अब्राहम लिंकन की कविता
अनुवादक: पंकज प्रसून
सन् 1846 में अब्राहम लिंकन ने अपने वकील दोस्त एंड्रयू जॉनसन को एक पत्र के साथ अपनी एक कविता भेजी थी, जिसका शीर्षक था : ‘माई चाइल्डहुड होम — आई सी अगेन।
उन्होंने लिखा कि उस कविता को लिखने की प्रेरणा उन्हें अपने स्कूली जीवन के एक छात्र की हालत देखने के बाद मिली थी जो काफ़ी धनी परिवार का था लेकिन अब विक्षिप्त हो गया था।
वैसे लिंकन ने 15 साल की उम्र में अपनी गणित की कापी पर लिखी थी —–
अब्राहम लिंकन
उसके हाथों में कलम
वह अच्छा व्यक्ति होगा, पर
ईश्वर जाने कब ?
लिंकन की पसंदीदा कविता थी मॉटेल्टी, जिसे स्कॉटिश कवि विलियम नौक्स ने लिखा था।
लिंकन की हत्या के बाद अमेरिका के दो महाकवियों कार्ल सैंडबर्ग और वॉल्ट विटमैन ने उनकी याद में मर्मस्पर्शी कविताएं लिखीं थीं ।
सैंडबर्ग ने लिखा—
लिंकन? क्या वे कवि थे?
और क्या वे कविताएं लिखते थे ?
” मैंने जानबूझ कर कांटे नहीं होते
किसी इंसान की छाती में ।’
मैं कभी द्वेषवश कुछ भी नहीं करूंगा जो
मैं कह रहा हूं द्वेष के लिए है बहुत छोटा
हवा में मौत थी
और जन्म भी
वॉल्ट व्हिटमैन ने लिखा-
वह धूल कभी इंसान थी
सभ्य,सदय,नयायी ,अटल
जिसके सतर्क हाथों ने
किसी ज़मीन या युग के सबसे गंदे अपराध से
राज्यों के इस संघ को बचा लिया
प्रस्तुत है लोकतंत्र के उस महानायक अब्राहम लिंकन की कविता ” भाई चाइल्डहुड होम—आई सी अगेन” का हिंदी अनुवाद:
मैं कब्रों में रहता हूं
बचपन के घर को दुबारा देखता हूं
और उदास हो जाता हूं
फिर भी दिमाग में जैसे
आ जाती है यादों की भीड़
जिसमें भी है खुशी
ओ यादों!!! तुम दुनिया के बीच में
धरती और स्वर्ग के बीच में
जहां चीजें सड़ती हैं और
खो जाते हैं प्यारे
सपनीली छायाओं में उठती हो
और धरती की तमाम नीचता से आज़ाद हो कर
पवित्र, शुद्ध और चमकने लगती हो
किसी सम्मोहित द्वीप के दृश्य सरीखे
सभी नहाये उस प्रकाश में
धूसर पहाड़ों जैसी आंखों को भी
जब झुटपुटा करता दिन का पीछा
जैसे गुजरती बिगुल की आवाज
दूरी में मरती जाती
विशाल प्रपात को छोड़ते जैसा
हम देर तक, दर्ज करते हैं उसका शोर
हो याद करेगी सभी को पवित्र
हम जानते हैं, पर यह नहीं जानते बिल्कुल
गुज़र गये कोई बीस साल
जब मैंने उसे किया था अलविदा
वनों को, खेतों को
खेलने के दृश्यों को
और बने यारों को
जिन्हें कितना प्यार करता था
जहां कई थीं
अब रह गयी बस कुछ ही
पुरानी चीन्हीं चीजें
जिन्हें देखकर
फिर से सोचने के लिए
खोयी और नामौजूद लाती हैं
जिन दोस्तों को छोड़ा था बिछड़ने के दिन
कितने बदल गये हैं वक्त की रफ़्तार से
बचपन और जवानी बढ़ गये
मजबूतों के बाल
सफ़ेद हो गये
और उनमें से आधे तो मर गये
मैं सुनता हूं
प्यारे बचे लोगों की बातें
कैसे बच सकते बेकार मौत से
जब तक हर आवाज़ बजती लगती है
हर जगह अब कब्र लगती है
मैं खेतों को मापता चलता हूं विषन्न
ख़ाली कमरों में
क़दम रखता हूं
और महसूस करता हूं
खुद को मुर्दों का साथी
मैं कब्रों में रहता हूं …