हे भारत भाग्य -विधाता – यह तेरा कैसा मर्दन !
डा चन्द्रविजय चतुर्वेदी –प्रयागराज , मुंबई से
हे भारत भाग्य विधाता
युग का तू ही
हाथ पांव
हे प्रगति विकास
के दाता
लोकतंत्र के
लोक जनार्दन
यह तेरा कैसा मर्दन
असहाय हाय
हारा जोधा सा
रोता गाता
कसमे खाता
भूखा प्यासा
पैदल ही
अपने पथ पर
अपने पांवों के बलबूते
अपना देश खोजता
चलता जाता चलता जाता
आंधी पानी
धुप छाँव की परवाह नहीं है
नहीं मृत्यु का भय कोई
राष्ट्रधर्म के संग संग ही
विस्तारित हुआ राष्ट्र जितना
राष्ट्र राष्ट्र के मनई सारे
प्रान्त प्रान्त हो गए उतना
अपने कन्धों पर
अपना बोझ लाद
भारत भाग्य विधाता
अपना गांव ढूंढता
छांव ढूंढता ठाँव ढूंढता
चलता जाता चलता जाता