सुबह की गुनगुनी सी धूप, तारों ने गढ़ी कविता
कविता मेरी नजर में
जीवन के हर पल में काव्य नजर आता है। मां के गोद में आने पर लोरी फिर बड़े होने के साथ-साथ पूरे देश में तरह तरह के संस्कार गीत, विदाई, मिलन, और धार्मिक ग्रंथों तक हर ओर काव्य महसूस किया है। इन्हीं भावों को व्यक्त करती मेरी ये कविता…..
सुबह की गुनगुनी सी धूप,
तारों ने गढ़ी कविता।
पिता के मन की अभिलाषा,
आंचल में पली कविता।
कविता ही है जो संस्कृति की, रीढ़ बनती है।
कविता ही तो पीढ़ियों में जंजीर बनती है।
बुजुर्गों की विरासत है, लोक – संसार इसमें है।
धरा की खुशबू आती है, वतन से प्यार इसमें है।
कभी गीतों – कभी गजलों, कभी भजनों की भाषा है।
मां भारती पर मर मिटे, यह उनकी आशा है।
कविता ही तो अंधेरे में, दीपक जलाती है।
निराशा लाख हो मन में, यह आशा बनके आती है।
देश की आन है कविता,
हमारी शान है कविता।
लोरी बन के सपनों में,
हमें ले जाती कविता।
बेटी की विदा में आंख नम,
कर जाती है कविता।
यह कविता ही रामराज्य की, बातें बताती है।
रावण आज कितने और कहां हैं, या दिखाती है।
कहीं ललकार दे दुश्मन तो, यह तलवार बनती है।
कभी यह प्रेम करुणा और, स्वाभिमान बनती है।
कविता ही तो दो, टूटे दिलों के तार जोड़ेगी।
रिश्तो में जो हों कांटे, ये उनको भी तोड़ेगी।
अधरों पर खुशी का,
आधार है कविता।
इक कवि का सारा,
संसार है कविता।
रक्त में है जोश तो,
संचार है कविता।
हम सभी में प्यार का,
विस्तार है कविता।
गगन के पार इक संसार है, हमको बताती है।
ऋचाओं का वृहद संसार, कविता ही दिखाती है।
उर्मिला की विरहगाथा , मीरा की लगन है यह।
अर्जुन के है मन का द्वंद, गीता का वचन है यह।
कविता है – तो लय है, जीवन में सरसता है।
सागर की है गहराई, नदियों में तरलता है।
धरा पर आते हैं जब हम,
बहुत दुलारती है कविता।
विदा की होती जब बेला,
ठिठक सी जाती है कविता।
सुबह की गुनगुनी सी धूप,
तारों ने लिखी कविता।
पिता के मन की अभिलाषा
आंचल में पली कविता।।
– उर्वशी उपाध्याय’प्रेरणा