“इसलिए कि मैं नारी हूँ” : नारी मन का जीवंत दस्तावेज है

।कन्या भ्रूण की मां से की गयी मार्मिक शिकायत

बहुमुखी प्रतिभा की धनी श्रीमती करूणा सिंह (संप्रति शिक्षिका डीरेका इंटर कालेज वाराणसी) का  काव्य संग्रह-इसलिए कि  मैं नारी हूं ,नारी मन के विविध आयामों का जीवंत दस्तावेज है।इसे सोसाइटी फार मीडिया एण्ड सोशल डेवलपमेंट द्वारा प्रकाशित किया गया है.
 सौम्य, धीर- गंभीर शख्सियत की करूणा सिंह किसी परिचय की मोहताज नहीं  हैं।समाज को उन्होने जैसा पढ़ा,जैसा जीया उसका गहरा प्रभाव उनके संवेदनशील मन पर पड़ा है इसकी तस्दीक़ करता है यह काव्य संग्रह । सामाजिक- पारिवारिक विसंगतियों, विकृतियों को अभिव्यक्ति प्रदान करने के लिये उन्होने अभिनय और लेखन को माध्यम बनाया।अपनी गंभीर रचनाओं के माध्यम से कवि गोष्ठियों, सम्मेलनों मे उन्होने अपनी अलग पहचान बनायी। 
इसलिए कि मैं नारी हूँ उनकी पहली प्रकाशित कृति है।इस संग्रह का सुंदर शब्द शिल्प, इसकी बोधगम्य भाषा पाठक पर अपनी छाप छोड़ती है,उसे आरंभ से अंत तक जोड़े रखती है।
नारी अस्मिता, नारी मन की व्यथा,नारी शिक्षा, लैंगिक विभेद,भ्रूण हत्या, दहेज,घरेलू हिंसा,  जैसी कुरीतियों ,नारी की सहनशीलता ,नारी सामर्थ्य को उन्होने इस संग्रह मे अपनी रचनाओं के माध्यम से खुबसूरती के साथ रेखांकित किया है।हिम्मत से सच कहने का साहस उनकी रचनाओं मे स्पष्ट नजर आता है।
वह पुरूषवादी समाज को तो आईना दिखाती ही हैं , नारी द्वारा नारी के शोषण पर भी अपने मनोभावों को पाठकों के समक्ष प्रभावी तरीके से  रखती हैं। 
इसलिए कि मैं नारी हूँ – संग्रह की पहली रचना पुत्री की अभिलाषा कवयित्री की कल्पना शक्ति और संवेदनशील मन से पाठकों पर ऐसी गहरी छाप छोड़ती है कि पाठक इस संग्रह की 51 रचनाओं को आद्योपांत पढ़ने से खुद को रोक नहीं सकेगा।
किसी संग्रह की रचनाओं मे से सर्वश्रेष्ठ का चयन करना काफी कठिन काम होता है लेकिन मैं  यह कह सकता हूं  कि भ्रूण हत्या पर लिखी गयी बेहतरीन रचनाओं मे करूणा सिंह की – पुत्री की अभिलाषा अपने वैशिष्ट्य के लिये साहित्य जगत मे याद की जाएगी ।कन्या भ्रूण की  मां से की गयी मार्मिक शिकायत  हर संवेदनशील पाठक की आंखें नम करेंगी-
माॅ मैं तुम्हारी कोख से जन्म लेना चाहती थी,
चाहती थी तुम्हे वो सारे सुख देना जो भैया तुम्हे दे न सका।
आगे कन्या भ्रूण मां का सबाल हर उस मां से किया गया प्रतीत होता है जो कन्या भ्रूण हत्या पर मौन है या मौन रहने को विवश है-
पर मां ! तुमने उन निर्मम हाथों को क्यों नहीं रोका 
जो बढ़ रहे थे मेरी ओर,
मेरे छोटे- छोटे टुकड़े करने को।
एक अन्य गीत घर की रौनक बेटियां मे कवयित्री कन्या भ्रूण हत्या जनित असंतुलित  लिंगानुपात पर समाज के सामने एक यक्ष प्रश्न खड़ा करती हैं-
कोख मे हमको मत मारो,हम हैं  तेरी बेटियां
कैसे सबका वंश चलेगा मार जो दोगे बेटियां।।
नारी सामर्थ्य को रेखांकित करता एक और सबाल देखने लायक है-
बेटे कुल के दीपक हैं तो घर की ज्योति बेटियां 
बेटे ऐसा क्या कर देंगे जो न करेंगी बेटियां।।
गरीबी और बेमेल शादी पर  कविता गरीब घर की लडकी कटु सत्य को उद्घाटित करती है-
गरीब घर की लड्की अपनी उम्र से पहले बड़ी हो जायेगी
किसी दोब्याहे के संग ब्याह रचा चली जायेगी।।
आगे की पंक्तियां बेमेल शादी का कटु सत्य उजागर करती हैं-
उम्र दराज पति के साथ गुजारा करती जायेगी
या हम उम्र की तलाश मे पतिता बन जायेगी।
नारी की लाज कविता मे कवयित्री ने पुरूष सत्ता के दंभ को बेनकाब करते हुए सबाल खड़ा किया है-
थे पांच पति फिर क्यों न बची द्रौपदी की लाज
एक पति को अपने पर फिर इतना क्यों है नाज।
मैं  विश्वास के साथ कह सकता हूं कि श्रीमती करूणा  सिंह का यह काव्य संग्रह – इसलिए कि मैं नारी हूँ साहित्य जगत मे नारी मन के एक संग्रहणीय दस्तावेज के रूप मे उल्लेखनीय मुकाम हासिल करेगा। 

-राजीव कुमार ओझा

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