीं है और यदि कहीं से जुगाड़ करके वे इतनी महंगी बिजली खरीद भी लें तो अंततः इसका भुगतान तो आम जनता को ही करना पड़ेगा.
पिछले वर्ष की तुलना में कोविड संक्रमण कम होने के कारण इस वर्ष बिजली की मांग में भी 16 से 18% की बढ़ोतरी हुई है, जिससे कोयले की मांग भी बढ़ी है. 31 मार्च 2021 तक पावर कारपोरेशन कंपनियों पर कोल इंडिया का कुल बकाया 21619.71 करोड़ रुपये पहुंच गया है.
कोल इंडिया ने यह नीति बनाई है कि जिन बिजली कंपनियों ने अग्रिम भुगतान कर रखा है, उन्हें पहली प्राथमिकता पर कोयला दिया जाएगा. दूसरे नंबर पर उन कंपनियों को कोयला मिलेगा, जिनका कोई बकाया नहीं है और आखिरी नंबर पर वे कंपनियां जिन्होंने भुगतान नहीं किया है.
अब अगर उत्तर प्रदेश की बात करें तो उत्तर प्रदेश में मौजूदा समय में बिजली की मांग लगभग 18000 मेगावाट है. उपलब्धता 15000 से 16000 मेगावाट है. उप्र में चार बड़े ताप बिजलीघर रहे हैं. पारीछा और हरदुआगंज में लगभग कोयला समाप्त हो चुका है और ओबरा व अनपरा में दो से ढाई दिन का कोयला बचा है.
उल्लेखनीय है कि ओबरा व अनपरा ऐसे बिजली घर हैं, जिनसे प्रदेश को सबसे सस्ती लगभग ₹2 प्रति यूनिट की बिजली मिलती है. उत्पादन निगम का कोल इंडिया को कोयले के भुगतान का ₹1500 करोड़ का बकाया है.
नतीजा यह है कि कोल इंडिया की प्राथमिकता में उत्पादन निगम सबसे नीचे है. उत्पादन निगम से उत्तर प्रदेश पॉवर कारपोरेशन बिजली खरीदता है और पावर कारपोरेशन का बिजली खरीद के एवज में 9000 करोड़ रुपये का भुगतान उत्पादन निगम के प्रति देय है.
ऐसे में पावर कारपोरेशन प्रबंधन द्वारा 1500 करोड़ रुपये उत्पादन निगम को उपलब्ध न कराया जाना बहुत गंभीर मामला है और सीधे तौर पर प्रबंधन की अक्षमता और संवेदनहीनता का उदाहरण है.
कोल इंडिया से कोयले की उपलब्धता सुधारने में अभी कम से कम 20 दिन का समय और लगेगा. ऐसे में बिजली संकट बना रहेगा. यह और भी गहरा सकता है.